राज ठाकरेः चाचा बाल ठाकरे के 'धोखे' ने छीन ली राजनीतिक जमीन

जनवरी, 2006 में शिवसेना से अलग होने के बाद राज ठाकरे ने मार्च, 2006 में अपनी खुद की एक अलग पार्टी बनाई जिसका नाम रखा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे). इसका प्रतीक चिन्ह रेलवे इंजन है. शिवसेना में बड़ी संख्या में राज के समर्थक मनसे में शामिल हो गए.

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महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के मुखिया राज ठाकरे (फाइल-FB) महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के मुखिया राज ठाकरे (फाइल-FB)

सुरेंद्र कुमार वर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 15 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 12:53 PM IST

राज ठाकरे, महाराष्ट्र की राजनीति में एक ऐसा नाम है जिसने शिवसेना पार्टी के लिए काफी कुछ किया और जब उसे इसका इनाम मिलना था तो किसी और को मिल गया. पुत्र मोह के कारण बाल ठाकरे से पार्टी की कमान पाने से चूकने वाले राज ठाकरे अपने चाचा बाल ठाकरे की तरह ही ओजस्वी और भड़काऊ भाषण के लिए जाने जाते हैं.

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अपने भड़काऊ भाषण के लिए पहचाने जाने वाले राज ठाकरे आज की तारीख में भले ही महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी खास मुकाम बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हों, लेकिन कभी उन्हें प्रदेश की राजनीति का चमकता सितारा माना जाता था. उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत शिवसेना के साथ की थी और उन्हें शिवसेना के भावी नेता के तौर पर देखा जाता था, लेकिन बाल ठाकरे उत्तराधिकार सौंपने के मामले में राज की जगह अपने बेटे उद्धव ठाकरे की तरफ ज्यादा झुकाव रखने लगे जिससे नाराज होकर राज ने पार्टी से बगावत कर दिया और उससे अलग हो गए.

जनवरी, 2006 में शिवसेना से अलग होने के बाद उन्होंने मार्च, 2006 में अपनी खुद की एक अलग पार्टी बनाई जिसका नाम रखा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे). इसका प्रतीक चिन्ह रेलवे इंजन है. शिवसेना में बड़ी संख्या में राज के समर्थक मनसे में शामिल हो गए.

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पहचान के लिए आक्रामक शैली

बाल ठाकरे के जरिए शिवसेना से झटका खाने और राज्य में अपनी नई राजनीतिक छवि बनाने के लिए राज ठाकरे को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ी और इसके लिए उन्होंने आक्रामक शैली अपनाते हुए मराठी मानुष की राजनीति पर जोर दिया. 2008 में उन्होंने उत्तर भारतीयों (खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार के खिलाफ) को महाराष्ट्र से बाहर करने के लिए हिंसक आंदोलन का नेतृत्व किया.

सितंबर 2008 में मनसे कार्यकर्ताओं ने राज्य में मराठी भाषा पर जोर देने के लिए अंग्रेजी और हिंदी में लिखे गए साइन बोर्डों को काला करना शुरू कर दिया और उस पर मराठी में लिखे जाने का दबाव बनाया था. उस समय लंबे समय तक महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय बनाम मराठी को लेकर तनाव बना रहा.

जया बच्चन के खिलाफ मोर्चा

इस बीच, वरिष्ठ फिल्म अभिनेत्री जया बच्चन की एक टिप्पणी 'हम यूपी के लोग हैं, इसलिए हम हिंदी बोलेंगे, मराठी नहीं' पर राज ठाकरने ने उनसे माफी मांगने को कहा और ऐसा नहीं करने तक उनकी सभी फिल्मों पर बैन लगाने की धमकी भी दे डाली थी. इसके बाद मनसे कार्यकर्ताओं ने कई सिनेमाघरों में तोड़-फोड़ भी शुरू किया. लगातार हो रहे हंगामे के कारण जया बच्चन की तरफ से अमिताभ बच्चन ने माफी मांगी.

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इससे पहले 2000 में राज पर उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसा फैलाने के आरोप भी लगे थे. राज ने एक रैली में कहा था कि अगर उत्तर भारतीयों के लोग 'दादागिरी' करते हैं तो उन्हें मुंबई में रहने नहीं दिया जाएगा और उनको मुंबई छोड़ना पड़ेगा.

खुद भी एक कार्टूनिस्ट

14 जून 1968 को मुंबई में जन्मे राज ठाकरे के पिता श्रीकांत केशव ठाकरे बाल ठाकरे के छोटे भाई हैं और उनकी माता कुंदा ठाकरे बाल ठाकरे की पत्नी मीना ठाकरे की छोटी बहन हैं. जन्म के समय उनका नाम स्वराज श्रीकांत ठाकरे था. राज के पिता एक संगीतकार रहे हैं और बड़े भाई बाल ठाकरे की तरह कार्टूनिस्ट और लेखक भी हैं. उनके 2 बच्चे अमित और उर्वशी हैं.

राज ठाकरे की पत्नी निर्देशक मोहन वाघ की बेटी हैं, जिसका नाम शर्मीला ठाकरे है. वह बाल ठाकरे के भतीजे और वर्तमान में शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे के चचेरे भाई भी हैं.

2014 में लगे बड़े झटके

उनकी शिक्षा मुंबई के बाल मोहन विद्या मंदिर स्कूल से हुई. इसके बाद उन्होंने सर जेजे कॉलेज से आगे की शिक्षा प्राप्त की. वह अपने पिता और चाचा की तरह एक चित्रकार और कार्टून भी बनाते हैं.  वह बाल ठाकरे की साप्ताहिक पत्रिका 'मार्मिक' में बतौर कार्टूनिस्ट काम भी किया. वह कई मौकों पर कार्टून के जरिए केंद्र की मोदी सरकार और अन्य मामलों पर अपनी राय रखते रहे हैं. साथ ही उन्हें संगीत पर भी अच्छी खासी पकड़ है. उन्होंने बचपन में तबला, गिटार और वायलिन बजाना सीखा था.

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चाचा से नाराज होकर अलग पार्टी बनाने के बाद राज की पार्टी मनसे हिंसक प्रदर्शनों के लिए जानी जाती है. अस्तित्व में आने के बाद पार्टी ने 2009 में पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरी और 288 में से 13 सीटों पर कब्जा जमाया, जबकि 2014 के विधानसभा चुनाव में वह महज एक सीट पर सिमट गई. इससे पहले पार्टी लोकसभा चुनाव में खाता भी नहीं खोस सकी. 2017 में हुए बीएमसी चुनाव में भी मनसे को कोई फायदा नहीं मिला.

अब राज्य में फिर से चुनाव का जोर है. लोकसभा के कुछ महीने बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं. अब देखना होगा कि राज अपने नेतृत्व में पार्टी को कहां तक ले जा पाते हैं.

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