'तुरंत बंद हो ये अमानवीय प्रथा...', माथेरान हिल स्टेशन में हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शे पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भी माथेरान जैसे पर्यटक स्थल पर यह अमानवीय प्रथा कायम है, जबकि इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय 45 साल पहले ही स्पष्ट आदेश दे चुका था.

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सुप्रीम कोर्ट. (File Photo: ITG) सुप्रीम कोर्ट. (File Photo: ITG)

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 06 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 11:09 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के प्रसिद्ध हिल स्टेशन माथेरान में हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शों के संचालन पर कड़ा रुख अपनाते हुए इसे अमानवीय और अस्वीकार्य करार दिया है. कोर्ट ने इस प्रथा को तुरंत बंद करने का निर्देश देते हुए कहा कि एक इंसान द्वारा दूसरे इंसान को रिक्शे में खींचना आज़ादी के 78 साल बाद भी जारी रहना संविधान और गरिमामय जीवन के वादों से विश्वासघात है.

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मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भी माथेरान जैसे पर्यटक स्थल पर यह अमानवीय प्रथा कायम है, जबकि इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय 45 साल पहले ही स्पष्ट आदेश दे चुका था.

पुनर्वास और वैकल्पिक आजीविका पर ज़ोर

कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि वह हाथ रिक्शा चालकों के पुनर्वास के लिए ठोस योजना तैयार करे, ताकि वे अपनी आजीविका से वंचित न हों. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को गुजरात के केवडिया मॉडल की तर्ज पर ई-रिक्शा नीति अपनाने का सुझाव भी दिया है.

सीजेआई गवई ने आदेश लिखाते हुए कहा, "हमें खुद से यह सवाल पूछना होगा कि क्या हम सामाजिक और आर्थिक समानता के संवैधानिक वादे के प्रति सजग हैं. दुर्भाग्य से इसका जवाब ‘नहीं’ है."

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तकनीकी विकास को अपनाने की जरूरत

कोर्ट ने कहा कि अब जबकि देश में तकनीकी विकास के चलते ई-रिक्शा जैसे पर्यावरण के अनुकूल विकल्प उपलब्ध हैं, तो हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शों को जारी रखना न सिर्फ अमानवीय है, बल्कि विकास के रास्ते में भी बाधा है. कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि राज्य सरकार तत्काल सामाजिक न्याय, गरिमा और तकनीकी समाधान को प्राथमिकता देते हुए उचित नीतिगत बदलाव करे.

बता दें कि इससे पहले 24 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से माथेरान में हाथ रिक्शा बंद करने और ई-रिक्शा लाने पर विचार करने का आग्रह किया था. अब कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि इस प्रथा को आगे चलने देने का कोई संवैधानिक औचित्य नहीं है.

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