राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शनिवार को बारां के धान मंडी मैदान में आयोजित स्वयंसेवक एकत्रीकरण कार्यक्रम में 3,500 से अधिक स्वयंसेवकों को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है. उन्होंने कहा, 'हम यहां अनादि काल से निवास कर रहे हैं. भले ही हिंदू उपनाम बाद में उभरा. हिंदू शब्द का प्रयोग भारत में रहने वाले सभी संप्रदायों के लिए किया जाता रहा है. हिंदू सभी को अपना मानते हैं और सभी को गले लगाते हैं. हिंदू कहते हैं कि हम और आप दोनों अपनी-अपनी जगह सही हैं. हिंदू सतत संवाद के माध्यम से सामंजस्यपूर्ण रूप से सह-अस्तित्व में विश्वास करते हैं.' इस बयान के बाद सियासत शुरू हो गई है.
सोमवार को आजतक के खास शो हल्ला बोल में अंजना ओम कश्यप ने भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी से पूछा कि कांग्रेस ने जातिगत जनगणना का मुद्दा छेड़कर भाजपा को फंसा दिया है? इस सवाल के जवाब में सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, 2014 के बाद हिंदू खतरे में आया ऐसा नहीं है. कांग्रेस जो कह रही है वह सही नहीं है. 2014 के बाद हिंदुओं ने खतरे को समझना शुरू किया है. जाति जनगणना पर मैं कहना चाहता हूं कि आरक्षण तभी बचा रहेगा जब हिंदू मजबूत रहेगा.
आरक्षण खत्म करने का किया जिक्र
उन्होंने कहा कि कांग्रेस के दौर में SC, ST और OBC का आरक्षण साफ कर दिया गया था. जामिया मिलिया इस्लामिया से SC, ST और OBC का आरक्षण साफ हो गया था. उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में 91 जातियों को जोड़ा गया, जिनमें से 85 मुस्लिम थे. हमारी सरकार ने 2019, 2020 में अल्पसंख्यक को वाजिब हक दिए और वाजिब आरक्षण दिए.
सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, नसरुल्लाह के लिए कानपुर, भोपाल सहित कई जगह मातम हुआ. ये लोग तो जय फिलिस्तीन तक बोल चुके हैं. 80 फीसदी हिंदू कहां है. ये तो 20 फीसदी मुस्लिम है ये सही है. 80 फीसदी में कई जातियां हैं. इसलिए मोहन भागवत और मोदी जी जो कह रहे हैं वह बहुत सत्य है और तथ्यों पर है.
बता दें कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बारां के धान मंडी मैदान में आयोजित स्वयंसेवक एकत्रीकरण कार्यक्रम में इस बात पर जोर दिया कि हिंदू समाज को भाषा, जाति और क्षेत्रीय असमानताओं और संघर्षों को खत्म करके अपनी सुरक्षा के लिए एकजुट होना होगा. उन्होंने आह्वान किया कि ऐसे समाज का निर्माण होना चाहिए जहां संगठन, सद्भावना और परस्पर श्रद्धा व्याप्त हो. लोगों के आचरण में अनुशासन, राज्य के प्रति दायित्व और उद्देश्यों के प्रति समर्पण हो. उन्होंने कहा कि समाज का गठन केवल व्यक्तियों और उनके परिवारों से नहीं होता; समाज की व्यापक चिंताओं पर विचार करके कोई भी व्यक्ति आध्यात्मिक संतुष्टि प्राप्त कर सकता है.
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