सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कभी भी कहीं भी आंदोलन नहीं कर सकते, शिवसेना बोली- ये है सरकार के ही 'मन की बात'

शिवसेना ने किसान आंदोलन सहित तमाम मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के जरिये फिर से केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. शिवसेना के मुखपत्र सामना में सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी का जिक्र किया गया है, जिसमें उसने कहा था कि आंदोलन का अधिकार निरंकुश नहीं है. कभी भी, कहीं भी आंदोलन नहीं किया जा सकता.

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महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे (फाइल फोटो-Getty Images) महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे (फाइल फोटो-Getty Images)

aajtak.in

  • मुंबई,
  • 15 फरवरी 2021,
  • अपडेटेड 11:49 AM IST
  • आंदोलन को लेकर शीर्ष कोर्ट ने की थी टिप्पणी
  • कोर्ट की टिप्पणी को बताया सरकार के मन की बात
  • 'आंदोलन के नाम पर सड़क पर कब्जा नहीं कर सकते'

शिवसेना ने किसान आंदोलन सहित तमाम मुद्दों पर फिर से केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. शिवसेना के मुखपत्र सामना में सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी का जिक्र किया गया है जिसमें उसने कहा था कि आंदोलन का अधिकार निरंकुश नहीं है. कभी भी, कहीं भी आंदोलन नहीं किया जा सकता.

सामना में लिखा गया कि आंदोलन का अधिकार निरंकुश नहीं है. कभी भी, कहीं भी आंदोलन नहीं किया जा सकता, सुप्रीम कोर्ट ने अब ऐसा कहा है. शीर्ष कोर्ट के मुख से सरकार के ही 'मन की बात' सामने आई है क्या? चार दिन पहले ही प्रधानमंत्री मोदी ने देश के आंदोलन का मजाक उड़ाया था. उन्होंने खिल्ली उड़ाते हुए कहा था कि कुछ लोग केवल आंदोलन पर ही जीते हैं. ये लोग 'आंदोलनजीवी' हैं. 

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शिवसेना ने कहा कि अब सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रधानमंत्री के सुर में सुर मिलाते हुए आंदोलनकारियों को आंख दिखाई है. कोर्ट कहता है, 'देश में अचानक एकाध आंदोलन हो सकता है. लेकिन आंदोलन के नाम पर कोई लंबे समय तक सार्वजनिक सड़कों पर कब्जा नहीं जमा सकता. इससे दूसरों के अधिकारों का हनन होता है.' 

शिवसेना ने कहा कि अदालत का ऐसा कहना तर्कसंगत है. पिछले साल दिल्ली के शाहीनबाग में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में आंदोलन हुआ. आंदोलनकारियों ने बीच सड़क पर कब्जा कर लिया, जिससे नागरिकों को असुविधा हुई. इस संदर्भ में न्यायालय में एक याचिका सुनवाई के लिए आई. इस पर न्यायालय का यह विचार स्पष्ट हुआ. हिंदुस्तान लोकतंत्र प्रधान देश है. देश की जनसंख्या 130 करोड़ की है. कई जाति, धर्म और पंथ के लोग यहां रहते हैं. यहां राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक समस्याएं हैं. इसलिए विरोध का सुर तो उठेगा ही.

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शिवसेना ने कहा कि तानाशाही और सेनाशाही वाले देशों में भी जनता सड़कों पर उतरती है. रूस में पुतिन की एकाधिकारशाही है. लाखों लोग उनकी तानाशाही के विरोध में मास्को, क्रेमलिन परिसर की सड़कों पर उतरे हैं. म्यांमार में लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता में आई सरकार को दूर करके वहां सेना ने सत्ता हथिया ली है. लेकिन उस देश की जनता ने आंदोलन शुरू कर दिया है.

शिवसेना के मुखपत्र सामना में कहा गया है कि दिल्ली बॉर्डर पर किसान 3 महीनों से आंदोलन कर रहे हैं. तीन कृषि कानूनों के कारण देश की कमर ही टूटती जा रही है. किसानों को दूसरे पर निर्भर होना पड़ेगा और भविष्य में उसे चार-पांच बड़े उद्योगपतियों का गुलाम होना पड़ेगा. ऐसी परिस्थिति में इन किसानों का सड़कों पर उतरना स्वाभाविक है.

जिस हिंदुस्तान के संविधान की बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आंदोलन पर मार्गदर्शन किया है, वही संविधान किसानों के नागरिक अधिकारों की रक्षा करने में असमर्थ साबित होगा तो क्या करें? डॉ. अंबेडकर संविधान निर्माता हैं. उनका कहना था कि, 'यह संविधान अगर निरर्थक साबित हुआ तो इसे मैं अपने हाथों ही जला डालूंगा.' डॉ. अंबेडकर ने ऐसा क्यों कहा होगा?, इसका अध्ययन न्यायालय को करना ही चाहिए.

पेट्रोल-डीजल की दर रोज बढ़ रही है. इस जानलेवा महंगाई के विरोध में जनता कहां और कैसे आंदोलन करे, इसका मार्गदर्शन सुप्रीम कोर्ट को करना चाहिए. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत बहुत कम होने के बावजूद मोदी की सरकार देश की जनता को उसका लाभ देने को तैयार नहीं है. सरकार अपनी तिजोरी भर रही है. बेरोजगारों के मोर्चे निकल रहे हैं. शिक्षकों का आंदोलन शुरू है. छात्रों की भी समस्याएं हैं. सरकार के मूक-बधिर हो जाने के कारण लोगों को आंदोलन का रास्ता चुनना पड़ता है. शिवसेना ने कहा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट को हिंदुस्तान के संविधान में इस व्यवहार पर कुछ उपाय हो तो बताना चाहिए.  

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