हंगामे, हल्ले और स्थगन के साथ ख़त्म हुआ बजट सत्र...देश को क्या मिला?: दिन भर, 6 अप्रैल

1980 में बनी बीजेपी ने आज अपना स्थापना दिवस देशभर में धूमधाम से मनाया. इन 43 सालों में बीजेपी कितनी बदल गई? संसद का बजट सत्र आज समाप्त हो गया है तो इस बार बजट सेशन के हाईलाइट क्या रहे और किन मुद्दों को लेकर सबसे ज़्यादा हंगामा हुआ? कर्नाटक के चुनाव में फ़िल्मी सितारों का कितना प्रभाव पड़ेगा और रेपो रेट में बदलाव न करने के पीछे आरबीआई की मंशा क्या है, सुनिए आज के 'दिन भर' में नितिन ठाकुर से.

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नितिन ठाकुर

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  • 06 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 7:19 PM IST

विश्व का सबसे बड़ा राजनीतिक दल होने का दावा करने वाली और देश की केंद्रीय सत्ता में क़रीब 9 साल से काबिज़ भारतीय जनता पार्टी आज 43 साल की हो गई. 1980 में बनी बीजेपी ने आज अपना स्थापना दिवस देशभर में धूमधाम से मनाया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मौके पर भाजपा मुख्यालय से बीजेपी कार्यकर्ताओं को संबोधित भी किया.

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43 साल में कितनी बदली BJP?

पीएम का स्थापना दिवस मौके पर सम्बोधन इस लिहाज से भी ज़रूरी कहा जा रहा है कि अगले बरस ही लोकसभा चुनाव हैं. इसकी स्ट्रेटजी पर पीएम ने कार्यकर्ताओं से बात की. तो 1980 से लेकर 2023 तक बीजेपी का सफ़र कैसा रहा, क्या उतार-चढ़ाव देखने को मिले और 1991 के मंदिर आंदोलन ने बीजेपी की राजनीति कैसे बदली, सुनिए 'दिन भर' की पहली ख़बर में.

 

बेकामकाज बजट सत्र

‘एक आदमी रोटी बेलता है, एक आदमी रोटी खाता है। एक तीसरा आदमी भी है, जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है। वह सिर्फ रोटी से खेलता है। मैं पूछता हूं, यह तीसरा आदमी कौन है और मेरे देश की संसद मौन है. ये सुदामा पांडेय धूमिल की एक बहुत लोकप्रिय कविता है और हमारे लोकतंत्र की पूरी सच्चाई.  हंगामे और हंगामे के बाद स्थगन के बीच पूरा बजट सत्र गुजर गया. न ही कोई सवाल हो सका न जवाब.   

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इस बीच राहुल गांधी को अयोग्य ठहराए जाने से लेकर अडानी पर विवाद चला. प्रधानमंत्री से लेकर राहुल गांधी का संबोधन हुआ, लेकिन कोई भी दिन ऐसा नहीं था जब पूरे दिन काम हुआ हो. विपक्ष कहता है सरकार सवालों से भाग रही है , सरकार कहती है कि विपक्ष चर्चा नहीं चाहता. ये आरोप-प्रत्यारोप चलते रहे और ऐसे ही सत्र समाप्त हो गया. आज आखिरी दिन भी दोनों सदनों का समय हंगामे की ही भेंट चढ़ा. तो इस बार बजट सेशन के हाईलाइट्स क्या रहे, कौन से बिल रहे जो इंट्रोड्यूस किए गए और किन मुद्दों की वजह से सबसे ज्यादा हंगामे हुए, सुनिए 'दिन भर' की दूसरी ख़बर में.   

कर्नाटक चुनाव में सितारों का कितना क्रेज़

कर्नाटक में विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज़ है. चुनावों में प्रचार के लिए हर पार्टी स्टार प्रचारकों को उतारती है. कई बार इस लिस्ट में फिल्म अभिनेताओं, क्रिकेटर्स और सिंगर्स के नाम होते हैं. राजनीतिक दलों की कोशिश होती है कि इन सेलेब्रिटीज़ के ज़रिये उनके फैन्स को अड्रेस किया जाए, अपने पक्ष में माहौल बनाया जाए. कन्नड़ फिल्मों के मशहूर अभिनेता सुदीप संजीव उर्फ़ किच्चा सुदीप को लेकर कल अटकलों का बाज़ार गर्म था कि वो बीजेपी जॉइन करने जा रहे हैं. 

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हालाँकि सुदीप ने बाद में सीएम बासवराज बोम्मई के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि वो बीजेपी के टिकट पर चुनाव नहीं लड़ने जा रहे लेकिन सीएम के लिए उनके मन में इज़्ज़त और तारीफ़ के भाव हैं, इसलिए वो बीजेपी के लिए चुनाव प्रचार करेंगे. उनके इस बयान पर दक्षिण की फिल्मों के पॉपुलर एक्टर प्रकाश राज ने कहा कि वह सुदीप के इस बयान से हैरान और नाराज दोनों हैं. कांग्रेस ने भी इसे बीजेपी का राजनीतिक दिवालियापन बताते हुए कहा कि वोट के लिए उन्हें फ़िल्मी सितारों की मदद लेनी पड़ रही है. तो कर्नाटक के चुनावी अखाड़े में कौन से अभिनेता इस बार अलग अलग पार्टियों के समर्थन में उतरने जा रहे हैं और क्या तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश की तरह ही कर्नाटक की सियासत में फिल्म स्टार्स की कितनी धाक है, सुनिए 'दिन भर' की तीसरी ख़बर में.

ब्याज दरें ठहरी, मजबूरी या ख़ुशख़बरी?

बीते एक साल में महंगाई ने वो हाल किया कि आरबीआई ने रेपो रेट बढ़ाने का रिकॉर्ड बना दिया. लगातार छह बार मॉनिटरी पॉलिसी की बैठक में सेंट्रल बैंक ने रेपो रेट बढाया. रेपो रेट वो चीज़ है जो आपके लोन्स की ब्याज दरों पर असर डालती है. महंगाई को नियंत्रित करने के लिए किसी भी देश के सेंट्रल बैंक को रेपो रेट घटाने-बढ़ाने का अधिकार होता है. 

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लेकिन इस बार की मॉनिटरी पॉलिसी की बैठक जो आज हुई उसमें आरबीआई ने चौंकाया. अनुमान था कि इस बार भी रेपो रेट में पॉइंट टू फाइव परसेंट की बढ़ोतरी होगी पर देश के सेंट्रल बैंक ने इसे 6.50 परसेंट पर ही रखने का निर्णय लिया. बढ़ाने का अनुमान इसलिए भी था कि क्योंकि हाल ही में फेडरल रिजर्व, यूरोपियन सेंट्रल बैंक, बैंक ऑफ इंग्लैंड समेत दुनिया के तमाम सेंट्रल बैंकों ने ब्‍याज दरें बढ़ाई थीं. दुनिया भर की परिस्थिति देखते हुए यही अनुमान अपने यहाँ भी लगाया जा रहा था.  

अब इसे अच्छी ख़बर मानें या फिर रेपो रेट में इजाफे के बावजूद महंगाई पर असर न होने के बाद ऐसा करना आरबीआई की मजबूरी, सुनिए 'दिन भर' की आख़िरी ख़बर में. 

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