सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर एनिमल एक्टिविस्ट क्यों हैं खफा? जानिए- एनिमल बर्थ कंट्रोल कानून क्या कहता है

भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (AWBI) और केंद्र सरकार की अधिसूचनाएं आवारा कुत्तों के खाने से लेकर उनके अधिकारों तक के मुद्दों को कवर करती हैं. नियम साफ कहते हैं कि आवारा कुत्तों को न तो मारा जा सकता है और न ही उन्हें उनके क्षेत्र से हटाया जा सकता है.

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आवारा कुत्तों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विवाद (Photo: PTI) आवारा कुत्तों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विवाद (Photo: PTI)

अनीषा माथुर

  • नई दिल्ली,
  • 12 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 2:13 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली-एनसीआर की सड़कों से सभी बेघर कुत्तों को हटाकर शेल्टर होम में रखने का आदेश दिया, जिससे पशु अधिकार कार्यकर्ताओं में भारी नाराजगी देखी गई. लेकिन इस आदेश को कार्यकर्ताओं की ओर से आलोचना का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि उनका कहना है कि यह आदेश मौजूदा कानूनों और नियमों के खिलाफ है.

भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (AWBI) और केंद्र सरकार की अधिसूचनाएं आवारा कुत्तों के खाने से लेकर उनके अधिकारों तक के मुद्दों को कवर करती हैं. नियम साफ कहते हैं कि आवारा कुत्तों को न तो मारा जा सकता है और न ही उन्हें उनके क्षेत्र से हटाया जा सकता है.

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एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) नियम 2023 की धारा 11 के क्लॉज 7 के तहत स्पष्ट किया गया है कि किसी भी समय केवल एक ही क्षेत्र के कुत्तों को नसबंदी और टीकाकरण के लिए ABC सेंटर लाया जाएगा और अलग-अलग क्षेत्रों के कुत्तों को मिलाने से बचने का प्रयास किया जाएगा.

इसके अलावा क्लॉज 8 कहता है कि पकड़े गए सभी कुत्तों को ABC सेंटर पहुंचते ही एक निश्चित नंबर वाले कॉलर पहनाए जाएंगे. ये नंबर कैप्चर रिकॉर्ड से मेल खाएगा ताकि नसबंदी और टीकाकरण के बाद कुत्ते को उसी इलाके में छोड़ा जा सके, जहां से उसे पकड़ा गया था. 

नियमों के अनुसार, स्थानीय निकाय को कुत्तों को पकड़ना, उनका टीकाकरण और नसबंदी करना, पिल्लों के जन्म को रोकना और फिर उन्हें उसी जगह छोड़ना अनिवार्य है. इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी के लिए स्थानीय, राज्य और केंद्रीय स्तर पर मॉनिटरिंग और कार्यावन्वयन समिां होती हैं. 

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ABC नियम 2023 में कम्युनिटी एनिमल्स को खिलाने के लिए भी खास नियम हैं, जिसमें खाने के स्थान तय करने से पहले स्थानीय निवासियों से चर्चा करने और फीडिंग पॉइंट साफ रखने की ज़म्मेदारी फीडर्स की होती है. इसके साथ ही स्थानीय निकाय पर एनिमल हेल्पलाइन शुरू करने और ABC सेंटर बनाने की भी जिम्मेदारी है.

यदि कोई कुत्ता किसी को काट ले, तो उसे मानवीय तरीके से पकड़कर आइसोलेशन कैनल में रखा जाना चाहिए ताकि पशु चिकित्सक यह देख सकें कि वह केवल आक्रामक है या रेबीज या किसी अन्य बीमारी से पीड़ित है. अगर आक्रामकता बीमारी या चोट की वजह से है, तो पशु कल्याण संगठन इलाज करेगा. आक्रामक कुत्ते को निगरानी और इलाज के लिए संगठन को सौंपा जाएगा जबकि रेबीज पीड़ित कुत्ता आइसोलेशन में रखा जाएगा, जब तक कि उसकी प्राकृतिक मृत्यु न हो जाए.

