बिहार में पिछले साल हुए चुनाव के दौरान आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों के बारे में जनता को समुचित प्रचार माध्यमों से जानकारी ना देने पर सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को अवमानना नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. ये नोटिस मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा को भी भेजे गए हैं. जस्टिस रोहिंटन एफ नरीमन, जस्टिस हेमन्त गुप्ता और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने वकील बृजेश सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए पूछा है कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट दिशा निर्देशों के बावजूद राजनीतिक पार्टियों ने उन पर पूरी तरह से अमल नहीं किया तो आयोग ने उनके खिलाफ क्या एक्शन लिया?
नोटिस का जवाब चार हफ़्ते में देना है जिसके बाद नौ मार्च को अगली सुनवाई होगी. याचिका के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने साल भर पहले 13 फरवरी 2020 को अपने फैसले में आपराधिक चरित्र वाले उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने का टिकट देने की दशा में सम्बन्धित राजनीतिक दल उनके अपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी अपनी वेबसाइट के साथ-साथ प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ज़रिए जनता तक पहुंचाने के निर्देश दिए थे. कोर्ट ने यह भी कहा था कि राजनीतिक दलों को जनता के सामने ये स्पष्टीकरण देना होगा कि आखिर आपराधिक पृष्ठभूमि और रिकॉर्ड वाला उम्मीदवार ही उन्होंने क्यों चुना?
कोर्ट ने कहा था कि ये जानकारी चुनाव के विभिन्न चरणों में तीन बार प्रकाशित करनी होगी. नामांकन के बाद फिर फाइनल सूची जारी होने के 48 घंटों के अंदर और फिर मतदान से दो दिन पहले भी यह जानकारी साझा करने के निर्देश दिए गए थे. इस प्रक्रिया के लिए निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों को फार्म C7 और C 8 भी जारी किया था.
याचिकाकर्ता की दलील थी कि बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान सुप्रीम कोर्ट के इस सुधारात्मक और पारदर्शी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने वाले आदेश और दिशानिर्देश का बिल्कुल पालन नहीं हुआ. जिन इक्का दुक्का उम्मीदवारों ने इसका पालन भी किया तो उन्होंने खानापूर्ति के लिए ऐसा किया है. उम्मीदवारों ने अपनी जान छुड़ाने के लिए छोटे और बेहद मामूली प्रसार संख्या वाले अनाम से अखबार में छोटी सी जानकारी छपवा दी. जबकि निर्वाचन आयोग का मकसद था कि वोट तय करने से पहले मतदाता को सभी उम्मीदवारों के बारे में जानकारी मिल जाए तब वो तय करे कि आखिर कौन उनका सही नुमाइंदा हो सकता है.
संजय शर्मा