दिल्ली-NCR के वाहन मालिकों को राहत, अब PUC और फिटनेस पर चलेंगी गाड़ियां, उम्र सीमा से राहत

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण मामले में बड़ा आदेश देते हुए BS-4 और उससे एडवांस गाड़ियों को 10-15 साल की उम्र सीमा से छूट दी. अब वाहन फिटनेस और PUC के आधार पर चल सकेंगे.

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 दिल्ली-एनसीआर में BSIV वाहनों को सशर्त मिली इजाजत (File Photo: ITG) दिल्ली-एनसीआर में BSIV वाहनों को सशर्त मिली इजाजत (File Photo: ITG)

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 18 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:12 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण को नियंत्रित करने और गाड़ियों की उम्र सीमा को लेकर एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया. चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच ने पुराने आदेश में संशोधन करते हुए बीएस-4 और उससे उन्नत तकनीक वाले इंजनों वाली गाड़ियों को 10 और 15 साल के प्रतिबंध से राहत दे दी. 

कोर्ट ने यह फैसला प्रदूषण की स्थिति और उन्नत इंजन तकनीक को ध्यान में रखते हुए सुनाया है. अब ये गाड़ियां फिटनेस प्रमाणपत्र और पीयूसी के आधार पर सड़कों पर चल सकेंगी. यह बदलाव राजधानी के वाहन मालिकों के लिए एक बड़ी राहत बनकर आया है.

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दिल्ली में अब बीएस-4 और इससे उन्नत किस्म के इंजनों वाली गाड़ियां उम्र की सीमा और जन्म के बंधनों से मुक्त होकर फर्राटे भर सकेंगी. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले आदेश में संशोधन कर दिया है. अब इन तकनीक के इंजनों वाली गाड़ियों पर डीजल वाहनों के लिए 10 साल और पेट्रोल वाहनों के लिए 15 साल की उम्रसीमा की पाबंदी नहीं होगी. अब ये वाहन केवल अपने पीयूसी और फिटनेस के दम पर सड़कों पर चल पाएंगे.

स्कूलों में हाइब्रिड मोड और मिड-डे मील की चिंता

कोर्ट सुनवाई के दौरान वकील मेनका गुरुस्वामी ने स्कूली बच्चों की स्थिति पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि दिल्ली में पहली से पांचवीं तक के स्कूल बंद हैं और उससे ऊपर के छात्रों को हाइब्रिड मोड में पढ़ाई की छूट है. गुरुस्वामी ने दलील दी कि मिड-डे मील की वजह से गरीब माता-पिता बच्चों को स्कूल भेजते हैं. हर बार जब स्कूल बंद होते हैं, तो ये बच्चे पौष्टिक भोजन से वंचित हो जाते हैं.

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विशेषज्ञों के पाले में कोर्ट ने डाली गेंद

कोर्ट ने स्कूल बंद करने या हाइब्रिड मोड पर कहा कि वे इस मामले में विशेषज्ञ नहीं हैं. सीजेआई ने कहा कि अगर हाइब्रिड मोड की अनुमति दी जाती है, तो कामकाजी माता-पिता बच्चों को स्कूल भेजेंगे. कोर्ट ने साफ किया कि विशेषज्ञों को ही यह फैसला लेने देना चाहिए कि क्या सही है. कोर्ट ने माना कि स्कूल जाना या नहीं जाना, दोनों ही स्थितियों में अपनी अलग-अलग समस्याएं जुड़ी हुई हैं.

गरीब बच्चों और घरेलू कामगारों की दुविधा

एमिकस क्योरे अपराजिता सिंह ने दलील दी है कि कई बच्चों के माता-पिता घरेलू कामगार हैं. चूंकि ये लोग सड़क के किनारे रहते हैं, इसलिए बच्चों को स्कूल के बजाय घर पर अधिक प्रदूषण का सामना करना पड़ता है. सीजेआई ने इस पर कहा कि इससे उन लोगों के साथ भेदभाव हो रहा है जो घर पर रहने का खर्च नहीं उठा सकते या जिनके पास एयर प्यूरीफायर नहीं हैं. उन्हें स्कूल जाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.

