संजय राउत ने लिया उद्धव ठाकरे का इंटरव्यू, पूछा- क्या CM पद के लिए हिंदुत्व को छोड़ा?

एक सवाल के जवाब में उद्धव ठाकरे ने कहा कि अगर बीजेपी ने वचन का पालन किया होता तो अच्छा होता. लोकसभा चुनाव से पहले हमारे बीच बात हुई थी लेकिन बीजेपी उससे मुकर गई. मैंने ऐसा क्या बड़ा मांग लिया था, आसमान के चांद-तारे तो नहीं मांगे थे ने. मैंने तो लोकसभा चुनाव से पहले जो वादा हुआ था वहीं तो मांगा था.

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उद्धव ठाकरे (फाइल फोटो) उद्धव ठाकरे (फाइल फोटो)

aajtak.in

  • मुंबई,
  • 03 फरवरी 2020,
  • अपडेटेड 11:17 AM IST

  • उद्धव ने कहा- मैं दो भाइयों के बीच फंस गया
  • 'मैं पूर्व पीएम मनमोहन सिंह से ज्यादा बोलता हूं'

शिवसेना नेता और पार्टी के मुखपत्र सामना के संपादक संजय राउत ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे का इंटरव्यू लिया है. इस इंटरव्यू में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी से अलग होने, हिंदुत्व की विचारधार को छोड़ने व एक्सीडेंटल मुख्यमंत्री कहलाने से संबंधित कई सवाल दागे. ठाकरे ने उनके हर सवाल का खुलकर जवाब दिया... आइए जानते हैं क्या-क्या बोले ठाकरे?

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संजय राउत- उद्धव जी आप धक्का लगने से संभले कैसे?

उद्धव ठाकरे- मुझे धक्का लगा ऐसा आपको लगता है क्या? इसका कारण ये है कि मैं सेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे का बेटा हूं. बहुत लोगों ने मुझे धक्का देने की कोशिश करके देखा, लेकिन किसी से हुआ नहीं और जिन लोगों ने शिव सेना प्रमुख को धक्का दिया वो आज भी संभल नहीं पाए. ये क्षेत्र ऐसा है जिसमें धक्का और धक्कामुक्की दोनों देखकर चलना पड़ता है. शतरंज दिमाग से खेलने का ही खेल होता है, जिसमें प्यादे, हाथी, घोड़ा, ऊंट, वज़ीर, इन सबकी चाल को ध्यान में रखकर खेलना पड़ता है.

संजय राउत- शतरंज दिमाग का खेल है, लेकिन महाराष्ट्र की जो राजनीति है इसका खेल लोगों के दिमाग में बैठ गया है. आपने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, आपको नहीं लगता कि यही सबसे बड़ा धक्का था?

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उद्धव ठाकरे- मुख्यमंत्री पद मेरे लिए कोई धक्के की बात नहीं है, ये मेरा सपना कभी नहीं था. मैंने शिवसेना प्रमुख की बातों को पूरा करने के लिए किसी भी बात तक जाने की सोच ली थी. मैं आज भी बोलता हूं कि मेरा यह मुख्यमंत्री का पद कोई वचनपूर्ति पद नहीं है. यह वचनपूर्ति के आगे की बात है, इसके लिए कहीं तक जाना पड़े तो मैं जाने के लिए तैयार हूं और मैंने अपने पिता को जो वचन दिया था वो पूरा करूंगा.

संजय राउत- क्या इस धक्के से महाराष्ट्र संभलेगा?

उद्धव- धक्के कई प्रकार के होते हैं, लोगों को पसंद आया या नहीं ये महत्वपूर्ण बात है. अब तक मुझे ऐसा लग रहा है और मैं कई बार बोल चुका हूं कि जनता को भी थोड़ा-बहुत समझ में आ गया है. वचन देना और वचन का पालन करना, वचन तोड़ना, वचन भंग करना और फिर वचन तोड़ने के बाद मेरे पास कोई दूसरा प्रयाय नहीं था.

संजय राउत- इस धक्के से 25 साल पुराना साथी अलग हो गया.

उद्धव- मुझे पता नहीं, अगर बीजेपी ने वचन का पालन किया होता तो क्या हो जाता. मैंने ऐसा क्या बड़ा मांग लिया था, आसमान के चांद-तारे तो नहीं मांगे थे ने. मैंने तो लोकसभा चुनाव से पहले जो वादा हुआ था वहीं तो मांगा था.

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संजय- आपको धक्का देने की कोशिश की, आपने उल्टा उनको धक्का दे दिया

उद्धव- इसलिए मैंने बोला कि इसमें धक्का और धक्कामुक्की दोनों है.

संजय- धक्का किसे मिला और मुक्का किसे मिला

उद्धव- महाराष्ट्र और देशभक्त

संजय राउत- महाराष्ट्र में जो राजनीति में हुआ है या बिगड़ा है, उससे आप संतुष्ट हैं?

उद्धव- मैं बिगाड़ने वालों में से नहीं हूं, करने वालों में से हूं. किसी को लगता है कि उसका कुछ बिगड़ा है तो उसने खुद से बिगाड़ कर लिया है, मैंने नहीं बिगाड़ा है.  

