यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड पर हिंदुओं की क्या चिंताएं हैं?

यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड का बहुसंख्यक आबादी पर असर क्या,छत्तीसगढ़ की लड़ाई सुलझा सकेगी कांग्रेस,बीजेपी का पसमांदा प्लान और पंजाब में फिर ड्रग्स समस्या की दस्तक? सुनिए ‘दिन भर’ में.

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दिन भर दिन भर

चेतना काला

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  • 28 जून 2023,
  • अपडेटेड 7:39 PM IST

यूनिफॉर्म सिविल कोड हिंदुओं को भी उतनी आशंकाएं

भारत के सभी नागरिकों के लिए एक जैसे क़ानून होने चाहिए; ये सवाल तब से हमारी नीतिगत बहस का हिस्सा रहा है, जब देश में ब्रिटिश सरकार का शासन था. हमारे संविधान में अपराधों पर सज़ा के प्रावधान सबके लिए बराबर हैं लेकिन सिविल मामलों में धार्मिक स्वतंत्रता और संस्कृति को ध्यान में रखते हुए कुछ छूटें रखी गई हैं.मिसाल के तौर पर, मुसलमानों का एक से ज़्यादा शादी करना जुर्म नहीं है और हिंदुओं को हिंदू यूनाइटेड फैमिली के तहत टैक्स में अतिरिक्त छूट मिलती है. 2024 चुनाव से ठीक पहले ये सवाल फिर चर्चा में आ गया है. ख़बरें है कि सरकार समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी यूसीसी पर बिल लाने की तैयारी कर रही है.यूनिफॉर्म सिविल कोड का विचार कहता है कि देश में रहने वाले सभी लोगों के लिए शादी, प्रॉपर्टी के अधिकार, तलाक और बच्चे की कस्टडी जैसे सिविल विषयों पर एक से नियम होने चाहिए, भले ही लोगों के धर्म, जाति, कल्चर अलग अलग हों. प्रधानमंत्री ने भी कल मध्य प्रदेश में अपनी रैली में इसका ज़िक्र किया. आज आम आदमी पार्टी ने भी इस मुद्दे पर अपना रुख़ साफ कर दिया और कहा कि वो यूनिफॉर्म सिविल कोड के पक्ष में है, बशर्ते वो सभी पक्षों से बात करके बनाया जाए और किसी पर थोपा न जाए. वहीं, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने की कोशिश का विरोध करने का फैसला किया है. उनका कहना है कि इसका ज़्यादा नुकसान मुसलमानों को होगा. लेकिन आज हम दूसरे पहलू पर बात करेंगे. चिंताएं बहुसंख्यक हिंदुओं की ओर से भी आ रही हैं कि समान नागरिक संहिता आने के बाद उनके कुछ अधिकारों में भी कटौती हो सकती है. यूनिफॉर्म सिविल कोड से मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड असहज है, समझ में आता है, पर बहुसंख्यक हिंदुओं की चिंताओं या आशंकाओं का आधार क्या है? सुनिए ‘दिन भर’ में.

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देव सिंह या बघेल..कब साफ होगा?

छत्तीसगढ़ में चुनाव हैं इसी बरस. कांग्रेस सत्ता में है, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की लीडरशिप में. लेकिन यहाँ कांग्रेस का हाल बाकी राज्यों से जुदा नहीं है. मुख्यमंत्री की कुर्सी पर यहाँ भी लड़ाई थी राजस्थान की ही तरह है. बस वहाँ सचिन पायलट हैं तो यहाँ टीएस देव सिंह. दो साल पहले ही टीएसदेव सिंह रायपुर से दिल्ली तक दौड़ लगा चुके हैं लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बन सके. उनके खेमे का दावा था कि पिछले चुनावों में कांग्रेस की जीत के बाद ढाई ढाई साल का फार्मूला तय हुआ था जिसे बघेल ने नहीं माना.अब जब चुनाव फिर से दस्तक दे रहे हैं, कांग्रेस इस लड़ाई को सुलझाने की कोशिश में है. आज दिल्ली में कांग्रेस के ये दोनों नेता राहुल गांधी से मिले. चुनाव में कांग्रेस जीतेगी या हारेगी ये बाद की बात है लेकिन ये मीटिंग किस बारे में थी और क्या इस मीटिंग में बघेल और टीएस देव की टसल पर भी बात हुई और चुनावों में जाने से पहले कांग्रेस इसे एड्रैस करना चाहेगी? सुनिए ‘दिन भर’ में.

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190 सीटों पर पसमांदा मज़बूत,बीजेपी का नया प्लान 

2024 चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी ने अपने जनाधार को बढ़ाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं. इसी कड़ी में पार्टी अरसे से सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े पसमांदा मुसलमानों को लुभाने की कोशिशें कर रही है. एक आकलन के मुताबिक, पसमांदा मुसलमान देश के पांच राज्यों में 190 लोकसभा सीटों पर मज़बूत असर रखते हैं. यही वजह है कि कल मध्य प्रदेश में नरेंद्र मोदी के भाषण में भी उनका ज़िक्र था. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि मुसलमानों की एकजुटता बीजेपी के लिए 2024 में एक बड़ा ख़तरा हो सकता है. इसकी एक चोट हाल के कर्नाटक चुनावों में बीजेपी झेल चुकी है. बीजेपी यही फॉर्मूला तोड़ना चाहती है. किन किन राज्यों में पसमांदा मुसलमानों का डॉमिनेंस है और वो लोकसभा चुनाव को कितना प्रभावित कर सकती है?सुनिए ‘दिन भर’ में.

पंजाब फिर ड्रग्स की जद में!

दो दिन पहले, यानी 26 जून को, पूरी दुनिया में इंटरनैशनल डे अगेंस्ट ड्रग्स अब्यूज मनाया गया. और इसी बीच पंजाब के भटिंडा में ड्रग ओवरडोज से दो लोगों की मौत हो गई. पंजाब में ड्रग्स की समस्या अरसे से है लेकिन आम आदमी पार्टी ने चुनाव जीतने से पहले ड्रग्स पर लगाम कसने के जो वादे किए थे, वो अब तक उनमें ख़ास सफलता नहीं पा सकी है. सूरत-ए-हाल ऐसा है कि सिर्फ अमृतसर में ही, नौ महीनों में ड्रग्स की लत ने 25 नौजवानों की जान ले ली. सुनिए ताज़ा स्थिति और इस समस्या पर सरकार क्या कर रही है ‘दिन भर’ में.

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