बुजुर्गों और सीनियर नागरिकों की परेशानी

सीजेआई सूर्यकांत ने कहा, "प्रदूषण की समस्या सभी को प्रभावित कर रही है, जिसमें बच्चे और सीनियर सिटिजन शामिल हैं. टहलने के लिए पार्क जाने वाले बुजुर्गों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है." 

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सीनियर अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने बताया कि आज की स्थिति ऐसी है कि कोई भी बुजुर्ग दोपहर 12 बजे से पहले सैर के लिए नहीं निकल रहा है. कोर्ट ने कहा कि इसे रोकने के लिए दीर्घकालिक योजनाओं की जरूरत है.

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कंस्ट्रक्शन मजदूरों को मुआवजे का मुद्दा

सुनवाई के वक्त यह बात सामने आई कि राजस्थान के अलावा किसी अन्य राज्य ने निर्माण श्रमिकों को 10 हजार रुपये मुआवजे का भुगतान नहीं किया है. वकील ने कहा कि निर्माण बोर्डों के पास बिल्डिंग सेस का काफी पैसा जमा है. बोर्ड के साथ 2.5 लाख श्रमिक पंजीकृत हैं. सीजेआई ने निर्देश दिया कि यह सुनिश्चित किया जाए कि मुआवजा राशि वास्तविक श्रमिकों तक पहुंचे और यह उनके शोषण का स्रोत न बने.

पंजीकृत श्रमिकों का सत्यापन और भुगतान

एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट को बताया, "2.5 लाख रजिस्टर्ड मजदूरों में से केवल 35 हजार का ही सत्यापन हो पाया है. इनमें से भी सिर्फ 7500 श्रमिकों को ही मुआवजे का भुगतान किया गया है और बाकी को जल्द भुगतान किया जाएगा." सीजेआई ने सुझाव दिया कि राशि सीधे उनके खातों में जानी चाहिए और उन्हें कुछ समय के लिए वित्तीय सहायता मिलनी चाहिए ताकि वे अपना गुजारा कर सकें.

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सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा कि कंस्ट्रक्शन कार्य बंद होने के दौरान मजदूरों को वैकल्पिक रोजगार देने की योजना क्यों नहीं बनाई जा रही है. सीजेआई ने कहा कि ये मजदूर मेहनती होते हैं और खाली बैठने के बजाय वैकल्पिक कार्य कर सकते हैं. सरकार को ऐसी नीति बनानी चाहिए जिससे निर्माण श्रमिकों की ऊर्जा और क्षमता को अन्य कार्यों में मोड़ा जा सके और वे सरकारी सहायता पर निर्भर न रहें.

एनएचएआई की वकील पिंकी आनंद ने कोर्ट को बताया, "दिल्ली बॉर्डर पर एमसीडी टोल बूथों के कारण लंबा ट्रैफिक जाम होता है, जिससे प्रदूषण बढ़ता है." सीजेआई ने सवाल उठाया कि क्या प्रदूषण वाले एक-दो महीनों के दौरान टोल वसूली रोकी जा सकती है? उन्होंने कहा कि जब दुनिया भर में नॉन-स्टॉप ट्रैफिक और डिजिटल टोल तकनीक उपलब्ध है, तो भौतिक संग्रह के कारण जाम क्यों लगाया जा रहा है.

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एमसीडी की दलील और कोर्ट की नाराजगी

एमसीडी ने दलील दी है कि सड़कों के रखरखाव और कर्मचारियों के वेतन के लिए टोल का राजस्व जरूरी है. इस पर कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि आप इन टोल को लेकर बहुत मुकदमे पैदा करते हैं और यह लोगों के लिए दु:स्वप्न जैसा है. सीजेआई ने कहा कि क्यों नहीं कोई अधिकारी कहता कि जनवरी तक टोल नहीं वसूला जाएगा. क्या आप कल को कनॉट प्लेस में भी टोल लगा देंगे?

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कोर्ट ने कहा कि प्रदूषण पैदा करने वाली गतिविधियों को रोकने के लिए जन जागृति और नागरिक जागरूकता बढ़ानी होगी. नागरिक केंद्रित नजरिए और सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करना बहुत जरूरी है. एमिकस ने बताया कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में कर्मचारियों की कमी है. कोर्ट ने अंत में आदेश में सुधार करते हुए दिल्ली में बीएस-4 और उससे आगे की गाड़ियों को सड़कों पर चलने की अनुमति दे दी.

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