पुत्र मोह में बागी हुए कांग्रेस के ये बड़े नेता, कहा- 15 साल इंतजार किया फिर भी हुआ अन्याय

बेटे के साथ खड़े हुए चतुर्वेदी तो पार्टी ने भी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया. दो दिन पहले ही पार्टी सत्यव्रत चतुर्वेदी को कांग्रेस से बर्खास्त कर चुकी है. अब वो समाजवादी पार्टी से बेटे की जीत के लिए रात दिन एक कर रहे हैं.

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सत्यव्रत चतुर्वेदी सत्यव्रत चतुर्वेदी

अजीत तिवारी

  • भोपाल,
  • 22 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 3:27 PM IST

दिल्ली में कांग्रेस के बड़े चेहरे, सोनिया गांधी के करीबी और एआईसीसी में बड़ी हनक रखने वाले सत्यव्रत चतुर्वेदी इस बार मध्य प्रदेश चुनाव में पार्टी के खिलाफ बागी तेवरों में हैं. वो कांग्रेस के बजाय समाजवादी पार्टी के झंडे तले बेटे के चुनाव प्रचार में जी जान से जुटे हैं. जानकारी के मुताबिक चतुर्वेदी का पार्टी के खिलाफ खड़ा होना उनके लिए भारी पड़ा है और कांग्रेस ने उन्हें दो दिन पहले ही पार्टी से बर्खास्त कर दिया है.

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सत्यव्रत चतुर्वेदी खुले आम ताल ठोक कर कह रहे हैं कि अब अगर बेटे का साथ ना देकर पार्टी से चिपका रहता तो यह अन्याय हो जाता. पार्टी पिछले 3 चुनाव से बार-बार बेटे को टिकट देने की बात कहती रही और हर बार काट देती थी, लेकिन अब सब्र का बांध टूट गया. मैंने अन्याय के खिलाफ बेटे का साथ देने का फैसला किया.

'15 साल इंतजार के बाद भी पार्टी ने मेरे साथ किया अन्याय'

सत्यव्रत चतुर्वेदी ने आजतक से कहा, '15 साल से मेरा बेटा कांग्रेस में काम करता रहा, कांग्रेस से टिकट मांगता रहा. हर बार कहा गया कि अगली बार देंगे. 2003 से 2018 तक धैर्य के साथ उसने प्रतीक्षा की, लेकिन धैर्य की भी एक सीमा होती है. जब इस बार भी टिकट के लिए मना कर दिया गया तब उसने समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने का फैसला किया.'

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सत्यव्रत चतुर्वेदी ने कहा, 'मैं पिता हूं और अगर पुत्र के साथ अन्याय हो रहा है तो स्वभाविक रूप से बेटे का साथ दूंगा. पुत्र मोह नहीं है, यह पार्टी अन्याय कर रही है और वह भी बार-बार, 15 साल से अन्याय कर रही है. तो क्या इस अन्याय को बर्दाश्त करना चाहिए. क्या इसके खिलाफ खड़ा नहीं होना चाहिए.'

'हारने वाले को कांग्रेस में मिलता है टिकट'

उन्होंने कहा कि कांग्रेस विचित्र पार्टी है, हमारी पार्टी जो 45000 वोटों से पिछला चुनाव हारता है उसे टिकट दे सकती है लेकिन नितिन चतुर्वेदी को नहीं. चतुर्वेदी बोले, 'मैं खुलकर कह चुका हूं कि मैं बेटे का साथ दूंगा, लेकिन फिर भी मुझे स्टार कैंपेनर में शामिल किया गया.'

उन्होंने कहा, 'मैं कांग्रेस में जन्मा हूं और मरूंगा भी कांग्रेसी, लेकिन कांग्रेसी होने का मतलब कायर होना नहीं है. पार्टी ने मुझे निष्कासित कर दिया है. मैं आभारी हूं उनका, मेरे और मेरे पिता के 70 वर्षों की सेवा को पार्टी ने खत्म कर दिया. मैं उनका आभारी हूं.'

'मेरे अंदर का कांग्रेस कोई मार नहीं सकता'

चतुर्वेदी ने कहा, 'मैं बगैर पार्टी के, बगैर पद के काम करूंगा, सामाजिक जीवन में काम करूंगा. विनोबा के पास कौन सा पद था, गांधी के पास कौन सा पद था, जयप्रकाश के पास कौन सा पद था, मैं ऐसे ही सार्वजनिक जीवन में काम करूंगा. भले ही पार्टी में नहीं हूं, लेकिन मेरे अंदर की कांग्रेस को कोई नहीं मार सकता.'

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कांग्रेस उम्मीदवार के खिलाफ उतरे चतुर्वेदी के बेटे

सत्यव्रत चतुर्वेदी के बेटे नितिन चतुर्वेदी छतरपुर के राजभर सीट से चुनाव मैदान में हैं. यहां उनका मुकाबला कांग्रेस पार्टी के विधायक विक्रम सिंह 'नातीराजा' से है. विधायक विक्रम सिंह 'नातीराजा'  का ताल्लुक छतरपुर के पूर्व राजपरिवार से है और पिछले तीन बार से कांग्रेस के विधायक हैं. कभी सत्यव्रत चतुर्वेदी के करीबी रहे नातीराजा चतुर्वेदी पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं. मगर राजा होने की वजह से इलाके में उनकी अच्छी पकड़ है और एक बड़ा तबका उनके साथ है, जो हर बार उनकी जीत में अहम भूमिका अदा करता है.

नातीराजा ने तो इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने से मना कर दिया. लेकिन उनकी पत्नी कविता राजे ने कहा कि सत्यव्रत चतुर्वेदी ने विक्रम सिंह नातीराजा को आगे बढ़ाया, लेकिन लोकतंत्र जनता से चलता है और जनता जिसे चाहेगी वही विधायक होगा. उन्होंने कहा कि जनता नातीराजा को पसंद करती है इसीलिए वह चौथी बार भी चुनाव मैदान में हैं. वह किसी के चाहने और नहीं चाहने से चुनाव में नहीं हैं और इस बार फिर बड़े वोटों से जीतेंगे.

क्या है मामला?

जिस नातीराजा को सत्यव्रत चतुर्वेदी ने राजनीति में आगे बढ़ाया था उन्होंने सत्यव्रत चतुर्वेदी के बेटे के लिए सीट छोड़ने से मना कर दिया. सत्यव्रत चतुर्वेदी इससे नाराज चल रहे थे और उसी सीट से उन्होंने बागी होकर अपने बेटे को चुनाव में उतार दिया. नितिन चतुर्वेदी दावा करते हैं कि वह चुनाव जीतेंगे और भारी मतों से जीतेंगे. लेकिन कांग्रेस की अंदरूनी कलह इलाके में कांग्रेस पर भारी पड़ सकती है.

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माना जा रहा है विक्रम सिंह नातीराजा कमलनाथ गुट में हैं जबकि सत्यव्रत चतुर्वेदी ज्योतिरादित्य सिंधिया के गुट में. चुनाव में टिकट बांटने के दौरान कमलनाथ की चली है इसलिए सत्यव्रत चतुर्वेदी के चाहने के बावजूद नातीराजा दोबारा टिकट पाने में सफल रहे. इलाके में राजे रजवाड़ों की पकड़ अच्छी होने की वजह से नातीराजा को गरीबों में दलितों में ज्यादा समर्थन हासिल है. ऐसे में यहां की लड़ाई खासी दिलचस्पी हो चुकी है.

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