'जब भी मौका मिलता अंग्रेजों की गाड़ी की पेट्रोल टंकी में चीनी डाल देता', जंग-ए-आजादी में रतन टाटा के लड़कपन का वो किस्सा...

Ratan Tata life story: रतन टाटा के घर की बालकनी बंबई के आजाद मैदान की ओर खुलती थी. ये वही जगह थी जहां से महाराष्ट्र और देश के स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजों के इंकलाब कर रहे थे. यहां रतन टाटा कई बार लाठी चार्ज, हिंसा और गिरफ्तारियां देखते थे. लाजिम है कि उनका बालमन भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर रहा होता था.

Advertisement
रतन टाटा, (फाइल फोटो) रतन टाटा, (फाइल फोटो)

पन्ना लाल

  • नई दिल्ली,
  • 10 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 3:26 PM IST

रतन टाटा तब पैदा हुए थे जब नए भारत का सपना बुना ही जा रहा था. 1937 में जन्में रतन टाटा ने ब्रिटिश इंडिया की यादें साझा की थी. एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था कि एक बच्चे के रूप में भारत को गुलाम देखकर उनके अंदर बैचेनी थी. वे भारत को जीतता हुआ देखना चाहते थे. 

रतन टाटा का घर तत्कालीन बंबई में आजाद मैदान के आस-पास था. रतन टाटा बताते हैं कि वे अपने घर की बालकनी से अक्सर आजाद मैदान की हलचलों की देखते थे. जहां अक्सर स्वतंत्रता सेनानियों का मजमा लगा हुआ होता, नेता आते, भाषणबाजी होती और साथ ही साथ होता अंग्रेज सिपाहियों से इनका टकराव. रतन टाटा के अनुसार वे कई बार अपने घर से आजाद मैदान में लाठीचार्ज, दंगा और हिंसा की तस्वीरें देखा करते थे. 

Advertisement

आजाद मैदान और रतन टाटा की घर की बालकनी

पत्रकार करन थापर के साथ एक इंटरव्यू के दौरान रतन टाटा ने कहा था कि वे भी अपने साथियों के साथ मिलकर अंग्रेजों की गाड़ियों की फ्यूल टंकी में चीनी डाल दिया करते थे. दरअसल यह एक बाल मन का अंग्रेजों के खिलाफ प्रतिरोध था. 

यह भी पढ़ें: Ratan Tata: मर्सिडीज से डील के लिए जर्मनी गए थे रतन टाटा... लौटे तो JRD ने कहा- आज मेरे पास तुम्हारे लिए कुछ नया है, अब TATA Empire तुम संभालो!

रतन टाटा ने इस वाकये को कुछ यूं बताया था, "मुझे आजादी आंदोलन की बहुत सारी चीजें तो याद नहीं है लेकिन मुझे दंगें याद हैं, मेरा पारिवारिक घर आजाद मैदान के नजदीक वाली स्ट्रीट में है, इस आजाद मैदान में कई बैठकें होती थी, लाठी चार्ज होते थे, मुझे याद है अपने बालकनी से मैं ये सब देखा करता था."

Advertisement

ब्रिटिश कारों की टंकियों में डाल देता था चीनी

रतन टाटा के अनुसार ये उनके लड़कपन का जोश था और वे ये चाहते थे कि अंग्रेज भारत से भाग जाए. इसके लिए वे भी अपने साथियों के साथ कुछ करते थे. रतन टाटा ने कहा था, "मुझे याद है, हम लड़के ब्रिटिश सांसदों की कारों और मोटरसाइकिल की पेट्रोल टंकियों में चीनी डाल दिया करते थे, जब भी हमें मौका मिलता हम इस तरह की चीजें किया करते थे." रतन बताते हैं कि ऐसा उन्होंने कई ब्रिटिश कारों में किया था. 

आप सोच सकते हैं कि कारों की पेट्रोल-डीजल टंकी में चीनी डाल देने से क्या हो सकता है?

