पश्चिम बंगाल में नरसंहार का इतिहास काफी पुराना है. वाम मोर्चा के शासनकाल का चर्चित छोटो अंगारिया कांड भी बीरभूम की ताजा घटना जैसा था. बीरभूम की तरह ही वहां 11 लोगों को जलाकर मार डालने का आरोप लगा था. सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि इनमें से किसी का शव तक बरामद नहीं हो पाया. तब 4 जनवरी 2001 को मिदनापुर जिले के छोटो आंगरिया में एक घर में 11 टीएमसी कार्यकर्ताओं को कथित तौर पर जिंदा जला दिया गया था.
सीपीएम कार्यकर्ताओं ने लगाई आग
जिस समय यह कांड हुआ उस दिन शाम को जेल से छूटकर आए टीएमसी कार्यकर्ता बख्तार मंडल के घर पर टीएमसी कार्यकर्ताओं की मीटिंग चल रही थी. इस दौरान कथित सीपीएम कार्यकर्ताओं ने इस घर को घेर लिया और आग लगा दी. बताया जाता है कि लालबत्ती लगी गाड़ी में शवों को डालकर गायब कर दिया गया था.
तब ममता बनर्जी केंद्र सरकार में मंत्री थीं
जब यह कांड हुआ उस समय ममता बनर्जी केंद्र में बीजेपी सरकार में मंत्री थीं. कुछ महीने में ही मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई लेकिन अंततः सबूतों के अभाव में आरोपी बेकसूर साबित हुए.
बीरभूम में 11 किसानों को मार डाला गया
इस घटना से लगभग 1 साल पहले जुलाई 2000 में बीरभूम के नानूर में 11 भूमिहीन किसानों को जमीन विवाद में मार डाला गया था. इस बार भी आरोप सीपीएम समर्थित जमींदारों पर लगा था. शुरुआत में वाममोर्चा सरकार पर मामले की लीपापोती करने का भी आरोप लगा था. इस मामले में न्याय मिलते मिलते 10 साल का लंबा वक्त लगा और 2010 में सेशन कोर्ट ने 44 दोषियों को आजीवन कारादंड की सजा सुनाई. इस कांड के दोषी सीपीएम से जुड़े थे.
2007 में हुआ नंदीग्राम नरसंहार
नंदीग्राम में 14 मार्च 2007 को पुलिस की गोली से यहां 14 लोगों की मौत हो गई. नंदीग्राम में उस दौरान वाममोर्चा सरकार ने स्पेशल इकनॉमिक जोन के तहत जमीन अधिग्रहण शुरू किया था. इसका स्थानीय लोग विरोध कर रहे थे. इस विरोध में ममता बनर्जी की अग्रणी भूमिका थी. हालात यहां तक पहुंच गए कि पुलिस ने गोली चला दी. आरोप के मुताबिक पुलिस के साथ-साथ वाम मोर्चा के कई लोग भी शामिल थे. इस घटना का सीधा सीधा राजनीतिक फायदा ममता को मिला जिसने ममता को सत्ता के एक कदम करीब ला दिया.
मिदनापुर का गोलीकांड
नंदीग्राम की घटना को लोग भूले भी नहीं थे कि जनवरी 2011 में मिदनापुर के नेताई में कथित तौर पर सीपीएम के एक नेता के घर से अंधाधुंध फायरिंग में 9 लोगों की मौत हो गई, लेकिन इसके बाद बंगाल की सत्ता 34 साल के बाद ममता ने संभाल ली. हालांकि, हिंसा का चेहरा और चरित्र नहीं बदला.
एक हफ्ते में 26 की राजनीतिक हिंसा में मौत
पिछले पंचायत चुनाव में ममता सरकार पर जबरदस्त हिंसा का आरोप लगा और ममता सरकार अब तक हिंसा के आरोप से मुक्त नहीं हो पाई है. बीजेपी का आरोप है कि पिछले एक सप्ताह में लगभग 26 लोग बंगाल में राजनीतिक हिंसा की बलि चढ़ चुके हैं. कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक हिंसा के दमन करने की दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव, पुलिस व्यवस्था का राजनीतीकरण, राजनीति में गहरे पैठ कर चुका भ्रष्टाचार और अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही का गंभीर अभाव इस हिंसा की मुख्य वजह हैं.
अनुपम मिश्रा