सबसे सस्ता डेटा भारत में, फिर भी 65% महिलाओं और 49% पुरुषों ने कभी यूज नहीं किया इंटरनेट

4 से 9 जुलाई तक देश में 'डिजिटल इंडिया वीक' मनाया जाएगा. 7 साल पहले डिजिटल इंडिया कैंपेन शुरू हुआ था, जिसका मकसद हर व्यक्ति तक डिजिटल पहुंच को बढ़ाना था. लेकिन क्या डिजिटल बन पाया इंडिया? इंटरनेट की पहुंच कितने लोगों तक है और 2014 के बाद से अब तक इंटरनेट की कीमत कितनी कम हुई? जानें...

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भारत में 50 फीसदी से भी कम परिवारों के पास इंटरनेट कनेक्शन है. (प्रतीकात्मक तस्वीर) भारत में 50 फीसदी से भी कम परिवारों के पास इंटरनेट कनेक्शन है. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Priyank Dwivedi

  • नई दिल्ली,
  • 05 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 11:24 AM IST
  • देश में 49% घरों में ही इंटरनेट कनेक्शन
  • शादी नहीं करने वाले इंटरनेट यूज में आगे
  • 2020 में 1 GB डेटा 10.9 रुपये का था

2 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जर्मनी की राजधानी बर्लिन में थे. यहां उन्होंने भारतीयों को संबोधित किया. इस दौरान पीएम मोदी ने कहा कि जितना सस्ता डाटा भारत में है, वो बहुत से देशों के लिए अकल्पनीय है. 

ये पहली बार नहीं था जब पीएम मोदी ने भारत में सबसे सस्ता इंटरनेट होने की बात कही. इससे पहले अगस्त 2019 में पीएम जब बहरीन के दौरे पर थे, तब भी उन्होंने कहा था कि मोबाइल फोन और इंटरनेट भारत के सामान्य से सामान्य परिवार की पहुंच में है. दुनिया में सबसे सस्ता डेटा भारत में है. 

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बीजेपी अक्सर सस्ते इंटरनेट के लिए मोदी सरकार को श्रेय देती है. दिसंबर 2019 में तब के आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने ट्वीट किया था कि 2014 में मोदी सरकार आने के बाद से इंटरनेट डेटा की कीमत 22 गुना सस्ती हो गई है. 

2014 से पहले तक भारत में एक जीबी डेटा की औसत कीमत 269 रुपये थी, लेकिन अब एक जीबी डेटा की औसत कीमत 54 रुपये के आसपास आ गई है. ये कीमत इससे पहले और कम थी, लेकिन टेलीकॉम कंपनियों की ओर से टैरिफ बढ़ाए जाने के बाद कीमत बढ़ गई है.

डिजिटल इंडिया वीक

इंटरनेट डेटा की बात इसलिए हो रही है, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को 'डिजिटल इंडिया वीक' की शुरुआत की. ये कार्यक्रम 9 जुलाई तक चलेगा. ये कार्यक्रम डिजिटल इंडिया कैंपेन के 7 साल पूरे होने पर हो रहा है. इस कैंपेन का मकसद सभी लोगों को डिजिटल बनाना है. कुल मिलाकर हर व्यक्ति तक डिजिटल टेक्नोलॉजी पहुंचाना और भारत की डिजिटल इकोनॉमी को बढ़ाना इसका मकसद है.

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लेकिन, सरकार के ही आंकड़े बताते हैं कि भारत में अभी भी बहुत से ऐसे लोग हैं, जिनके पास इंटरनेट की पहुंच नहीं है. और इंटरनेट की पहुंच लोगों के पास तब नहीं है, जब भारत सस्ता इंटरनेट देने वाले देशों में है.

ब्रिटेन की cable.uk की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में एक जीबी डेटा की औसत कीमत 0.68 डॉलर यानी लगभग 54 रुपये के आसपास है. इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि भारत में एक जीबी डेटा मात्र 0.05 डॉलर यानी लगभग 4 रुपये में मिल जाता है. 

टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 में भारत में एक जीबी डेटा की औसत कीमत 269 रुपये थी. 2015 में ये कीमत 226 रुपये हो गई. 2016 में 4G (LTE) आने के बाद एक जीबी डेटा की औसत कीमत 75.57 रुपये पर आ गई. 2020 तक एक जीबी डेटा की औसत कीमत 11 रुपये से भी कम हो गई.

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लेकिन, ट्राई के ही आंकड़े बताते हैं कि सस्ता इंटरनेट होने के बाद भी भारत में हर 100 लोगों में से 60 लोगों तक ही इंटरनेट की पहुंच है. इसका मतलब हुआ कि 100 में से 40 ऐसे हैं, जिनके पास इंटरनेट नहीं है. गांवों में हालत बहुत खराब हैं. गांवों में हर 100 लोगों में से 37 के पास इंटरनेट है, जबकि शहर में 103 लोगों के पास इंटरनेट है. 

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वहीं, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 (NFHS 5) के आंकड़े बताते हैं कि भारत में 49% घरों में ही इंटरनेट कनेक्शन है. भारत में अभी भी 65 फीसदी से ज्यादा महिलाओं और लगभग 50 फीसदी पुरुषों ने कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया ही नहीं है. NFHS के आंकड़ों के मुताबिक, देश में 33% महिलाएं और 51% पुरुष ही ऐसे हैं, जिन्होंने कभी न कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया है. 

शहरों तक तो इंटरनेट पहुंच भी जा रहा है, लेकिन गांवों तक इंटरनेट नहीं पहुंच रहा है. NFHS के ही आंकड़े बताते हैं कि गांवों में 75% महिलाओं और 57% पुरुषों ने कभी इंटरनेट इस्तेमाल नहीं किया. वहीं, शहरों में 48% महिलाओं और 34% पुरुषों ने इंटरनेट का इस्तेमाल कभी नहीं किया.

ये सर्वे ये भी बताता है कि शादी करने वालों की तुलना में शादी नहीं करने वाले महिला और पुरुष इंटरनेट का इस्तेमाल करने में आगे है. शादी करने वाली 29% महिलाएं और 48% पुरुष इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, जबकि इनकी तुलना में शादी नहीं करने वालीं 50% से ज्यादा महिलाएं और 57% पुरुष इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं.

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भारत में क्या कहते हैं इंटरनेट के आंकड़े?

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ट्राई के मुताबिक, दिसंबर 2021 तक देशभर में लगभग 83 करोड़ इंटरनेट सब्सक्राइबर्स थे. इनमें से 80.2 करोड़ से ज्यादा वायरलेस और 2.6 करोड़ से ज्यादा वायर्ड इंटरनेट सब्सक्राइबर्स थे. इनमें से भी 80.1 करोड़ से ज्यादा मोबाइल इंटरनेट सब्सक्राइबर्स थे. ये संख्या इसलिए ज्यादा है, क्योंकि कुछ लोग अपने नाम पर एक से ज्यादा कनेक्शन भी रखते हैं. 

हालांकि, ट्राई के आंकड़ों के मुताबिक पिछली तीन तिमाही से इंटरनेट सब्सक्राइबर्स की संख्या कम हो रही है. इनमें भी मोबाइल सब्सक्राइबर्स की संख्या कम हो रही है, जबकि वायर्ड इंटरनेट सब्सक्राइबर्स की संख्या बढ़ रही है. जून 2021 में मोबाइल सब्सक्राइबर्स की संख्या 80.94 करोड़ थी, जो सितंबर 2021 में घटकर 80.85 करोड़ हो गई और फिर दिसंबर 2021 में कम होकर 80.15 करोड़ पर आ गई. 

एक ओर इंटरनेट सब्सक्राइबर्स की संख्या कम हो रही है, तो दूसरी ओर टेलीकॉम कंपनियों को एक यूजर से होने वाली कमाई लगातार बढ़ रही है. इसे ARPU यानी एवरेज रेवेन्यू पर यूजर कहते हैं. ट्राई के मुताबिक, दिसंबर 2020 में कंपनियों को एक यूजर से हर महीने 102 रुपये की कमाई होती थी, जो दिसंबर 2021 में बढ़कर 114 रुपये हो गई. 

 

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