मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच ने चेंबूर (पूर्व) इलाके में देह व्यापार के एक बड़े रैकेट का पर्दाफाश किया. इस दौरान एक 16 वर्षीय नाबालिग लड़की सहित पांच महिलाओं को बचाया गया और दो दलालों को गिरफ्तार किया गया.
पुलिस को सूचना मिली थी कि दो व्यक्ति अवैध गतिविधि के तहत महिलाओं को एक रेस्टोरेंट में लाने वाले हैं. इसकी पुष्टि के लिए पुलिस ने एक NGO की मदद से एक नकली ग्राहक भेजा. जैसे ही सूचना सही पाई गई, पुलिस ने मंगलवार को सदगुरु रेस्टोरेंट में छापा मारा और दोनों संदिग्ध दलालों को रंगे हाथ पकड़ लिया.
गिरफ्तार आरोपियों की पहचान हरिलाल बंदू चौधरी (42) और अफताब आलम अंसारी (26) के रूप में हुई है. पुलिस टीम का नेतृत्व सहायक निरीक्षक सचिन गवाड़े ने किया.
रेस्क्यू की गई सभी पीड़िताएं मुंबई और नवी मुंबई की रहने वाली हैं. पुलिस ने आरसीएफ पुलिस स्टेशन में दोनों आरोपियों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS), अनैतिक तस्करी रोकथाम अधिनियम (PITA) और पोक्सो (POCSO) एक्ट के तहत मामला दर्ज किया है.
POCSO (पॉक्सो) क्या है?
POCSO का पूरा नाम "The Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012" (यानी "यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012") है. यह भारत में 18 साल से कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी से बचाने के लिए बनाया गया कानून है.
POCSO कानून क्यों बनाया गया?
भारत में बच्चों के खिलाफ बढ़ते यौन अपराधों को रोकने और पीड़ितों को त्वरित न्याय दिलाने के लिए यह कानून बनाया गया. इसमें अपराधों की परिभाषा, सजा और पीड़ितों के अधिकार स्पष्ट किए गए हैं.
POCSO के तहत क्या अपराध आते हैं?
इस कानून के तहत बच्चों के खिलाफ निम्नलिखित अपराध आते हैं:
यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) – किसी भी प्रकार का अनुचित स्पर्श, इशारा, या शब्दों का प्रयोग.
यौन हमला (Sexual Assault) – बच्चे के साथ जबरदस्ती की गई कोई भी यौन गतिविधि.
गंभीर यौन हमला (Aggravated Sexual Assault) – परिवार के किसी सदस्य, शिक्षक, पुलिस अधिकारी या अन्य प्रभावशाली व्यक्ति द्वारा किया गया हमला.
यौन शोषण (Sexual Exploitation) – बच्चों का पोर्नोग्राफी, तस्करी, या किसी भी तरह के यौन उद्देश्यों के लिए शोषण.
पोर्नोग्राफी (Child Pornography) – किसी भी माध्यम से बच्चे की अश्लील तस्वीरें या वीडियो बनाना, बेचना या फैलाना.
POCSO के तहत सजा
अपराध की गंभीरता के आधार पर 3 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है.
आरोपी पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में होती है ताकि पीड़ित को जल्दी न्याय मिले.
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