दरअसल किसी भी मशीन के फ्यूल टैंक में चीनी डाल देना उस मशीन को खराब कर देने के लिए काफी है. चीनी ईंधन फिल्टर को बंद कर सकती है, जिससे ईंधन की आपूर्ति बंद हो जाती है और इंजन बंद हो जाता है. चीनी के क्रिस्टल एयर फिल्टर को जाम कर सकते हैं, जिससे हवा का प्रवाह कम होता है और इंजन खराब हो जाता है. कुल मिलाकर एक बार चीनी जाने से इंजन का कबाड़ा होना तय है.

रतन टाटा अपने भाई के साथ (फाइल फोटो)

दरअसल रतन टाटा का बालमन अंग्रेजों के प्रति अपने गुस्से को इन्हीं तरकीबों से निकालते थे.  

Advertisement

परिवार के अंग्रेजों से नजदीकी रिश्ते रहे
  
हालांकि रतन टाटा का परिवार ब्रिटिश रॉयल्टी के प्रभाव से अछूता नहीं था. रतन टाटा का पालन-पोषण उनकी दादी ने किया था. कुलीन और संभ्रांत पारसी परिवार होने की वजह से इनकी दादी का ब्रिटिश राज परिवार के साथ उठना-बैठना था. रतन टाटा खुद बताते हैं, " हां मेरी दादी का ब्रिटिश रॉयल परिवार के साथ नजदीकी रिश्ते थे. मेरी दादी और सर रतन टाटा क्वीन मैरी और किंग जॉर्ज पंचम के बहुत करीबी थे." 

हालांकि रतन टाटा ये भी कहते हैं कि ये उनकी जिंदगी का हिस्सा था, ये मेरी जिंदगी की कहानी नहीं थी. 

रतन टाटा के अनुसार उनके पिता चाहते थे कि वे इंग्लैंड जाएं और चार्टर्ड अकाउंटेंट की पढ़ाई पढ़े. लेकिन रतन टाटा के अनुसार ,'वे वो विद्रोही थे जो यूनाइटेड स्टेट्स जाना चाहते थे और आर्किटेक्चर और इंजीनियरिंग पढ़ना चाहते थे. लेकिन उनके पिता को ये बात पसंद नहीं थी. फिर भी किसी तरह से उन्होंने अपने सपने को पूरा किया और अमेरिका में आर्किटेक्चर और इंजीनियरिंग  की पढ़ाई की.  

उन्होंने 1959 में कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर में दाखिला लिया और 1962 में बी.आर.ए. (बैचलर ऑफ आर्किटेक्चर) की डिग्री प्राप्त की. कॉर्नेल यूनिवर्सिटी की जिंदगी रतन टाटा के जीवन में कई बदलाव लेकर आई. रतन ने कहा था कि यहां टाटा ब्रांड नेम का कोई मतलब नहीं था. वे यहां के 20 हजार छात्रों के बीच एक छात्र थे. 

Advertisement

रतन कहते हैं, "उन दिनों जब कोई भी इंडियन विदेश पढ़ने जाता तो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया बहुत कम अलाउंस देता था और मैं अमेरिका में कोई अमीर भारतीय नहीं बल्कि संघर्ष कर रहा एक छात्र था. मुझे ये चिंता रहती थी कि मेरा अगला चेक आने से पहले महीने का खर्चा पूरा होगा या नहीं."

लेकिन जल्द ही रतन टाटा को जल्द ही अमेरिका से प्यार हो गया. दरअसल वो बचपन से ही इस शहर से प्यार कर बैठे थे. पढ़ाई खत्म करने के बाद रतन टाटा वापस नहीं लौटना चाहते थे. लेकिन नियति ने कुछ और लिख रखा था. रतन अपनी उस दादी की पुकार पर लौटे जिन्होंने उनके लिए मां का रोल निभाया था और उन पर काफी प्रभाव रखती थीं. भारत लौटने के मात्र 15 दिन बाद जमशेदपुर यानी कि टाटा की कर्मभूमि उनका इंतजार कर रही थी.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement