पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने चेतावनी दी है कि अगर इस्तांबुल में चल रही पाकिस्तान-अफगानिस्तान शांति वार्ता असफल रही, तो इस्लामाबाद अफगानिस्तान के साथ "युद्ध" छेड़ देगा. यह बैठकें दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव और सीमा पर हालिया झड़पों को रोकने के लिए आयोजित की जा रही हैं.
अफगानिस्तान की मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, आसिफ ने पत्रकारों से कहा कि पिछले कुछ दिनों में कोई बड़ा संघर्ष नहीं हुआ है, जो यह दिखाता है कि दोहा समझौते का कुछ असर हुआ है. हालांकि, अफगानिस्तान सरकार के किसी अधिकारी ने इस बयान पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
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दोनों देशों के प्रतिनिधि तुर्की में दूसरी दौर की बातचीत के लिए मौजूद हैं. इन चर्चाओं का मुख्य उद्देश्य सीमा पर हिंसा रोकना, एक-दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करना, पिछले 20 सालों से पाकिस्तान की सुरक्षा चिंताओं को हल करना और व्यापारिक प्रतिबंधों को हटाना है.
अगर कूटनीति विफल हुई तो हालात बिगड़ सकते हैं
इनके अलावा वार्ता में अफगान शरणार्थियों की जबरन वापसी रोकने और शरणार्थी मुद्दे को राजनीति से दूर रखने पर भी चर्चा हो रही है. ख्वाजा आसिफ ने कहा कि फिलहाल सीमा पर स्थिति शांत है, लेकिन अगर कूटनीतिक प्रयास असफल रहे, तो हालात जल्दी बिगड़ सकते हैं. उन्होंने याद दिलाया कि पाकिस्तान ने दशकों तक अफगानिस्तान की मदद की है और लाखों अफगान शरणार्थियों को अपने देश में जगह दी है.
हालांकि, हाल ही में पाकिस्तान ने बलूचिस्तान के कई इलाकों जैसे लोरालाई, गार्डी जंगल, सरानान, झोब, किला सैफुल्लाह, पेशिन और मुस्लिम बाग में अफगान शरणार्थी कैंपों को बंद कर दिया, जिससे हजारों लोगों को अचानक बेघर होना पड़ा.
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पाकिस्तान की 'आतंकी हमलों' को रोकने की मांग
सीमा पर झड़पें इस महीने की शुरुआत में तब शुरू हुईं जब पाकिस्तान ने तालिबान सरकार से मांग की कि वह अपने इलाके से पाकिस्तान पर हो रहे आतंकी हमलों को रोके. जवाब में पाकिस्तान ने सीमा पार हवाई हमले किए, और दोनों तरफ से गोलाबारी में कई लोगों की मौत हुई.
तालिबान अधिकारियों ने हालांकि इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि अफगानिस्तान की जमीन किसी अन्य देश के खिलाफ इस्तेमाल नहीं की जा रही है. उन्होंने कहा कि "इस्लामिक अमीरात दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता" और क्षेत्र में शांति के लिए प्रतिबद्ध है.
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