महाराष्ट्र के ठाणे में अदालत ने 2012 में एक विवाद के दौरान एक ट्रैफिक कांस्टेबल पर हमला करने के आरोपी एक व्यक्ति को बरी कर दिया है. अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष 'विरोधाभासी और अविश्वसनीय'गवाहों के बयानों के कारण अपने मामले को साबित करने में विफल रहा. 3 अक्टूबर के आदेश की एक प्रति सोमवार को उपलब्ध कराई गई.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जी टी पवार ने रघुनाथ नाना बुगे को भारतीय दंड संहिता की धारा 353 (लोक सेवक पर हमला), 504 (जानबूझकर अपमान) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत सभी आरोपों से बरी कर दिया.
उस समय ट्रैफिक हेड कांस्टेबल रहे चंद्रकांत दयानंद बिदाये ने आरोप लगाया था कि 6 मार्च, 2012 को बुगे ने महाराष्ट्र के ठाणे शहर के घोड़बंदर रोड पर अपने डंपर पर जैमर लगाए जाने पर आपत्ति जताई थी और कांस्टेबल के हाथ-पैर काटने की धमकी दी थी.
पुलिसकर्मी ने आरोप लगाया कि आरोपी ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया, मारपीट की और धमकी दी जबकि वह सिर्फ अपनी ड्यूटी कर रहा था. एफआईआर दर्ज होने के बाद 13 साल से ज़्यादा समय तक चली सुनवाई के बाद, न्यायाधीश पवार ने अभियोजन पक्ष के बयान में गंभीर विसंगतियां पाईं.
न्यायाधीश ने कहा, 'अभियोजन पक्ष के गवाह ने गवाही दी है कि आरोपी कार में मौके पर आया था और उससे झगड़ा किया था. जबकि जिरह के दौरान अभियोजन पक्ष के एक अन्य गवाह ने स्वीकार किया है कि कार के चालक या मालिक के साथ कोई झगड़ा नहीं हुआ था. इस प्रकार, आरोपी द्वारा झगड़े के संबंध में अभियोजन पक्ष के दोनों गवाहों के साक्ष्य विरोधाभासी हैं.'
अदालत ने आगे बताया कि एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी, क्रेन चालक, की गवाही घटना के विवरण से मेल नहीं खाती. अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि जांच अधिकारी ने किसी भी स्वतंत्र गवाह का बयान दर्ज नहीं किया, हालांकि वे उपलब्ध थे. अदालत ने बुगे को सभी आरोपों से बरी कर दिया.
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