मणिपुर में इंफाल घाटी के ज्यादातर इलाके अब सामान्य स्थिति की ओर लौट रहे हैं, लेकिन कुछ घटनाएं अभी भी हो रही हैं. पिछले साल शुरू हुई दो समुदायों के बीच हिंसा के 1 साल बीत जाने के बाद फिर से आजतक की टीम मणिपुर के ग्राउंड जीरो पर पहुंची है. घाटी के आगे उन इलाकों की स्थिति कैसी है जहां मैतेई समाज और कुकी समाज के लोग आमने-सामने रहते थे.
इंफाल से होते हुए थोबाल के रास्ते आज तक की टीम टेक्नोपोल पहुंची. टेग्नोपाल मणिपुर का पहाड़ी जिला है यहां कुकी समाज के रहने वाले नागरिकों की संख्या ज्यादा है. जहां से इस जिले की सीमा रेखा शुरू होती है. वहां केंद्रीय सुरक्षा बलों ने एक किलोमीटर से भी लंबा बफर जोन तैयार कर दिया है. घाटी के पलेल इलाके में दोनों समाज के लोग बड़ी संख्या में साथ रहते थे, लेकिन हिंसा के बाद अब पलेल शहर दो भाग में बंट गया है.
दो हिस्सों में बंटा गांव
असम राइफल्स ने एक लंबा बफर जोन बनाया है, जिसकी वजह से पहाड़ों में रहने वाले कुकी समाज के लोग ना तो घाटी में आ सकते हैं और ना ही घाटी में रहने वाले मैतेई समाज के लोग पहाड़ों की ओर जा सकते हैं. केंद्रीय सुरक्षा बलों की कोशिश है कि हथियार बंद लोग एक दूसरे के इलाकों मेंजाकर किसी घटना को अंजाम ना दे पाएं.
पुलिस तक यहां बंट चुकी है
पलेल बफर जोन पार करने के बाद हम टेक्नोपाल जिले की सीमा में प्रवेश कर गए. राज्य में हुई समुदायों के बीच हिंसा का असर प्रशासन पर भी दिखाई देता है. मणिपुर पुलिस भी समुदाय में बंट कर रह गई है. पहचान छुपाने के तर्ज में कमरे पर आकर के कुकी समाज के एक मणिपुर पुलिस जवान ने बताया कि हालात कितने मुश्किल हैं. इस जवान ने बताया कि पुलिस भी बंट चुकी है और हिंसा के बाद में मैतेई पुलिसकर्मी इंफाल में हैं तो कुकी पुलिसकर्मी पहाड़ों में आ चुके हैं.
गांव छोड़ पहाड़ों पर जा कर रह रहे लोग
टेक्नोपॉल में घाटी से लगने वाले में सीमावर्ती गांव में सन्नाटा पसर गया है. बच्चे बुजुर्ग महिलाएं गांव के गांव छोड़कर सुदूर पहाड़ी शहरों में बस गए हैं. आज भी अपनी रसद के लिए इंफाल घाटी की ओर सीधा रास्ता ना लेकर पहाड़ों से एक जिले से दूसरे जिलों का सफर करके मिजोरम तक जाते हैं. पीटर ने हमें बताया कि आज भी कुकी समाज के लोग में कुकी समाज के लोग मेतेई इलाकों में जाने से डरते हैं क्योंकि जान का खतरा है ऊपर से ज़रूरतें पूरा करने के लिए पहाड़ों में लंबा संघर्ष करना पड़ता है.
गांवों अबतक बंद हैं स्कूल
कई कुकी गांव भी हिंसा में जला दिए गए थे. घाटी से लगते हुए टेक्नोपोल के जिस गांव में टीम पहुंची वहां कोई नहीं था. स्कूल बंद हैं. घरों के आगे ताले लगे हैं. गांव जंगल और झाड़ियां में तब्दील हो रहे हैं. हिंसा के बाद से ही कुकी समाज के लोग अपने लिए अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं. इसका मणिपुर के घाटी में रहने वाले लोग विरोध करते रहे. पहाड़ी इलाकों में घरों पर सेपरेट एडमिनिस्ट्रेशन लगभग हर दीवारों पर लिखा दिखाई देता है.सीमावर्ती गांव में अब कोई बचा नहीं है.
