...जब कांग्रेस का शिवसेना से हुआ था गठबंधन, महाराष्ट्र में कुछ भी असंभव नहीं

शिवसेना प्रमुख रहे बालासाहेब ठाकरे अपने कार्टूनों में इंदिरा गांधी को खूब निशाना बनाया करते थे. इसके बाद भी शिवसेना ने कांग्रेस से हाथ मिलाया था. 1975 में बालासाहेब ने इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल का सपोर्ट करके सबको चौंका दिया था. अब शिवसेना और कांग्रेस के साथ आने के कयास लगाए जा रहे हैं.

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सोनिया गांधी और उद्धव ठाकरे सोनिया गांधी और उद्धव ठाकरे

स्वप्निल सारस्वत

  • मुंबई,
  • 05 नवंबर 2019,
  • अपडेटेड 8:13 PM IST

  • महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर अभी तक तस्वीर साफ नहीं
  • महाराष्ट्र में शिवसेना पहले भी कर चुकी है कांग्रेस को समर्थन

महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद को लेकर सियासी संग्राम मचा हुआ है. शिवसेना और बीजेपी अपने-अपने जिद पर कायम है, इसी का नतीजा है कि अभी तक सरकार गठन नहीं हो सका. कांग्रेस-एनसीपी मौके की सियासी नजाकत को भांपने में जुटे हैं और अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं. इसके बावजूद शिवसेना शरद पवार की एनसीपी और कांग्रेस के दम पर सरकार बनाने का दम दिखा रही है. ऐसे में वैचारिक रूप से एक दूसरे के विरोधी कांग्रेस और शिवसेना साथ आते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि कभी बालसाहेब ठाकरे ने इंदिरा गांधी को समर्थन दिया था. हालांकि अब गेंद कांग्रेस के पाले में है.

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बता दें कि शिवसेना की स्थापना 1966 में बालासाहेब ठाकरे ने मुंबई में की थी. शिवसेना की छवि एक कट्टर कांग्रेस विरोधी दल की थी. बालासाहेब ठाकरे अपने कार्टूनों में इंदिरा गांधी को खूब निशाना बनाया करते थे. इसके बाद भी शिवसेना ने कांग्रेस से हाथ मिलाया था. 1975 में बालासाहेब ने इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल का सपोर्ट करके सबको चौंका दिया था.

1977 के चुनाव में भी बालासाहेब ठाकरे ने कांग्रेस को समर्थन किया था, लेकिन शिवसेना को ये सपोर्ट काफी भारी पड़ा था. 1978 के विधानसभा चुनाव और बीएमसी चुनाव में शिवसेना को मुंह की खानी पड़ी. शिवसेना को इतना बड़ा धक्का लगा कि बालासाहेब ने शिवाजी पार्क की एक रैली में अपना इस्तीफा तक ऑफर कर दिया था. हांलाकि शिवसैनिकों के विरोध के बाद ये इस्तीफा उन्होंने वापस ले लिया.

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1975 में आपातकाल लगने के बाद विपक्षी नेताओं को जेल भेजा जा रहा था. कहा ये जाता है कि महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण ने बालासाहेब के सामने दो विकल्प रखे या तो दूसरे विपक्षी नेताओं की तरह गिरफ्तार हो जाएं या फिर आपातकाल के समर्थन का ऐलान कर दें. बाला साहेब ने जेल जाना मुनासिब नहीं समझा और आपातकाल के पक्ष में हो गए.

इससे पहले भी 1971 में बालासाहेब ने कांग्रेस के दूसरे धड़े के साथ मिलाया था. 1969 में कांग्रेस का बंटवारा हो गया था. पीएम पद पर बैठीं इंदिरा गांधी को कांग्रेस के पुराने नेताओं ने पार्टी से निकाल दिया. इंदिरा गांधी के खिलाफ खड़े इन नेताओं के वर्ग को 'कांग्रेस के सिंडिकेट' के नाम से जाना जाता था. 1971 में बालासाहेब ने कांग्रेस (O) से हाथ मिलाया लोकसभा चुनाव के लिए तीन उम्मीदवार खड़े किए थे. हालांकि ये तीनों ही हार गए.

