विभिन्न किसान संगठन हाल ही अस्तित्व में आए जिन तीन कृषि कानूनों पर विवाद खड़ा कर रहे हैं उनमें 'कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) अधिनियम, 2020' भी शामिल है. इस कानून के जिस प्रावधान पर कृषक संगठनों ने आपत्ति दर्ज करवाई थी. उसमें इस कानून के तीसरे अध्याय 'विवाद और उसका समाधान' की धारा 8 के अनुच्छेद (1) के मुताबिक किसानों को शिकायतों के कानूनी निवारण की महंगी और लंबी प्रक्रिया से बचाने के लिए करार सबडिवीजन अथॉरिटी, एसडीएम और कलेक्टर या एडिशनल कलेक्टर के माध्यम से अपीलीय अधिकारी के रूप में विवाद समाधान के लिए व्यवस्था की गई है.
कानून के तीसरे अध्याय में साफ किया गया है कि किसानों से किसी भी तरह की वसूली के लिए किसान की जमीन के विरुद्ध कोई कार्रवाई शुरू नहीं की जाएगी. यदि प्रायोजक किसान को भुगतान करने में विफल रहता है तो उस पर बकाया राशि का डेढ़ गुना देने का प्रावधान है. यदि कोई किसान करार से इनकार करता है तो वसूली प्रायोजित द्वारा किसी भी अग्रिम भुगतान या उसके द्वारा आपूर्ति किए गए इनपुट की लागत से अधिक नहीं होगी.
इस कानून का सबसे अच्छा प्रावधान
कृषि कानून के इस अध्याय में समय पर भुगतान न करने वाले व्यापारी से डेढ़ गुना तक रकम वसूली जा सकती है. यह प्रावधान सिर्फ और सिर्फ इसलिए किया गया था क्योंकि भारत में कानूनी प्रक्रिया काफी लंबी है और न्याय पाने में सालों लग जाते हैं. लेकिन किसानों के मन में इस कानून को लेकर भी भ्रम पैदा किए गए.
यही नहीं इस अधिनियम के प्रावधानों जैसे कृषि करार का पंजीकरण को लागू करने के लिए राज्य सरकारों को भी नियम बनाने का अधिकार दिया गया है. इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने में अगर कोई कठिनाई आती है तो उसे हटाने की गुंजाइश भी रखी गई है.
किसान इस बात को मानते हैं कि पुराने कानूनों में खरीदारों के खिलाफ कार्रवाई करने का कोई प्रावधान नहीं है जिसके चलते अब तक सैकड़ों किसानों के साथ धोखाधड़ी की गई है. अब तक सैकड़ों किसानों को व्यापारी करोड़ों रुपए का चूना लगा चुके हैं. अनाज, फल और सब्जियों के पूरे ट्रक के ट्रक ही गायब कर दिए गए. या तय राशि के मुताबिक भुगतान नहीं किया गया या फिर उसे टुकड़ों में दिया गया.
किसान संगठनों का डर- अधिकारियों को प्रभावित कर सकते हैं कारपोरेट घराने
किसान संगठनों की तरफ से तर्क दिया गया था कि अगर न्याय का अधिकार सिर्फ एक दंडाधिकारी तक ही सीमित रहता है तो उसे बड़े बड़े कारपोरेट घराने प्रभावित कर सकते हैं इसलिए मामले को न्यायालय में ले जाने का प्रावधान भी होना चाहिए. नए कृषि कानूनों को किसान विरोधी करार दिए जाने के बाद केंद्र सरकार ने 8 संशोधनों का प्रस्ताव रखा जिसमें 'कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) अधिनियम, 2020' पर छिड़ा विवाद भी शामिल है.
केंद्र सरकार ने अब फसलों की खरीद-फरोख्त पर हुए विवादों के निपटारे के लिए एसडीएम के अलावा न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का प्रावधान भी सुझाया है लेकिन अन्य संशोधनों की तरह इसे भी अस्वीकार कर दिया गया है. किसान संगठन कृषि कानूनों को रद्द करने पर ही अड़े हुए हैं.
मनजीत सहगल