मुंबई की विशेष अदालत ने तीन महीने के बच्ची का अपहरण और हत्या करने का दोषी मानते हुए ट्रांसजेंडर कन्हैय्या उर्फ कन्नू दत्ता चौगुले को मौत की सजा सुनाई है. मामले में विस्तृत आदेश अभी तक उपलब्ध नहीं कराया गया है, लेकिन आरोपी कन्नू दत्ता को अपहरण, हत्या, रेप और सबूतों को मिटाने और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया था.
पुलिस के मुताबिक, कन्हैया उर्फ कन्नू चौगुले (28) एक ट्रांसजेंडर है और उसका दोस्त सोनू काले (20) नवजात बच्चे को आशीर्वाद देने के लिए परिवार से मिलने गया और उनके आशीर्वाद के बदले में नकद, एक नारियल और एक साड़ी गिफ्ट में मांगा. हालांकि, जब बच्ची के माता-पिता ने देने से इनकार कर दिया, तो झगड़ा शुरू हो गया और दोनों कथित तौर पर उस रात वापस लौट आए.
ये भी पढ़ें- ऑडी, जैगुआर, BMW... हाईकोर्ट ने मुंबई पुलिस को दिया 41 लग्जरी गाड़ी वापस करने का आदेश
'बच्ची को पास की खाड़ी में मिट्टी में दबा दिया'
उन्होंने रात करीब 2.30 बजे बच्ची का अपहरण कर लिया. फिर बच्ची को पास की खाड़ी में मिट्टी में दबा दिया. माता-पिता द्वारा गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराने के बाद पुलिस ने ट्रांसजेंडर के साथ हो रहे झगड़े के इस एंगल पर काम करना शुरू किया और दोनों को ढूंढ निकाला. बच्ची का शव जुलाई 2021 में दक्षिण मुंबई के कफ परेड में एक खाड़ी क्षेत्र में दबा मिला था.
ट्रांसजेंडर की निशानदेही पर लड़की का शव बरामद
लगातार पूछताछ में दोनों टूट गए और स्वीकार कर लिया कि उन्होंने बच्चे का अपहरण किया था और बच्चे को गंदे समुद्र में फेंक दिया था. ट्रांसजेंडर की निशानदेही पर लड़की का शव बरामद किया गया और चौगुले और काले को गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि, पिछले हफ्ते अदालत ने काले को मामले में दोषी नहीं पाया था और इसलिए उसे छोड़ दिया गया था.
'मामले के रिकॉर्ड और कार्रवाई अब हाईकोर्ट को भेजी जाएगी'
जज एयू कदम ने निर्देश दिया है कि आरोपी जब तक वह मर न जाए तब तक उसे लटकाया जाए. ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई मौत की सजा की पुष्टि उच्च न्यायालय द्वारा की जानी होगी. इसलिए मामले के रिकॉर्ड और कार्रवाई अब हाईकोर्ट को भेजी जाएगी. पॉक्सो की एक धारा के तहत चौगुले को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. चौगुले 9 जुलाई 2021 से हिरासत में हैं.
न्यायाधीश कदम ने दिया है यह निर्देश
न्यायाधीश कदम ने निर्देशित किया है कि इस अवधि को आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 433 (ए) के प्रयोजन के लिए ध्यान में रखा जाएगा. सीआरपीसी की धारा 433 ए के अनुसार, कोई व्यक्ति ऐसे अपराध के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहा है, जिसमें मृत्युदंड का भी प्रावधान है. या जहां मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया है. वह व्यक्ति तब तक जेल से रिहाई के लिए पात्र नहीं है, जब तक कि वे चौदह वर्ष का कारावास पूरा न कर लें.
aajtak.in