वैसे कहा ये जाता है कि कांग्रेस ने ही कम्युनिस्टों के खिलाफ लड़ने के लिए शिवसेना को खड़ा करने में मदद की थी. शुरुआती दिनों में उस समय के मुख्यमंत्री वसंतराव नाइक के नाम पर शिवसेना को विरोधी, वसंत सेना कहते थे. 1980 में शिवसेना ने कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में समर्थन किया था. बालासाहेब ने कांग्रेस के खिलाफ शिवसेना के प्रत्याशी  नहीं उतारे थे. इसकी बड़ी वजह बताई गई तत्कालीन मुख्यमंत्री एआर अंतुले के साथ बालासाहेब के निजी रिश्ते.

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यही नहीं बालासाहेब ने प्रतिभा पाटिल और प्रणव मुखर्जी दो कांग्रेसी उम्मीदवारों का राष्ट्रपति चुनाव के लिए समर्थन किया था.

1984 के चुनाव में बालासाहेब ने अपनी पार्टी के दो उम्मीदवार बीजेपी के चुनाव निशान पर खड़े किए थे. 1989 में बीजेपी-शिवसेना ने अपना गठबंधन फाइनल किया इसमें प्रमोद महाजन का बड़ा योगदान था. इस गठबंधन में शिवसेना हमेशा बड़े भाई की भूमिका में रही.

1990 के चुनाव में शिवसेना 288 में से 183 सीटों पर लड़ी. छोटे सहयोगियों को शिवसेना ने अपने कोटे से सीट दीं थी. 1995 में भी यही फॉर्मूला कायम रहा, जब बीजेपी-शिवसेना सत्ता में आए. इस फॉमूर्ले में थोड़ा बदलाव 1999 और 2004 में किया गया. वजह सुनने में आई बालासाहेब का लकी नंबर 9 है. शिवसेना171 और बीजेपी 117 सीटों पर चुनाव लड़ी. इस नंबर में एक मामूली बदलाव 2009 के विधानसभा चुनाव में हुआ,  जिसके बाद शिवसेना 169 और बीजेपी 119 सीट पर लड़ी. लेकिन महाराष्ट्र की सत्ता 15 साल कांग्रेस-एनसीपी के हाथों में रही.  

नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बीजेपी में उभार के बाद भगवा दलों का समीकरण बदल गया. 2014 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन टूट गया, दोनों अलग अलग चुनाव लड़े. शिवसेना को सिर्फ 63 और बीजेपी को 122 सीटें मिलीं. हालांकि चुनाव के बाद शिवसेना और बीजेपी ने मिलकर सरकार बनाई.

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2019 में बीजेपी 164 और शिवसेना 124 सीटों पर चुनाव लड़ी. इस दौरान कहा गया कि सत्ता के समान बंटवारे के लिए एक फॉर्मूला तय हुआ है. पर ये सीक्रेट फॉर्मूला है क्या, ना तो बीजेपी और ना ही शिवसेना ने इसका खुलासा किया. अब शिवसेना कह रही है कि मुख्यमंत्री पद के ढाई-ढाई साल के बंटवारे की बात हुई है जबकि बीजेपी इससे इनकार कर रही है.

महाराष्ट्र में जो इस समय हो रहा है वो शायद भारत में पहले कभी नहीं हुआ. बहुमत नहीं होने पर राजनैतिक दल किसी तरह दूसरे दलों से जोड़तोड़ करके सरकार बनाने की कोशिश करते हैं भले ही वो विचारधारा के स्तर में एक दूसरे से कितने भी अलग हों एक दूसरे के कितने भी बड़े विरोधी रहे हों लेकिन यहां तो सहयोगी ही आपस में भिड़े हुए हैं. महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए 9 नवंबर तक की डेडलाइन है.

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