'ईको सेंसिटिव जोन घोषित हो हिमालय', जोशीमठ आपदा पर एक्सपर्ट्स की राय

विशेषज्ञों ने जोशीमठ को लेकर सरकार से समस्या के समाधान के लिए लॉन्ग टर्म उपाय करने पर विचार करने के लिए भी कहा. उन्होंने कहा कि  अगर मानव लालच से प्रेरित तथाकथित विकास की जांच नहीं की जाती है तो नैनीताल, मसूरी और गढ़वाल के अन्य क्षेत्रों में भी इसी तरह की स्थिति पैदा हो सकती है.

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जोशीमठ की दरकते घर जोशीमठ की दरकते घर

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 29 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 11:59 AM IST

विशेषज्ञों ने हिमालय को एक पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र घोषित करने की मांग करते हुए कहा है कि उत्तराखंड में विकास के नाम पर अनियोजित और अनियंत्रित निर्माण ने जोशीमठ को डूबने के कगार पर ला दिया है. स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) द्वारा शनिवार को आयोजित एक गोलमेज बैठक में पारित एक प्रस्ताव में विशेषज्ञों ने बाढ़ प्रभावित जोशीमठ में मौजूदा स्थिति से निपटने के लिए उठाए गए कदमों को "अपर्याप्त" करार दिया है.

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उन्होंने सरकार से समस्या के समाधान के लिए लॉन्ग टर्म उपाय करने पर विचार करने के लिए भी कहा. उन्होंने कहा कि अगर मानव लालच से प्रेरित तथाकथित विकास की जांच नहीं की जाती है तो नैनीताल, मसूरी और गढ़वाल के अन्य क्षेत्रों में भी इसी तरह की स्थिति पैदा हो सकती है.

उनके प्रस्ताव में कहा गया है कि हिमालय को एक पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र घोषित करें और तबाही मचाने वाली बड़ी परियोजनाओं को विनियमित करें."जबकि चार धाम सड़क चौड़ीकरण परियोजना के तहत सड़क की चौड़ाई को इंटरमीडिएट स्टैंडर्ड के लिए विनियमित किया जाना चाहिए ताकि इलाके को नुकसान कम हो सके. चार धाम रेलवे परियोजना का पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिए.

 प्रस्ताव में कहा गया है, "चारधाम रेलवे एक अति महत्वाकांक्षी परियोजना है जो बहुत तबाही मचाएगी और पर्यटन केंद्रित राज्य उत्तराखंड पर और अधिक बोझ डालेगी. इस परियोजना का पुनर्मूल्यांकन और फिर से विचार किया जाना चाहिए." यह सुनिश्चित करने के लिए उत्तराखंड की एक विस्तृत वहन क्षमता का आकलन किया जाना चाहिए कि इन स्थानों पर आने वाले पर्यटकों की संख्या का हिसाब रखा जाए और यह भी सुनिश्चित किया जाए कि पर्यटकों के फ्लो से पर्यावरण पर बोझ न पड़े. 'इमीनेट हिमालयन क्राइसिस' विषय पर विचार-विमर्श के लिए आयोजित गोलमेज सम्मेलन में केंद्र की चार धाम परियोजना पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति के पूर्व अध्यक्ष रवि चोपड़ा, इसके पूर्व सदस्य हेमंत ध्यानी और एसजेएम के सह-संयोजक अश्वनी महाजन ने भाग लिया.  

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मौजूदा स्थिति से निपटने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को "अपर्याप्त" करार देते हुए प्रस्ताव में कहा गया है कि जहां एक तरफ जोशीमठ के डूबने के हालात हैं, वहीं दूसरी तरफ केवल प्रभावित निवासियों के पुनर्वास के माध्यम से इसका समाधान निकाला जा रहा है.  "वर्तमान में इस क्षेत्र में मेगा परियोजनाओं में - राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (एनटीपीसी) जल विद्युत परियोजना, हेलंग बाईपास सड़क निर्माण जो चारधाम सड़क चौड़ीकरण परियोजना और रोपवे परियोजना पर काम हो रहा था. इसको स्थानीय विरोध के चलते जिला प्रशासन ने रोक दिया है .

यह देखा जा सकता है कि भागीरथी ईएसजेड जैसे क्षेत्र, जहां बड़े पैमाने पर मेगा परियोजनाओं को लागू नहीं किया गया है और स्थानीय पारिस्थिति  के साथ छेड़छाड़ नहीं की गई है, वहां भूमि धंसाव, भूस्खलन की घटनाएं और विनाशकारी आपदा घटनाएं न्यूनतम हैं. "यह पर्याप्त सबूत है कि उत्तराखंड में हर जगह अंधाधुंध, अनियोजित मजबूत निर्माण ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आपदा जैसी स्थिति को प्रभावित किया है."
 

 

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