सोमवार की सुनवाई के दौरान पशु अधिकार कार्यकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि मोहल्लों से आवारा कुत्तों को हटाकर सरकारी शेल्टर में भेजने का निर्देश AWBI के नियमों के खिलाफ है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि अभी नियम भूल जाइए… हकीकत यह है कि इन आवारा कुत्तों को सार्वजनिक पार्कों और इलाकों से हटाना होगा. हमें बच्चों को साइकिल चलाते, खेलते समय सुरक्षित रखना है. बुजुर्गों को भी सुरक्षित रखना है.

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दिल्ली राज्य पशु कल्याण बोर्ड की कार्यकारी समिति के सदस्य डॉ. एशर जेसुदॉस ने आज तक से बातचीत में कोर्ट के आदेश को अजीब बताते हुए कहा कि इसे लागू करने में गंभीर मुश्किलें हैं. उन्होंने बताया कि AWBI के नियम स्पष्ट रूप से कुत्तों को हटाने पर रोक लगाते हैं. यह अहिंसा और पशुओं पर क्रूरता रोकने की भावना के भी खिलाफ हैं. उन्होंने बताया कि मौजूदा में दिल्ली में केवल 20 पंजीकृत ABC सेंटर हैं, जिन्हें नगर निगम से पंजीकृत NGOs चलाते हैं. इनमें से हर शेल्टर में एक बार में 30–40 कुत्ते ही रखे जा सकते हैं. कुत्तों को लाकर नसबंदी की जाती है और ऑपरेशन से ठीक होने के बाद उन्हें वापस उनके इलाके में छोड़ दिया जाता है. कुछ निजी शेल्टर भी हैं, जिन्हें कार्यकर्ता चलाते हैं, लेकिन वे पंजीकृत नहीं हैं और उनका डेटा हमारे पास नहीं है.

उन्होंने नगर निगम दिल्ली के नसबंदी के आंकड़ों पर भी सवाल उठाते हुए कहा किए एमसीडी का दावा है कि पिछले पांच साल में सात लाख कुत्तों की नसबंदी हुई है जबकि सड़क पर कुत्तों की संख्या में कोई कमी नहीं दिखती. साफ है कि इसमें भ्रष्टाचार और गलत रिपोर्टिंग हो रही है.

भारती रामचंद्रन, फेडरेशन ऑफ इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन ऑर्गेनाइजेशन (FIAPO) के सीईओ भारती रामचंद्रन ने कोर्ट के आदेश को चौंकाने वाला फैसला बताते हुए कहा कि स्वस्थ, टीकाकृत कुत्तों को बड़े पैमाने पर शेल्टर में डालना अव्यावहारिक और अमानवीय है. भीड़भाड़ वाले शेल्टर में कुत्तों को अत्यधिक तनाव, चोट, बीमारियां और कष्ट झेलना पड़ता है और यह रेबीज रोकथाम जैसे प्रभावी उपायों से संसाधनों को हटा देता है. डब्ल्यूएचओ और अन् वैश्विक संस्थाएं कहती हैं कि शेल्टर सिर्फ बीमार, घायल या सड़कों पर जीवित न रह सकने वाले कुत्तों के लिए होने चाहिए, जबकि स्वस्थ कम्युनिटी डॉग्स को उनके मूल इलाके में रहने दिया जाए.

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रामचंद्रन ने कहा कि इसका असली समाधान है दिल्ली के नसबंदी और टीकाकरण कार्यक्रमों को बड़े पैमाने पर लागू करना, कचरा प्रबंधन सुधारना ताकि इंसानों और कुत्तों का संघर्ष कम हो और सह-अस्तित्व पर सार्वजनिक जागरूकता अभियान चलाना. यही तरीका मानव और पशु दोनों की रक्षा करता है.

कार्यकर्ताओं का कहना है कि वे इस आदेश को चुनौती देने के कानूनी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं. इनमें आदेश में संशोधन के लिए आवेदन करना, समयसीमा बढ़ाना और कुत्तों को पकड़कर हटाने के आदेश को रद्द करना शामिल है. कार्यकर्ता पीठ के समक्ष पुनर्विचार याचिका दायर कर सोमवार के आदेश को पूरी तरह वापस लेने और बदलने पर भी विचार कर सकते हैं, क्योंकि यह एनिमल वेलफेयर एक्ट के तहत वैधानिक नियमों के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि हम कानूनी सलाह ले रहे हैं. समय आने पर कोर्ट जाएंगे.

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