'आम के सहारे आगे बढ़ा बौद्ध धर्म', 'आजतक रेडियो' पर सोपान जोशी से सुनें इतिहास

सोपान जोशी ने कहा, 'बुद्ध को ऐसी बातें साधारण लोगों को समझानी थी जो एकदम निर्गुण हैं या निराकार हैं. उनको ऐसे रूपक चाहिए होते थे, जिससे वो साधारण लोगों को जटिल बात समझा सकें. जातक कथाओं में जिस तरह से बार-बार आम का जिक्र आता है, उससे यही समझ में आता है कि बुद्ध को अपनी बात लोगों को समझाने के लिए आम से बड़ी मदद मिली.'

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(सांकेतिक फोटो) (सांकेतिक फोटो)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 07 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 5:50 PM IST

'इंसान के हाथ की बनाई नहीं खाते, हम आम के मौसम में मिठाई नहीं खाते', मशहूर शायर मुनव्वर राणा का यह शेर बताता है कि आम... कोई आम फल नहीं है. आम की महत्ता इस बात से समझी जा सकती है कि प्राचीन बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में आम की एक बड़ी भूमिका रही है. आजतक रेडियो के पॉडकास्ट 'पढ़ाकू नितिन' में आए खास मेहमान सोपान जोशी ने बताया कि आम हमेशा से बौद्ध धर्म के केंद्र में रहा है.

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सोपान जोशी ने कहा, 'अगर कोई एक धर्म है जिसमें आम की केंद्रीय भूमिका है तो वो बौद्ध धर्म है. बौद्ध धर्म के प्रचार में आम का इस्तेमाल किया गया है. ये और पीछे जाता है क्योंकि बौद्ध धर्म का प्रचार तो साम्राज्यों ने किया है. खुद बुद्ध को जब बोध प्राप्त हुआ, उसके बाद तो वो घरों के भीतर रहने वाले नहीं थे, क्योंकि जो संन्यास ले चुका है उसका घरों में रहना वर्जित होता है. बुद्ध का उसके बाद ज्यादातर जीवन अमराइयों में ही कटा है.'

सरल भाषा में बात समझाने के लिए लिया आम का सहारा

उन्होंने कहा, 'बुद्ध को ऐसी बातें साधारण लोगों को समझानी थी जो एकदम निर्गुण हैं या निराकार हैं. उनको ऐसे रूपक चाहिए होते थे, जिससे वो साधारण लोगों को जटिल बात समझा सकें. जातक कथाओं में जिस तरह से बार-बार आम का जिक्र आता है, उससे यही समझ में आता है कि बुद्ध को अपनी बात लोगों को समझाने के लिए आम से बड़ी मदद मिली.'

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सोपान जोशी ने कहा, 'ऐसा माना जाता है कि उन्होंने जो अपना पहला प्रवचन दिया, जहां धर्मचक्र की बात की वो आज बनारस के उत्तर में सारनाथ नाम की जगह है, उस समय वो अमराई थी. वही धर्मचक्र आज हमारे तिरंगे झंडे की शोभा है. हमारे देश के झंडे तक में आम के संबंध दिखाई देते हैं.'

प्रकृति ने हमको फलों के लालच से बनाया है

उन्होंने कहा, 'आम की उत्पत्ति जब आप खोजने जाते हैं तो अमराइयों के पीछे हमारे पुरखे किस तरह दीवाने थे, ये समझ आता है क्योंकि ये हमारे खून में है. प्रकृति ने हमको फलों के लालच से बनाया है यानी असल में हमारा स्वभाव फलदार पेड़ों से बना है. हम जिस परिवार से आते हैं जिसे अंग्रेज़ी में प्राइमेट और हिन्दी में नर-वानर गण कहा जाता है. ये गर्भनाल वाले स्तनपायी जीवों में अकेला परिवार है जिसको लाल दिखता है. बिल्ली, गाय, कुत्ते को लाल नहीं दिखता. ज्यादातर जीव जो हमारे आस-पास दिखते हैं, उनको लाल नहीं दिखता लेकिन हमको दिखता है.'

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