चुनावी घोषणा पत्र में आर्थिक सहायता की गारंटी का वादा उम्मीदवार का भ्रष्ट आचरण नहीं है: सुप्रीम कोर्ट

शिकायतकर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि कांग्रेस ने 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणा पत्र में जनता को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से वित्तीय मदद देने का वादा किया था, जो भ्रष्ट चुनावी आचरण के समान है.

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कनु सारदा

  • नई दिल्ली,
  • 27 मई 2024,
  • अपडेटेड 11:56 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि चुनावी घोषणापत्र में राजनीतिक दलों की ओर से किए गए वादे उस पार्टी के उम्मीदवार की ओर से भ्रष्ट आचरण नहीं मानी जाएंगी. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और केवी विश्वनाथन की पीठ ने एक पक्ष की ओर से दी गई दलीलों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में जो वादे करता है, जिनमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तीय सहायता दी जाती है, उसे उम्मीदवार का भ्रष्ट आचरण नहीं माना जा सकता. शीर्ष कोर्ट ने कहा कि इन मामलों के तथ्यों और परिस्थितियों में इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है. हमें ऐसे सवाल पर विस्तार से चर्चा करने की कोई जरूरत नहीं है.

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याचिकाकर्ता चामराजपेट विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से मतदाता है
याचिकाकर्ता ने कर्नाटक हाई कोर्ट की ओर से पारित एक आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. याचिकाकर्ता चामराजपेट विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से मतदाता है. उसने 2023 के कर्नाटक राज्य विधानमंडल चुनाव में उम्मीदवार बी ज़ेड ज़मीर अहमद खान के चयन को चुनौती देते हुए एक चुनाव याचिका दायर की. खान कांग्रेस से विजयी उम्मीदवार थे. याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया.

शिकायतकर्ता की थी ये दलील
शिकायतकर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि कांग्रेस ने 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों के लिए अपने चुनावी घोषणा पत्र में जनता को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से वित्तीय मदद देने का वादा किया था, जो भ्रष्ट चुनावी आचरण के समान है. कर्नाटक हाई कोर्ट ने माना था कि किसी पार्टी की ओर से अपने घोषणापत्र में उस नीति की घोषणा जिसे वे लाने का इरादा रखते हैं, उसे जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 के प्रयोजन के लिए भ्रष्ट आचरण नहीं माना जा सकता है.

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हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, कांग्रेस की पांच गारंटियों को सामाजिक कल्याण नीतियों के रूप में माना जाना चाहिए. वे आर्थिक रूप से व्यवहार्य हैं या नहीं, यह पूरी तरह से एक अलग पहलू है. उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि यह अन्य दलों को दिखाना है कि किस प्रकार उक्त योजनाओं का कार्यान्वयन राज्य के खजाने के दिवालियापन के समान है और इससे केवल राज्य में कुशासन हो सकता है.

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