बिहार में तीन महीने के भीतर जब SIR की प्रक्रिया में 77 हजार 895 बीएलओ यानी बूथ लेवल ऑफिसर लगे तो कहीं से ये खबर नहीं आई कि BLO पर बहुत दबाव है. वो दबाव में पद छोड़ रहे हैं. बिहार से ऐसी दुखद खबर भी नहीं आई कि किसी तरह के वोटर रिवीजन प्रक्रिया का फॉर्म देने, लेने, डेटा भरने के दबाव में वो खुदकुशी कर रहे हैं. लेकिन फिर ऐसा क्या है कि देश के 12 राज्यों में जब 51 करोड़ मतदाताओं की एसआईआर प्रक्रिया शुरू होती है तो देश के अलग-अलग राज्यों से BLO के काम के दबाव में जान देने या फिर अधिकारियों की तरफ से दबाव के आरोप लगाकर नौकरी छोड़ने, काम छोड़ने की खबरें आ रही हैं.
देश के 12 राज्यों में 51 करोड़ से अधिक मतदाताओं के घर जब अभी पांच लाख 32 हजार बीएलओ या तो फॉर्म दे चुके हैं या फॉर्म ले रहे हैं, तब इस बार के SIR के 22 दिनों में 7 राज्यों में 25 बीएलओ की मौत ने चिंता बढ़ा दी है. जहां मध्य प्रदेश में 9, उत्तर प्रदेश और गुजरात में चार-चार पश्चिम बंगाल और राजस्थान में तीन-तीन, तमिलनाडु-केरल में तीन-तीन बीएलओ के काम करने के दौरान या फिर काम के दबाव की वजह या तो जान गई या फिर आरोप लगा कि काम का दबाव बढ़ने पर जान दे दी. हांलाकि चुनाव आयोग या उससे जुड़े जिले के अधिकारी इन आरोपों को नहीं मानते. उनका कहना है कि जांच हो रही है. लेकिन सवाल है कि क्या समस्या को जड़ से समझा जा रहा है?
ऐसे में पांच सवालों के जवाब जानना बेहद जरूरी है. सवाल नंबर 1- क्या देश के 12 राज्यों में BLO पर कुछ अफसर इतना दबाव बना रहे हैं कि वो जान दे दे रहे हैं? सवाल नंबर 2- क्या कुछ अफसर राजनीतिक मंशा से SIR प्रक्रिया में लगे BLO पर प्रेशर बना रहे हैं? सवाल नंबर 3- क्या सिस्टम की खामी का नतीजा BLO की जान तक पर भारी पड़ रहा है? सवाल नंबर 4- क्या जिनके पास पहले से काम है, उन्हें BLO का अतिरिक्त काम देने से परेशानी बढ़ी है? -सवाल नंबर 5- कहीं पर BLO सम्मानित हो रहे हैं, कहीं पर जान दे रहे हैं. समस्या की वजह क्या है?
कहीं सुसाइड तो कहीं हार्ट अटैक से मौत
उत्तर प्रदेश के जौनपुर में एक परिवार इसलिए टूट गया है, क्योंकि बेटा जो गोंडा में शिक्षक था BLO की ड्यूटी कर रहा था, उसने सुसाइड कर लिया. विपिन यादव ने गोंडा में BLO का काम करते हुए अधिकारियों पर काम के दबाव का आरोप लगाकर जहर खा लिया. उन्हें जान बचाने को लखनऊ तक भेजा गया, पर वह नहीं बच सके. काम का दबाव विपिन यादव पर कैसा था? क्या केवल 4 दिसंबर तक फॉर्म देने, जमा करने और डेटा भरने को लेकर दबाव था या फिर कुछ और. ये अपने आखिराी वीडियो में विपिन यादव नहीं बोल पाए. लेकिन उनके परिजनों ने गंभीर आरोप लगाया है. आरोप है कि ओबीसी का वोट काटने का दबाव दिया जा रहा था. अधिकारियों ने हर आरोप की जांच के लिए कमेटी बना दी है.
इसी तरह यूपी के ही बरेली में बीएलओ का काम करते सर्वेश कुमार की भी हार्ट अटैक से मौत हो गई. उनके परिवार के भाई जो खुद बीएलओ सुपरवाइजर हैं, बताते हैं कि वर्क लोड बहुत ज्यादा हो चुका है.
अब बात पश्चिम बंगाल की करें तो राज्य के दक्षिण 24 परगना जिले में बीएलओ का काम करते कमल नस्कर को हार्ट अटैक आ गया और उनकी मौत हो गई. दावा है कि बीएलओ कमल ने लगभग 1160 SIR फॉर्म इलाके के वोटरों के घर-घर पहुंचा दिए थे, लेकिन उनमें से वह केवल 20 फॉर्म ही वापस ला पाए. जबकि दबाव था कि 26 से पहले सारे फॉर्म लेकर आ जाओ. मृतक की बेटी ने आरोप लगाया कि उनके पिता इस काम की वजह से मानसिक तनाव में थे, इसलिए वे बीमार पड़ गए और यह दबाव सहन नहीं कर पाए.
