Hijab Row Verdict: कुरान में हिजाब पहनने का आदेश नहीं सिर्फ निर्देश है: कर्नाटक हाई कोर्ट

कर्नाटक हाई कोर्ट में उडुपी की लड़कियों ने याचिका दायर कर स्कूलों में हिजाब पहनने की इजाजत की मांग की थी. कोर्ट ने छात्राओं की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि छात्र स्कूल ड्रेस पहनने से इनकार नहीं कर सकते. 

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कर्नाटक हाई कोर्ट के बाहर तैनात रहा भारी सुरक्षा बल (फोटो पीटीआई) कर्नाटक हाई कोर्ट के बाहर तैनात रहा भारी सुरक्षा बल (फोटो पीटीआई)

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 15 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 5:01 PM IST
  • हिजाब विवाद पर 129 पेज का आया है हाईकोर्ट का फैसला
  • कुरान, हदीस के आधार पर कोर्ट ने फैसला न्याय संगत बताया

कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka Highcourt) ने हिजाब विवाद पर मंगलवार को स्कूल कॉलेजों में हिजाब बैन के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है. साथ ही कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हिजाब पहनना इस्लाम की अनिवार्य प्रथा का हिस्सा नहीं है. अपने 129 पेज के फैसले में कोर्ट ने हिजाब पहनने की रवायत पर कुरान मजीद और हदीस का हवाला देते हुए अपने निर्णय को तर्क, न्याय और विधि सम्मत बताया है.

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कुरान में हिजाब न पहनने पर कोई सजा नहीं

पीठ ने कहा है कि कुरानशरीफ और इस्लाम की अन्य धार्मिक सामग्री इसकी पुष्टि करती है कि हिजाब पहनना इस्लाम की अनिवार्य परंपरा नहीं है. यह सिर्फ वैकल्पिक है ना कि अनिवार्य. कुरान हिजाब पहनने का आदेश नहीं देता बल्कि ये केवल निर्देशिका है, क्योंकि कुरान पाक में हिजाब न पहनने के लिए कोई सजा या पश्चाताप का प्रावधान निर्धारित नहीं है. 

महिलाओं के लिए हिजाब की बाध्यता नहीं

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि हिजाब महिलाओं के लिए अधिक से अधिक सार्वजनिक स्थानों तक जाने का एक साधन है न कि अपने आप में एक धार्मिक अनिवार्यता. यह महिलाओं को सक्षम बनाने का कोई ठोस और कारगर उपाय नहीं है और ना ही कोई औपचारिक बाध्यता है. धार्मिक अभिलेखों में भी महिलाओं के लिए सामाजिक सुरक्षा के उपाय के रूप में हिजाब की सिफारिश की गई है.

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हिजाब का संस्कृति से रिश्ता, धर्म से नहीं

हाई कोर्ट ने आदेश में लिखा कि हिजाब का संस्कृति और परंपरा के साथ तो रिश्ता है लेकिन निश्चित रूप से धर्म के साथ नहीं यानी जो चीज या कृत्य धार्मिक रूप से अनिवार्य नहीं है, उसे सड़कों पर उतर कर सार्वजनिक आंदोलनों के जरिए या फिर अदालतों में भावुक दलीलें देकर धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं बनाया जा सकता. 

इस सवाल का जवाब नहीं दे पाईं याचिकाकर्ता

कोर्ट में सुनवाई के दौरान सभी याचिकाकर्ता इस सवाल का संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए कि वो कितने समय से हिजाब पहन रहे हैं. वे यह भी नहीं बता पाए कि इस संस्थान में दाखिल होने से पहले वो अनिवार्य रूप से हिजाब पहना करती थीं या नहीं.

भाईचारे की भावना बढ़ाती है स्कूल यूनिफॉर्म 

शिक्षा संस्थानों में सबके लिए समान अनुशासन की बात करते हुए कोर्ट ने कहा कि स्कूल यूनिफॉर्म सद्भाव और समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देती है. इसके जरिए धार्मिक या अनुभागीय विविधताओं को भी पार करती है. हालांकि, समुचित सार्वजनिक स्थान मसलन स्कूल, कॉलेज, न्यायालयों, वॉर रूम्स, युद्ध क्षेत्र और रक्षा शिविर जैसे मामलों में नागरिकों की निजी स्वतंत्रता में अनुशासन और कार्य के उद्देश्य के चलते कटौती की जाती है. इसे अलग परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है. 

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