'नैरेटिव के चक्रव्यूह से निकलना मुश्किल...', पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने की RSS की तारीफ

पद से इस्तीफा देने के चार महीने बाद जगदीप धनखड़ पहली बार सार्वजनिक मंच पर दिखाई दिए और RSS की वैचारिक धारा की खुलकर प्रशंसा की. उन्होंने कहा कि भारत 6000 वर्षों की सभ्यतागत शक्ति के साथ आज की वैश्विक उथल-पुथल में दुनिया का मार्गदर्शन कर सकता है.

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धनखड़ ने पहली सार्वजनिक मौजूदगी में RSS दर्शन की खुलकर सराहना कर दिया बड़ा राजनीतिक संदेश (Photo: PTI) धनखड़ ने पहली सार्वजनिक मौजूदगी में RSS दर्शन की खुलकर सराहना कर दिया बड़ा राजनीतिक संदेश (Photo: PTI)

रवीश पाल सिंह

  • भोपाल,
  • 21 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:13 AM IST

जगदीप धनखड़, जो चार महीने पहले स्वास्थ्य कारणों से उपराष्ट्रपति पद से अचानक इस्तीफा दे चुके हैं, ने शुक्रवार को पहली बार सार्वजनिक रूप से एक पुस्तक विमोचन समारोह में भाषण दिया. इस मौके पर उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की दर्शन और भारत को मजबूत बनाने के उनके दृष्टिकोण की भरपूर तारीफ की. 

धनखड़ ने यह भाषण "हम और ये विश्व" नामक पुस्तक के लॉन्च पर दिया, जो कि आरएसएस के संयुक्त महासचिव मनमोहन वैद्य ने लिखी है. इस कार्यक्रम में धर्मगुरु, मीडिया के जाने-माने लोग मौजूद थे.

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धनखड़ ने भाषण की शुरुआत हिंदी में की और कहा कि हम ऐसे दौर में जी रहे हैं जहां लोग अपनी सोच से ही सच को तय कर लेते हैं, भले ही आप उसे नकारते रहें. फिर उन्होंने अंग्रेजी में भाषण जारी रखा ताकि जो लोग उनकी बात को पूरी तरह से समझना चाहते हैं, वे उनकी मंशा को सही ढंग से पकड़ सकें. 

उन्होंने कहा कि आरएसएस को लेकर गलतफहमियां और झूठे आरोप लगते रहे हैं, लेकिन ये किताब इन सब मिथकों को तोड़ती है और दिखाती है कि आरएसएस वास्तव में भारत को सशक्त बनाने वाली ताकत है.

भारत का सांस्कृतिक और नैतिक आधार

धनखड़ ने कहा कि भारत 6000 साल से अधिक की सभ्यताओं का घर है, जो दुनिया को रास्ता दिखाने की ताकत रखता है. वर्तमान विश्व की चुनौतियां जैसे सुरक्षा, आर्थिक दिक्कतें, जलवायु परिवर्तन, तकनीकी बदलाव और सामाजिक विवादों के बीच भारत को अपनी गहरी विरासत से सीख लेकर आगे बढ़ना होगा.

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उन्होंने बताया कि राष्ट्र का मतलब है सांस्कृतिक एकता, धर्म का मतलब है नैतिक व्यवस्था, न्याय का मतलब है सही प्रशासन और मानव गरिमा हमारे देश की नींव है. ये सभी बातें भारत को दुनिया में एक प्रभावी भूमिका निभाने वाला देश बनाती हैं. 

लोकतंत्र और संविधान की अहमियत

उन्होंने संस्थागत अखंडता की महत्ता पर बल देते हुए बताया कि यह किसी भी समाज की आधारशिला होती है. साथ ही उन्होंने पांच मुख्य आरएसएस पहलों का जिक्र किया: सामाजिक समरसता, परिवार का विकास, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी और आत्मनिर्भरता और नागरिक कर्तव्य.

धनखड़ ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) का समर्थन करते हुए कहा कि इसके विरोध के लिए जो तर्क हैं, वे गलत और बिना सोचे समझे हैं क्योंकि यह कानून उन धार्मिक अल्पसंख्यकों को राहत देने के लिए बनाया गया है जो उत्पीड़ित हैं, और यह किसी भी मौजूदा नागरिक के अधिकारों को प्रभावित नहीं करता.

व्यक्तिगत समर्पण और देशभक्ति

धनखड़ ने कहा कि जनता के हाथों में भारत का भविष्य है. देश को मजबूत आर्थिक, सुरक्षा और सांस्कृतिक आधार बनाने का काम आम लोगों का है. उन्होंने अपने जीवन और कर्म का उद्देश्य बताया कि उनका लक्ष्य हमेशा देश की सेवा करना है. 

यह भी पढ़ें: पूर्व उपराष्ट्रपति का एयरपोर्ट पर स्वागत करने नहीं पहुंचा कोई BJP नेता, दिग्विजय सिंह ने कसा तंज, बोले- यूज एंड थ्रो BJP की रीति

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व्यक्तिगत अनुभव और उल्लेखनीय बातें

धनखड़ ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के आरएसएस मुख्यालय की 2018 में हुई उस यात्रा का जिक्र किया, जब उस पर विवाद हुआ था. लेकिन प्रणब दा ने उस विवाद को समाप्त करते हुए कहा था कि वह यहां माँ भारत के एक महान पुत्र को सम्मान देने आए हैं.

धनखड़ का इस कार्यक्रम में आना राजनीतिक रूप से यह संकेत माना जा रहा है कि वे अब भी सत्ता पक्ष की विचारधारा के साथ जुड़े हुए हैं.

कार्यक्रम में आरएसएस के कुछ अन्य प्रमुख लोग भी मौजूद थे, लेकिन धनखड़ ने मीडिया के सवालों के जवाब नहीं दिए और कार्यक्रम खत्म होते ही चले गए.

जगदीप धनखड़ के इशारों भरे सवाल: नैरेटिव के चक्रव्यूह से निकलना मुश्किल

जगदीप धनखड़ ने कहा कि आज सबसे बड़ी दिक्कत ‘नैरेटिव’ का चक्रव्यूह है. “भगवान करे कोई इस चक्रव्यूह में न फंसे… और अगर फंस जाए, तो समझाना मुश्किल है. मैं अपना उदाहरण नहीं दे रहा हूं,” उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज़ में कहा.

उन्होंने यह भी कहा कि आजकल लोग नैतिकता से दूर होते जा रहे हैं. इसके उदाहरण में उन्होंने पूर्व उप-राष्ट्रपति का एक वाकया साझा किया, जब यात्रा के लिए मैसेज आया, पर उन्होंने कहा कि “मैं फ्लाइट की चिंता में अपना कर्तव्य नहीं छोड़ सकता.”

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