वो रहस्यमयी आग... जिसने भारत के सेमीकंडक्टर ड्रीम को दशकों पीछे कर दिया, 7 फरवरी 1989 को क्या हुआ था?

1989 में मोहाली के सेमीकंडक्टर प्लांट में लगी इस आग से तब तो 75 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था. लेकिन देश को इसकी असली कीमत दशकों बाद चुकानी पड़ी. 2024 में भारत ने 20 अरब डॉलर (1.71 लाख करोड़ रुपये) मूल्य के सेमीकंडक्टर चिप्स का आयात किया. देश दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले इस इंडस्ट्री में काफी पिछड़ चुका था.

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भारत ने 2024 में 20 अरब डॉलर के चिप्स का आयात किया. (Photo: ITG) भारत ने 2024 में 20 अरब डॉलर के चिप्स का आयात किया. (Photo: ITG)

संदीप उन्नीथन

  • नई दिल्ली,
  • 19 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 9:10 AM IST

दिन 7 फरवरी 1989. चंडीगढ़ के मोहाली स्थित सेमीकंडक्टर कॉम्प्लेक्स लिमिटेड में लगी एक रहस्यमयी आग ने इस प्लांट में प्रोडक्शन लाइन को नष्ट कर दिया. सेमीकंडक्टर कॉम्प्लेक्स लिमिटेड (SCL) की स्थापना 1976 में स्वदेशी चिप्स बनाने के लिए की गई थी. इस सेमीकंडक्टर प्लांट ने 1984 में उत्पादन शुरू किया था और 5000 नैनोमीटर चिप्स का निर्माण कर रहा था. तकनीक और परफॉर्मेंस के मामले में ये चिप्स तब दुनिया के दूसरे देशों से सिर्फ एक जेनेरेशन ही पीछे था. 

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यह दिग्गज टेक कंपनी Intel द्वारा विश्व का पहला कमर्शियल माइक्रोप्रोसेसर बनाने के सिर्फ़ 13 साल बाद की बात है. और चिप निर्माण में जिस दिग्गज कंपनी ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (TSMC) का आज दबदबा दुनिया भर में है, उसके उत्पादन शुरू करने के तीन साल बाद की बात है. 

सरकारी प्रोजेक्ट होने के बावजूद SCL ने कमाल की तरक्की की थी. इसमें रिसर्च और डेवलपमेंट भी शामिल था. ये संस्था और अधिक एडवांस सेमीकंडक्टर पर काम कर रही थी. लेकिन एक रहस्य की आग ने उस सपने को जलाकर राख कर दिया. 

आधिकारिक तौर पर इस आग के कारण कभी पता नहीं चला, लेकिन इसके पीछे कई थ्योरीज हैं. कुछ लोग मानते हैं कि यह एक दुर्घटना थी, जबकि अन्य मानते हैं कि यह एक साजिश की आग थी. इस आग की जांच का एक प्रमुख निष्कर्ष यह था कि आग की घटना प्लांट में एक साथ कई जगहों पर हुई थी, जिससे साजिश की थ्योरी को बल मिला.

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1989 में लगी इस आग से 75 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था. लेकिन देश को इसकी असली कीमत दशकों बाद चुकानी पड़ी. 2024 में भारत ने 20 अरब डॉलर (1.71 लाख करोड़ रुपये) मूल्य के सेमीकंडक्टर चिप्स का आयात किया. देश का आयात हर साल 18% बढ़ रहा है क्योंकि सेमीकंडक्टर की जरूरत हर जगह है. चिप्स स्मार्टफोन से लेकर चंद्र रॉकेट और टेलीविजन से लेकर क्रूज मिसाइलों तक हर चीज को शक्ति प्रदान करते हैं.

एससीएल को अपना ऑपरेशन फिर से शुरू करने में लगभग एक दशक लग गया. और जब 1997 में आखिरकार कंपनी दोबारा खुली, तो वह दुनिया के बाकी हिस्सों से पहले ही पिछड़ चुकी थी. 2000 में शर्तों को लेकर संभावित निजी निवेशकों के साथ मतभेदों के कारण एससीएल की इक्विटी का एक हिस्सा बेचने की सरकार की कोशिशें नाकाम हो गईं. 

नौकरशाही की देरी ने भी प्रगति में बाधा डालने में बड़ी भूमिका निभाई.

2006 में सरकार ने कंपनी को अंतरिक्ष विभाग के अंतर्गत एक अनुसंधान एवं विकास केंद्र के रूप में पुनर्गठित करने का निर्णय लिया और इसका नाम बदलकर "सेमीकंडक्टर लैब" कर दिया.

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SCL को 2023 की शुरुआत में इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के अधीन कर दिया गया. SCL अब केवल रक्षा, अंतरिक्ष और सामरिक अनुप्रयोगों के लिए 180 नैनोमीटर चिप्स का उत्पादन करती है, जिन्हें आयात के लिए अत्यधिक संवेदनशील माना जाता है. तुलना के लिए समझ लीजिए कि TSMC 3 नैनोमीटर का चिप्स बनाती है और इस वर्ष 2 नैनीमीटर पर स्विच कर रही है.

भारत में बड़े पैमाने पर स्वदेशी चिप्स बनाने की चाहत आखिरकार 2022 में 76,000 करोड़ रुपये के बजट वाले भारत सेमीकंडक्टर मिशन के शुभारंभ के साथ परवान चढ़ी.

इस साल अगस्त तक सरकार ने छह राज्यों में 1.60 लाख करोड़ रुपये के निवेश वाली 10 परियोजनाओं को मंजूरी दे दी थी. भारत स्पष्ट रूप से अपने सभी चिप्स एक ही प्लांट में नहीं बनाना चाहता है.

15 अगस्त 2025 को प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की कि भारत 2025 के अंत तक अपनी पहली सेमीकंडक्टर चिप का उत्पादन करेगा. पौराणिक फीनिक्स पक्षी की तरह भारत का चिप सपना भी राख से उठ खड़ा होने वाला है.
 

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