केंद्रीय सुरक्षा बल के कारण बचा है गांव
गांव के सचिव हाओकिप बताते हैं कि आज भी उनके समाज के लड़के हाथों में हथियार लेकर अपनी जमीन और अपने गांव की हिफाजत कर रहे हैं. जबकि खतरे की वजह से महिलाओं बच्चों और बुजुर्गों को चुरा चांदपुर टेक्नोपॉल मोरे या कांगपोकपी जैसे पहाड़ी शहरों में भेज दिया गया है. कुकी समाज के गांव प्रमुख बताते हैं कि अगर आज वह यहां सुरक्षित हैं तो वह सिर्फ केंद्र सरकार और केंद्रीय सुरक्षा बलों की वजह से, वरना हथियारबंद मैतेई लड़ाके गांव खत्म कर चुके होते.
गांव की हिफाजत के लिए युवाओं ने उठा लिए हथियार
हिंसा के दौर में कलम पकड़ने वाले युवाओं ने हाथों में हथियार पकड़ लिये. कभी एक दूसरे की छत बनाने में मदद करने वाले एक दूसरे के गांव जलाने लगे. मणिपुर के वो जख्म आज भी हरे हैं. इसी गांव के रहने वाले अलेक्स कहते हैं कि जहां बॉर्डर एरिया में हमारे गांव के सामने बंकर बनाए गए हैं. वहां हमारे गांव के भी लड़कों ने अपनी जमीन की हिफाजत के लिए बंकर बनाया है और आज भी अपने लोगों को प्रोटेक्ट कर रहे हैं.
यहां के हालात से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कोंसम हिमालय सिंह ने कारगिल युद्ध लड़ा है और अब रिटायरमेंट के बाद मणिपुर में रहते हैं. वह भी कहते हैं कि गैर कानूनी तरीके से हथियार उठाने वाला हर व्यक्ति अपराधी है, लेकिन मणिपुर में ज्यादातर युद्ध नॉरेटिव को लेकर के हुआ है, जबकि यहां के हालात के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है.
पूरी तरह से बहाल नहीं हो सकी है शांति
जनरल हिमालय सिंह कहते हैं कई लोगों ने नॉरेटिव बनाकर मैतेई को आरोपी बनाया, लेकिन किसी ने सही तस्वीर सामने नहीं रखी और जब मामला राष्ट्रीय सुरक्षा का हो तो केंद्र सरकार को भी सामने आना चाहिए. ताकि मणिपुर के हालात फिर से पटरी पर लौट सकें.मणिपुर को लेकर के विपक्ष लगातार केंद्र सरकार और मणिपुर की राज्य सरकार दोनों से सवाल करता रहा. राज्य और केंद्र दोनों में ही बीजेपी का शासन होने के बावजूद राज्य में शांति बहाली नहीं हो पाई.
आरएसएस ने एक बार फिर मणिपुर की दिलाई याद
चुनाव खत्म हुए तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी केंद्र सरकार को मणिपुर की याद दिलाई और कहा कि जो 10 साल में नहीं हुआ वह गन कल्चर मणिपुर में पिछले 1 साल से दिखाई दे रहा है.भागवत ने सिर्फ सरकार ही नहीं बल्कि पूरे देश को भी यह याद दिलाया कि मणिपुर भारत का ही हिस्सा है और वहां हो रही अशांति और लोगों के बीच बढ़ती दूरी से हिंदुस्तान अपनी आंखें मूंद नहीं सकता. पूरे देश की जिम्मेदारी है कि इस पूर्वोत्तर राज्य में शांति बहाली हो.
आशुतोष मिश्रा