मणिपुर: बेटी के साथ दुष्कर्म करता रहा पिता, सब कुछ जानकर भी चुप रही मां, अब दोनों को कोर्ट से हुई सजा

मणिपुर की फास्ट-ट्रैक स्पेशल कोर्ट ने एक नाबालिग के साथ यौन शोषण मामले में सौतेले पिता को POCSO एक्ट की धारा 10 के तहत दोषी करार दिया. बच्ची की मां को भी अपराध की जानकारी होने के बावजूद रिपोर्ट न करने पर सजा सुनाई गई.

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पिता को 10 साल की सजा सुनाई गई है- (Photo: Representational) पिता को 10 साल की सजा सुनाई गई है- (Photo: Representational)

aajtak.in

  • इंफाल,
  • 27 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 11:19 PM IST

मणिपुर की फास्ट-ट्रैक स्पेशल कोर्ट नंबर 1 ने बुधवार को एक नाबालिग लड़की के यौन उत्पीड़न के मामले में बड़ा फैसला सुनाया. विशेष जज आरके मेम्चा देवी की अध्यक्षता वाली अदालत ने सौतेले पिता मोइरांगथेम इबोचौ सिंह (58) को POCSO एक्ट की धारा 10 के तहत दोषी ठहराया. इबोचौ सिंह ने अपनी नाबालिग सौतेली बेटी के साथ बार-बार यौन उत्पीड़न किया. अदालत ने कहा कि सौतेले पिता होने के नाते वह विश्वास की स्थिति में था, लेकिन उसने इसका गलत फायदा उठाया.

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अदालत ने माना गंभीर अपराध
इसके अलावा, पीड़िता की मां मोइरांगथेम को भी POCSO एक्ट की धारा 21 के तहत दोषी पाया गया. मां को अपने पति द्वारा किए गए बार-बार के यौन उत्पीड़न की जानकारी थी, लेकिन उसने इसकी सूचना पुलिस को नहीं दी. अदालत ने इसे गंभीर अपराध माना.

हालांकि, दूसरे आरोपी हवाइबम मंगलेजाओ सिंह (51) को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया. अदालत ने उनके जमानत बांड को रद्द करने का आदेश दिया.

क्या है पूरा मामला?
यह मामला अगस्त 2019 में दर्ज एक FIR से शुरू हुआ था, जिसमें नाबालिग पीड़िता ने अपने सौतेले पिता द्वारा लंबे समय तक यौन शोषण और मां की जानकारी में होने की बात कही थी. जांच में पता चला कि यह उत्पीड़न कई वर्षों से चल रहा था. पीड़िता ने इसका विरोध किया, लेकिन आरोपी ने उत्पीड़न जारी रखा.

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अदालत ने गवाहों के बयान, मेडिकल रिपोर्ट, और पीड़िता का धारा 164 Cr.P.C के तहत दर्ज बयान देखा. इनके आधार पर इबोचौ सिंह और अंगौलेइमा के खिलाफ पर्याप्त और पुष्ट सबूत पाए गए. अदालत ने कहा कि पीड़िता का बयान विश्वसनीय और सुसंगत था, जिसने दोषियों को सजा दिलाने में अहम भूमिका निभाई.

दोनों दोषियों की सजा पर सुनवाई जल्द होगी. यह फैसला बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के प्रति समाज और कानून की सख्ती को दर्शाता है. यह समाज को यह संदेश देता है कि बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि है और अपराध की जानकारी छिपाना भी अपराध है.

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