कुकी-ज़ो महिला मंच (Kuki-Zo Women Forum) ने शुक्रवार को यहां जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया और मणिपुर के पहाड़ी जिलों में रहने वाली आदिवासी आबादी के लिए एक अलग प्रशासन की मांग की है. प्रदर्शनकारियों ने जातीय हिंसा से घिरे राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की भी मांग की है. इस विरोध प्रदर्शन में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए.
कुछ प्रदर्शनकारियों को 'अलग प्रशासन ही एकमात्र समाधान है' लिखी टी-शर्ट पहने देखा गया. कई प्रदर्शनकारियों ने अपनी पारंपरिक पोशाक पहन रखी थी. उन्होंने आदिवासी गांवों पर हमलों को रोकने और समुदाय की महिलाओं के साथ बलात्कार के आरोपियों को मौत की सजा देने की मांग की.
'राज्य सरकार से अपील करने का कोई मतलब नहीं'
प्रदर्शन के आयोजकों में से एक और जामिया मिलिया इस्लामिया के सहायक प्रोफेसर लालमिंगमावी गंगटे ने कहा, यह (आदिवासी समुदाय के लिए) अस्तित्व का मामला है. हम अहिंसा से लड़ने की कोशिश कर रहे हैं. हमें कुचला जा सकता है, लेकिन हमारी भावना को बिल्कुल भी नहीं कुचला जाएगा. अब राज्य सरकार से अपील करने का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि हम जानते हैं कि वह इस बारे में कुछ नहीं करेगी.
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'आदिवासी समुदाय के मौलिक अधिकारों को छीन लिया है'
एक अन्य आयोजक ने आरोप लगाया कि मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने आदिवासी समुदाय के मौलिक अधिकारों को छीन लिया है. सभा में चोचोंग हाओकिप ने कहा, इस हिंसा के पीछे मणिपुर पुलिस और राज्य सरकार मुख्य दोषी हैं. हम अपने धर्म का पालन करने के अपने अधिकार की मांग करते हैं.
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'हिंसा में अब तक 160 लोगों की जान गई'
बता दें कि पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर 3 मई को पहली बार जातीय हिंसा भड़की थी. अब तक 160 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. सैकड़ों की संख्या में लोग जख्मी हुए हैं. दरअसल, राज्य में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग का विरोध किया जा रहा है. पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' आयोजित किए जाने के बाद हिंसा भड़की थी.
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'मणिपुर में कुकी समुदाय की 40 प्रतिशत आबादी'
मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं. जबकि नागा और कुकी 40 प्रतिशत हैं और मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं.
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