संजय राउत- लोकसभा चुनाव के पहले एक ऐसी तस्वीरें सामने आईं कि लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेंगे, फिर लोगों ने देखा कि अंमित शाह मिलने के लिए आए और आप उनके प्यार में पड़ गए.

उद्दव- जो करने का है दिल खोलकर करने का है. उस वक्त वो सामने से आए, हमारी मुलाकात हुई, हमारा उद्देश्य एक है. कितना पुराना हमारा रिश्ता है, पीढियां भले ही बदल गई हों, थोड़ा उतार चढ़ाव हुआ होगा, लेकिन मकसद एक है तो पुरानी बातों को भुलाकर हम आगे निकल चले.

संजय राउत- लेकिन नई शुरुआत तो कहीं दिख नहीं रही है.

उद्धव- तब तक तो थी, मैं अहमदाबाद और बनारस में भी पर्चे भरने के समय गया हुआ था, मेरे मन में किसी के खिलाफ कोई गलत सोच नहीं थी.

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संजय राउत- विधानसभा चुनाव में थोड़ी खींचतान तो हुई थी. आप भी दो कदम पीछे हट गए थे और हिंदुत्व के लिए युति को बनाकर रखा था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विधानसभा चुनाव के पहले आपको छोटा भाई कहते थे.

उद्धव- मैंने अपनी तरफ से युति को गठबंधन बनाने की पूरी कोशिश की थी.

संजय राउत- देवेंद्र फडणवीस भी तो आपको चुनाव से पहले बड़ा भाई कहते थे.

उद्धव- मैं दो भाइयों के बीच फंस गया.

संजय राउत- ये भाई-बंदी को क्या हुआ, महाराष्ट्र में एक परिवार की तरह देखा गया ये परिवार टूट क्यों गया?

उद्धव ठाकरे- महाराष्ट्र में शिवसेना मराठी मानुस के इंसाफ के लिए आई थी, लेकिन उसके बाद सेना प्रमुख ने देखा कि देश मे हिंदुओं के लिए समस्या आ रही है. उसके बाद 1987 में हम बीजेपी के साथ आए एक साथ चुनाव लड़ा. दोनों पक्ष एक साथ आते गए. वो पहला चुनाव था जो हम हिंदुत्व के नाम पर लड़े और जीते. दोनों एक जैसी सोच वाली पार्टी हिंदुत्व के नाम पर एक साथ आई. हमारे हिंदुत्व में वचन देना और निभाना अलग-अलग बात है. मैंने ऐसा कभी नहीं कहा था कि आऊंगा, ना मैने कभी सपना देखा था न मेरी इच्छा थी. ये बड़ी जिम्मेदारी है, ये शिवाजी के राज्य की  जिम्मेदारी है, जिसमें मुझे बिना इच्छा के बैठाया गया. इस पर बैठाने वाली शक्ति जो है उसका आशीर्वाद है.

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संजय राउत- ठाकरे कभी सरकारी पद पर नहीं बैठे थे या देश में ऐसी धारणा थी कि ठाकरे ही सरकार हैं लेकिन अब ठाकरे ने सरकार बनाई है. कुछ लोगों को यकीन नहीं हो रहा कि उद्दव मुख्यमंत्री बन गए और काम हो रहा है. ये दिखाने की कोशिश है कि उद्धव ठाकरे एक्सीडेंटल सीएम हैं.

उद्दव- ऐसा कितने लोगों के साथ होता है कि उसने जो सपना देखा और वो जनता के सपने पूरे कर रहा हो. बाला साहेब ने भी कहा था कि वो न चुनाव लड़ेंगे न घर के किसी सदस्य को लड़ाएंगे, फिर हम पर टीका-टिप्पणी होने लगी कि खुद से करके दिखाओ तो करके दिखा दिया.

मनमोहन सिंह इतने समय देश के पीएम रहे. उन्होंने अर्थव्यवस्था संभाली और अराजकता नहीं होने दी. उन्हें भी एक्सीडेंटल सीएम कहा जाता है. उन्होंने काफी कुछ करके दिखाया, क्योंकि वो पीएम बनेंगे ये सोचा नहीं गया था. लेकिन मैं उनसे ज्यादा बोलता हूं.

संजय राउत- आप पर आरोप लगता है कि आपने ये सब पाने के लिए विचारधारा छोड़ दी और हिंदुत्व को भी.

उद्धव- मैंने धर्मांतरण किया है क्या और जो तुम कहोगे वही हिंदुत्व है ऐसा कहीं कोई ब्रह्म वाक्य है क्या? ये कानून में लिखा है? इसलिए मैं ही सर्वव्यापी परमेश्वर हूं, मैंने जो कहा वही सही है, ये हास्यास्पद दावा है.

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संजय राउत- सरकार बनाने के लिए तीन विचारधारा एक साथ हैं. कांग्रेस और एनसीपी की तो एक ही है.

उद्धव- जो केंद्र में सरकार है उस पर कोई सवाल क्यों नही उठता. नीतीश, मुफ्ती, चंद्र बाबू की विचारधारा एक है क्या? हमने देश हित की बात नहीं छोड़ी है. दूसरे दलों से लोगों को लाकर सत्ता में आना ये सही है क्या? अगर ये सही है तो उसी दल के साथ सरकार बनाने में क्या हर्ज है. उनके पास जाकर सब धुल जाते हैं क्या?

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