क्या AI की रेस में पिछड़ा भारत? एक्सपर्ट्स बोले- गेम अभी खुला, बस करना होगा ये काम!

भारत के पास AI क्रांति में वैश्विक लीडर बनने का बेहतरीन मौका है, भले ही वह अमेरिका और चीन से कुछ पीछे हो. विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत को अपनी प्रतिभा, डेटा और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर का उपयोग करके खुद को एआई का 'यूजर' नहीं, बल्कि 'प्रोड्यूसर' बनाना होगा. सरकारी मिशन और निजी निवेश को दोगुना करना सफलता की कुंजी है.

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एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत को AI में दोगुनी रफ्तार से काम करना होगा. (Photo: India Today) एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत को AI में दोगुनी रफ्तार से काम करना होगा. (Photo: India Today)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 26 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 4:09 PM IST

मुंबई में चल रहे इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के दूसरे दिन आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर बात हुई. The AI Revolution: Pivot or Perish में कई मेहमानों ने हिस्सा लिया, जिसमें एआई की रेस में भारत कहां खड़ा है इसपर चर्चा हुई. भारत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) क्रांति को लेकर एक बड़ा सवाल है कि क्या देश इस वैश्विक रेस में पिछड़ गया है. एक्सपर्ट मानते हैं कि हम अमेरिका और चीन से भले ही 3 साल पीछे हों, लेकिन यह अभी भी "गेम ऑन" है. हमारे पास एक अरब से अधिक जनसंख्या की ताकत है, जिसका मतलब है कि किसी भी प्रोडक्ट या इनोवेशन का सबसे ज्यादा इस्तेमाल भारत में होगा. यह एक ऐसा अवसर है जिसे हमें भुनाना होगा.

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'टैलेंट और डेटा की भरमार'
Fractal के सह-संस्थापक श्रीकांत वेलामाकन्नी ने जोर दिया कि भारत में AI टैलेंट की कोई कमी नहीं है. दुनिया में AI इस्तेमाल करने वाला हर चौथा व्यक्ति भारतीय है. इसके अलावा, AI के लिए सबसे ज़रूरी चीज, यानी डिजिटल डेटा भी भारत सबसे ज़्यादा प्रोड्यूस कर रहा है. हम AI पर रिसर्च पेपर लिखने वाले टॉप-3 देशों में शामिल हैं. उनके अनुसार, हमें सिर्फ 'यूज़केस' बनकर नहीं रहना है, बल्कि 'प्रोड्यूसर' बनना है.

'इन्फ्रास्ट्रक्चर और इन्वेस्टमेंट पर ज़ोर'
नैसकॉम के पूर्व अध्यक्ष आर. चंद्रशेखर ने स्वीकार किया कि चीन और अमेरिका हमसे आगे हैं. लेकिन, भारत के पास मजबूत डिजिटल बेस तैयार है. उन्होंने कहा कि तीन साल पीछे होना भी एक 'बड़ा लीप' है, और हमें दुनिया की दोगुनी रफ्तार से चलना होगा. सफलता के लिए, सरकारी और निजी इन्वेस्टमेंट को अभी से दो से तीन गुना करने की जरूरत है. साथ ही, भारत को अपना खुद का सिटिजन-सेंट्रिक AI इंफ्रास्ट्रक्चर मॉडल भी बनाना होगा.

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'सरकार और निजी क्षेत्र की साझेदारी'
बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के दीप मुखर्जी ने कहा कि AI का गेम अभी भी खुला है. कोई भी देश बहुत ज़्यादा पिछड़ा नहीं है, क्योंकि यह सफर अभी शुरू ही हुआ है. उन्होंने उदाहरण दिया कि चैट-जीपीटी से ज़्यादा एफिशिएंट चीन का डीपसीक है, जो दिखाता है कि तकनीक तेज़ी से बदल रही है. उन्होंने माना कि सरकार ने डिजिटल और AI के लिए अच्छा काम किया है, लेकिन अब प्राइवेट एंटिटी को आगे आना होगा.

आगे का रास्ता: क्वांटम और भारतीय मॉडल!
एक्सपर्ट्स ने सहमति जताई कि बड़ी AI कंपनियां भारतीय डेटा का इस्तेमाल कर रही हैं, जिससे हम उनके लिए एक डेटाबेस बन रहे हैं. इस स्थिति को बदलना होगा. वेलामाकन्नी ने कहा कि भारत को अपनी मुश्किलों को खत्म करने के लिए 'रिजनिंग मॉडल' बनाना चाहिए. मुखर्जी ने सुझाव दिया कि हमें केवल AI पर नहीं, बल्कि क्वांटम टेक्नोलॉजी पर भी बात करनी चाहिए. भारत का AI मॉडल शिक्षा और हेल्थकेयर जैसे क्षेत्रों में बड़े बदलाव ला सकता है.

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