यहां हिंदू बनाते हैं मुहर्रम के ताबूत, 150 साल से चली आ रही परंपरा

ताबूत बांधते वक्त चिकनी मिट्टी में सूती धागा लपेटकर ताबूतों की मंजिलें एक दूसरे पर बिठाई जाती हैं. यह करते वक्त कोई भी गांठ नहीं दी जाती. यही इन ताबूतों की खासियत है.

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हिंदुओं ने शुरू की परंपरा हिंदुओं ने शुरू की परंपरा

अंजलि कर्मकार

  • सांगली,
  • 17 अक्टूबर 2016,
  • अपडेटेड 4:07 PM IST

महाराष्ट्र के सांगली जिले के कड़ेगाव में हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माने जाने वाले ताबूतों की परंपरा पिछले 150 सालों से बड़ी धूमधाम से मनाई जा रही है. मुहर्रम पर यहां बने आसमान को छुते ताबूतों और उनका एक दूसरे के साथ अनोखा मिलाप देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. इन ताबूतों को हिंदू बनाते हैं. इस प्रथा को हिंदुओं ने ही शुरू किया है.

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कैसे बनाते है गगन चूमने वाले ताबूत?
इस गांव में 200 से 250 फीट ऊंचाई के ताबूत बनाए जाते हैं, जो बंबू की लकड़ी से बनाए जाते हैं. आठ कोनों के आकार में यह ताबूत बनाए जाते हैं. इन ताबूतों का शिखर पहले बनता है और आखिर में उसका बेस बनाया जाता है. ताबूत बांधते वक्त चिकनी मिट्टी में सूती धागा लपेटकर ताबूतों की मंजिलें एक दूसरे पर बिठाई जाती हैं. यह करते वक्त कोई भी गांठ नहीं दी जाती. यही इन ताबूतों की खासियत है.

पूरे गांव में निकाली जाती है झांकी
एक ताबूत उठाने के लिए 300 से 400 लोगों का होना जरूरी होता है. पुरे गांव में उसकी झांकी निकाली जाती है. ताबूत उठाने का पहला सम्मान देशपांडे, कुलकर्णी, शेटे, वालिंबे, सुतार और देशमुख का होता है. यह नजारा देखने के लिए गुजरात महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश से लाखों भक्त आते हैं.

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हर घर में बनता है मीठा और शरबत
ताबूतों को बनाने वाली टीम के एक सदस्य नासील पटेल ने बताया, 'कड़ेगांव में जो मोहर्रम त्यौहार मनाया जाता है, वो अपने आप में एक मिसाल है. ये मुस्लिम त्यौहार होने के बावजूद हिंदू लोग इसे मनाते हैं. इस दिन गांव के हर घर में मीठा और शरबत बनता है.

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