कई राज्यों में बीएलओ सम्मानित भी हुए
देश में कई राज्यों में ऐसे BLO सम्मानित भी किए जा रहे हैं, जिन्होंने तय समय सीमा से पहले अपने क्षेत्र के वोटर को फॉर्म देकर, भरवाकर उसे डिजिटली अपडेट भी कर लिया. लेकिन ये संख्या कम है. वो तादाद ज्यादा है, जिनके पास अपनी शिकायत है. देश में 22 दिन के भीतर 25 BLO की मौत के मामले में तीन बातें सामने आई हैं. पहली ये कि केवल गोंडा के BLO की मौत में आरोप राजनीतिक मंशा से दबाव का लगा है. दूसरी बात ये है कि तमाम BLO की मौत हार्ट अटैक से होने पर आरोप काम के दबाव का लग रहा है और तीसरी बात ये है कि BLO की मौत या इस्तीफे की खबरों को राजनेता अपनी सियासत अनुसार मोड़ रहे हैं.
अखिलेश यादव से लेकर ममता बनर्जी ने एसआईआर से मौत मामलों को जोड़ा और केंद्र सरकार पर निशाना साधा. राहुल गांधी भी जौनपुर के रहने वाले गोंडा के बीएलओ विपिन यादव के परिजनों के आरोप के आधार पर चुनाव आयोग और बीजेपी दोनों पर वार कर रहे हैं. उनका कहना है कि SIR के नाम पर पिछड़े-दलित-वंचित-गरीब वोटरों को लिस्ट से हटाकर BJP अपनी मनमाफिक वोटर लिस्ट तैयार कर रही है. ECI लोकतंत्र की हत्या की ज़िम्मेदार है.
इस बीच भोपाल में यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ता SIR प्रक्रिया के विरोध में चुनाव आयोग के दफ्तर के बाहर प्रदर्शन करने पहुंचे. जिन्हें रोकने के लिए लाठीचार्ज, पानी की बौछार की गई.
काम के दबाव में पद भी छोड़ रहे बीएलओ
सियासी प्रदर्शन और आरोप के बीच अब जरूरत इस बात की है कि ग्राउंड पर समस्या को समझा जाए. क्योंकि 22 दिन में केवल 25 बीएलओ की काम के दबाव में मौत का दावा ही नहीं, बल्कि पद छोड़ने की भी खबरें आई हैं. जैसे उत्तर प्रदेश के नोएडा से इस्तीफा वायरल हुआ. कविता नागर नाम की टीचर की तरफ से इस्तीफा देते हुए लिखा गया कि मैं हाजीपुर में टीचर हूं. 20 साल से काम कर रही हूं. लेकिन अब बीएलओ के तौर पर काम करना कठिन हो गया है. फील्ड में लोगों का व्यवहार और अधिकारियों का रवैया बहुत दुखद है. मानसिक रूप से परेशान हूं. इस्तीफा दे रही हूं. बता दीजिए BLO वाला सारा सामान किसको सौंप दूं. हांलाकि विभाग कहता है कि ये इस्तीफा बस वायरल है, विभाग को नहीं मिला है.
नोएडा में निर्देश दे दिया गया है कि कोई भी अधिकारी-कर्मचारी बिना इजाजत छुट्टी नहीं ले सकते. सार्वजनिक अवकाश वाले दिन भी मुख्यालय छोड़ने से पहले इजाजत लेनी होगी. नोएडा में पहले ही 60 BLO, 7 सुपरवाइजर पर लापरवाही बरतने को लेकर FIR दर्ज कराई जा चुकी है. बांदा में 200 बीएलओ को नोटिस जारी हो चुका है. 70 बीएलओ का वेतन रोक दिया गया है. एफआईआर तक दर्ज कराने की चेतावनी दे दी गई है. श्रावस्ती में 5 BLO निलंबित, 45 का वेतन रोका गया और 27 नवंबर तक काम पूरा करने का अल्टीमेटम दे दिया गया है. इसीलिए सवाल है कि क्या ऐसे ही अल्टीमेटम, FIR दर्ज कराने की चेतावनी जैसे दबाव की वजह से वो बीएलओ टूट जा रहे हैं, जिन पर पहले से ही अपने काम की दूसरी जिम्मेदारियां भीं हैं.
ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि BLO को जमीनी स्तर पर जो समस्या हो रही है, उन पर गौर करके समाधान दिया जाए. जो शिक्षक BLO का काम कर रहे हैं, उन पर दोहरी जिम्मेदारी के बाद अतिरिक्त दबाव ना बनाया जाए. जहां भी फॉर्म ही BLO को देर से दिया गया है, वहां पर अधिकारी प्रेशर ना बनाएं. अगर कोई अधिकारी सियासी मंशा से दबाव बना रहा है तो उस पर जांच के बाद कार्रवाई हो. क्योंकि जितना जरूरी वोटर रिवीजन है, उतना ही जरूरी है कि किसी बीएलओ को किसी के दबाव की वजह से जान ना देनी पड़े.
आजतक ब्यूरो