‘सेना के लिए मिसफिट’, मंदिर में प्रवेश से इनकार करने वाले ईसाई अधिकारी की बर्खास्तगी पर बोला सुप्रीम कोर्ट

कमलेसन को 2017 में लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन मिला था और उन्हें सिख स्क्वाड्रन में नियुक्त किया गया था. उन्होंने अनुशासनात्मक कार्रवाई को चुनौती देते हुए दावा किया कि उन्हें मंदिर में प्रवेश के लिए मजबूर करना उनके धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन है.

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मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा (File Photo- ITG) मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा (File Photo- ITG)

अनीषा माथुर

  • नई दिल्ली,
  • 25 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 8:17 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ईसाई सेना अधिकारी की बर्खास्तगी को बरकरार रखा, जिसने मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने से इनकार किया था. अदालत ने कहा कि भारतीय सेना एक धर्मनिरपेक्ष संस्था है और उसकी अनुशासन व्यवस्था से कोई समझौता नहीं किया जा सकता. शीर्ष अदालत ने अधिकारी सैमुअल कमलेसन को आर्मी के लिए पूरी तरह अनुपयुक्त बताते हुए कहा कि आपने अपने सैनिकों की भावनाएं आहत की हैं.

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दरअसल, कमलेसन को 2017 में लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन मिला था और उन्हें सिख स्क्वाड्रन में नियुक्त किया गया था. उन्होंने अनुशासनात्मक कार्रवाई को चुनौती देते हुए दावा किया कि उन्हें मंदिर में प्रवेश के लिए मजबूर करना उनके धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उनका यह व्यवहार कानूनी आदेश का पालन न करने के बराबर है.

हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर

मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के मई 2025 के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें कमलेसन की बिना पेंशन और ग्रेच्युटी के 2021 में की गई बर्खास्तगी को सही ठहराया गया था. CJI ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा, “ऐसे अधिकारी को तो सिर्फ इसी वजह से बाहर कर देना चाहिए था. यह सेना अधिकारी द्वारा की गई बेहद गंभीर अनुशासनहीनता है.”

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अधिकारी ने क्या दलील दी?

अधिकारी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि उनके मुवक्किल को सिर्फ इसलिए दंडित किया गया क्योंकि उन्होंने धार्मिक मान्यताओं के चलते मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश नहीं किया. उन्होंने यह भी दलील दी कि अधिकारी ‘सर्व धर्म स्थल’ जैसी जगहों पर नियमित रूप से शामिल होते रहे थे.

अधिवक्ता ने कहा, “वह फूल बाहर से अर्पित करने को तैयार थे, लेकिन गर्भगृह में प्रवेश नहीं कर सकते थे. किसी और को समस्या नहीं थी, लेकिन एक वरिष्ठ अधिकारी ने अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू कर दी. संविधान किसी को पूजा करने के लिए मजबूर नहीं करता.”

‘यह उच्चतम स्तर की अनुशासनहीनता’

सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, “क्या इस तरह का झगड़ालू व्यक्ति एक अनुशासित बल में स्वीकार्य है? यह भारत की सबसे अनुशासित फोर्स है. और यह अधिकारी ऐसा व्यवहार करता है? यह एक सेना अधिकारी की सबसे गंभीर प्रकार की अनुशासनहीनता है."

अदालत ने अधिकारी की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि उन्होंने ‘सर्व धर्म स्थल’ में प्रवेश करने से नहीं, बल्कि केवल धार्मिक अनुष्ठान करने से इनकार किया था. पीठ ने पूछा, “क्या वह अपने ही सैनिकों का अपमान नहीं कर रहे? उनका अहंकार इतना बड़ा है कि वह अपने सैनिकों के साथ भी नहीं जा सकते? हर किसी को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है, लेकिन सिर्फ प्रवेश करने से कैसे इनकार किया जा सकता है?”

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पादरी ने भी कहा था मान्यता का उल्लंघन नहीं

अदालत ने यह भी कहा कि अधिकारी को एक पादरी ने समझाया था कि मंदिर में प्रवेश करने से उनकी आस्था का उल्लंघन नहीं होगा, लेकिन फिर भी उन्होंने गर्भगृह में प्रवेश से इनकार कर दिया. पीठ ने कहा, “नेताओं को उदाहरण पेश करना होता है. आप वर्दी में रहते हुए अपनी अलग धार्मिक व्याख्या नहीं थोप सकते.”

अधिकारी द्वारा दंड कम करने की अपील भी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी. अदालत ने कहा, “आप 100 मामलों में उत्कृष्ट हो सकते हैं, लेकिन भारतीय सेना अपनी धर्मनिरपेक्ष पहचान और अनुशासन के लिए जानी जाती है. आपने अपने ही सैनिकों की भावनाओं का सम्मान नहीं किया.”

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