बांके बिहारी मामले में SC की दखल, कॉरिडोर अध्यादेश पर यूपी सरकार से जवाब तलब

मथुरा के वृन्दावन में स्थित प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर बनाने के लिए आनन-फानन में जारी उत्तर प्रदेश सरकार के अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. मंदिर में ठाकुर बांके बिहारी के सेवायतों इस अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिया. सरकार को कोर्ट ने 29 जुलाई तक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है.

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सुप्रीम कोर्ट ने बांके बिहारी मामले में सेवायतों की याचिका पर सुनवाई को माना (फोटो क्रेडिट- AP) सुप्रीम कोर्ट ने बांके बिहारी मामले में सेवायतों की याचिका पर सुनवाई को माना (फोटो क्रेडिट- AP)

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 27 मई 2025,
  • अपडेटेड 4:56 PM IST

उत्तर प्रदेश के मथुरा के वृंदावन में स्थित प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर मामले में नया मोड़ आया है. मंदिर के सेवायतों ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. 

सेवायतों की आपत्ति: हमें पक्षकार क्यों नहीं बनाया गया?

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि मंदिर की निजी संपत्ति और फंड का इस्तेमाल सरकार कैसे कर सकती है, जबकि इस पूरे मामले में सेवायतों और मंदिर प्रबंधन समिति का पक्ष सुना ही नहीं गया. हाईकोर्ट ने उन्हें पक्षकार नहीं बनाया.

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कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में रखी सेवायतों की बात

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि मंदिर की जमा पूंजी और निजी संपत्ति का इस्तेमाल इस प्रकार नहीं किया जा सकता. हमें अपनी बात रखने का अवसर दिया जाए. उन्होंने कहा कि सरकार बिना सहमति के मंदिर कोष लेना चाहती है और मंदिर के पैसे से जमीन खरीदना चाहती है.

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: सीधे याचिका दाखिल क्यों की गई?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी को उसके फैसले से आपत्ति है तो पुनर्विचार याचिका दाखिल की जानी चाहिए, इस तरह सीधे याचिका दाखिल नहीं होनी चाहिए थी. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को पक्ष रखने की अनुमति दी और सरकार से पूछा कि इतनी जल्दी क्या थी?

जस्टिस नागरत्ना की सख्त टिप्पणी: यह कानून का टूटना है

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जस्टिस नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने टिप्पणी की कि यह कानून का पूरी तरह से ब्रेक डाउन जैसा है. कोर्ट ने यूपी सरकार को निर्देश दिया कि 26 मई को जारी अध्यादेश की कॉपी और परियोजना की पूरी रूपरेखा हलफनामे के साथ 29 जुलाई तक कोर्ट में पेश की जाए.

सरकार का पक्ष: ट्रस्ट ही करेगा निर्माण, सरकार नहीं करेगी हस्तक्षेप

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इस परियोजना में ट्रस्ट को ही निर्माण का जिम्मा सौंपा गया है. सरकार खुद फंड का इस्तेमाल नहीं करेगी. अधिगृहित की जाने वाली भूमि भी देवता के नाम पर होगी, न कि सरकार के. मंदिर के प्रबंधन का पूरा जिम्मा भी ट्रस्ट को सौंपा गया है. सरकार ने यह भी तर्क दिया कि मंदिर परिसर के चारों ओर तंग गलियां हैं, जहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होती है और भगदड़ में मौतें भी हो चुकी हैं. ऐसे में कॉरिडोर बनाना आवश्यक है.

सरकार ने कहा कि ये मंदिर निजी नहीं है. यहां 2016 से एक न्यायिक अधिकारी तैनात है. वहीं ट्रस्ट को संचालित कर रहा है.

सेवायतों की आपत्ति: मंदिर फंड से 500 करोड़ ट्रांसफर का विरोध

याचिकाकर्ता ने 600 करोड़ की इस परियोजना और मंदिर कोष से 500 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए जाने के आदेश का विरोध किया है. उन्होंने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में तो गोवर्धन के गिरिराज मंदिर के सेवायतों का विवाद था, लेकिन कोर्ट ने बिना उनकी जानकारी के बांके बिहारी मंदिर को लेकर निर्णय दे दिया.

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अब इस मामले की अगली सुनवाई 29 जुलाई को होगी.

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