झारखंड विधानसभा में अधिकारियों ने अपना प्रमोशन खुद किया

इनमे वैसे पद भी शामिल है जिनमे नियमतः आरक्षित वर्गो के अधिकारियों को प्रोन्नति मिलनी थी. ऐसे एक दो नहीं बल्कि पूरे पच्चीस उदाहारण हैं जिनमे बहाली क्लर्क, टाइपिस्ट और चपरासी सरीखे पदों पर हुई थी लेकिन ये अब प्रशासनिक अधिकारी बने बैठे हैं.

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झारखंड झारखंड

प्रियंका झा / धरमबीर सिन्हा

  • रांची,
  • 12 अगस्त 2016,
  • अपडेटेड 12:10 PM IST

ऐसा झारखंड में ही संभव है की कोई अधिकारी अपने को प्रोन्नत करने के आदेश पर खुद ही हस्ताक्षर करे और उसपर कोई आंच भी न आए. मामला जुड़ा है विधानसभा में नियुक्ति और प्रोन्नति से जुड़े घोटाले से.यह आरोप लगा है विधानसभा में बैठे चंद सफेदपोशो पर. इस घोटाले में पहले तो उम्मीदवारों की नियुक्ति में आरक्षण के नियमो की सरासर अनदेखी करते हुए नाते रिश्तेदारों को बहाल किया गया. और फिर बिना किसी नियम का पालन कर प्रोन्नति देकर महज तीन सालों में इन्हें प्रशासनिक अधिकारी बना दिया.

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इनमे वैसे पद भी शामिल है जिनमे नियमतः आरक्षित वर्गो के अधिकारियों को प्रोन्नति मिलनी थी. ऐसे एक दो नहीं बल्कि पूरे पच्चीस उदाहारण हैं जिनमे बहाली क्लर्क, टाइपिस्ट और चपरासी सरीखे पदों पर हुई थी लेकिन ये अब प्रशासनिक अधिकारी बने बैठे हैं.

किसी भी अध्यक्ष ने आपत्ति दर्ज नहीं करवाई
इस प्रकरण में पहले तो विधानसभा में चहेतों की नियुक्ति की गई और फिर आनन-फानन में बिना किसी नियम-कानून की परवाह किए उन्हें उच्च पदों पर प्रमोशन भी दे दिया गया. पद भी वैसे जिनपर एक आइएएस सरीखे अधिकारी को पहुंचने के लिए पंद्रह साल लगते हैं. हैरानी तो इस बात को लेकर है की इस बारे में किसी भी दल ने आवाज नहीं उठाई. आरोप तो यह भी है की प्रोन्नति के मामले में दायर एक याचिका पर सुनवाई के समय शपथ पत्र देकर उच्च न्यायालय तक तो गुमराह किया गया.

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दूसरे राज्यों की तुलना में ज्यादा कर्मचारी
झारखंड इकलौता ऐसा राज्य है जो विकास के बजाए घोटालों के कारण ज्यादा चर्चित रहा है. गठन के बाद अल्पमत सरकारों के दौर में जमकर चहेतों को पदों की रेवड़ियां बांटी गई. राज्य सरकार की नियमावली के मुताबिक दो सालों में प्रोन्नति का प्रावधान है. पर इस प्रकरण में तो तमाम नैतिकता को ताक पर रखते हुए महज सात सालों में पांच-पांच प्रोन्नति दी गई. इसी तरह सुरक्षा गार्ड, फैक्स ऑपरेटर, बिल क्लर्क जैसों को आठ से बारह महीनो के अंदर पहले सहायक और अगले पंद्रह से सोलह महीनो में प्रशासनिक पदों पर प्रोन्नत कर दिया गया. हाल ये है की तीसरे और चौथे ग्रेड का कर्मचारी अब आइएएस का वेतनमान पा रहा है. अभी विधानसभा में एक विधायक पर दर्जन भर कर्मचारी नियुक्त हैं. ये देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक हैं. वहीं विधानसभा के प्रभारी सचिव का कहना है कि सभी नियुक्तियां नियमावली का पालन करते हुए की गई हैं.

क्या है मामला?
दरअसल, इस पूरे प्रकरण में कई विधानसभा अध्यक्षों की भूमिका संदेह के घेरे में है. आरोप है कि साल 2007 में झारखंड विधानसभा में हुई नियुक्तियों में कई पदाधिकारियों के संबंधियों और पहुंच वाले नेताओं के संबंधियों की बहाली हुई थी. मामला संज्ञान में आने के बाद तत्कालीन राज्यपाल ने हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज लोकनाथ प्रसाद की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग का गठन किया था. उन्हें तीस बिंदुओं पर जांच कर तीन माह के अंदर कर राज्यपाल को रिपोर्ट देने का निर्देश दिया गया था. आदेश के बाद आयोग ने काम शुरू किया. लेकिन विधानसभा सचिवालय ने जांच के लिए दस्तावेज देने में आनाकानी शुरू की. जब आयोग को दस्तावेज नहीं मिले तो इसे देखते हुए जस्टिस प्रसाद ने त्याग पत्र दे दिया.

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बीजेपी के सत्ता में आने पर फिर शुरू हुई जांच
साल 2014-15 में बीजेपी के सत्ता में काबिज होने के बाद एक बार फिर से मामले की जांच शुरू की गई. इस बार जांच का काम झारखंड हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश विक्रमादित्य प्रसाद को दिया गया. जिन्हें एक साल के भीतर अपनी रिपोर्ट देनी थी. हालांकि जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद को भी विधान सभा सचिवालय से असहयोग का सामना करना पड़ा. इस आयोग ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट बीते दिनों राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी. बताया जाता है कि बंद लिफाफे में सौंपी गई इस रिपोर्ट में नियुक्ति-प्रोन्नति में हुई गड़बड़ियों की जानकारी दी गई है. जांच में अब तक ऐसे 25 विधानसभा कर्मी शक के घेरे में आए हैं, जिन पर जाली प्रमाण पत्रों के आधार पर काम करने का संदेह है.

बिहार से जानकारी मांगी गई
संदेह के घेरे में आए अधिकारियों के प्रमाण पत्रों के बारे में बिहार से जानकारी मांगी गई है. बिहार ने जांच रिपोर्ट के लिए आयोग से ही अफसर मांगा और कहा कि वह संबंधित रजिस्टर उपलब्ध करा देगा. अफसर स्वयं देखकर यह पता कर लें कि प्रमाणपत्रों की सत्यता क्या है. हालांकि यह जांच अभी नहीं हो पाई है. इस जांच के बाद संबंधित लोगों से भी पूछताछ की जाएगी. जांच रिपोर्ट में अन्य कई तरह की गड़बड़ियों का उल्लेख है लेकिन जांच पूरी नहीं हो पाने की वजह से अंतरिम निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका. हालांकि झारखंड विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान कांग्रेसी विधायक आलमगीर आलम का कहना है कि उनके कार्यकाल के दौरान हुई नियुक्तियां नियमपूर्वक हुई है. वहीं बीजेपी के विधायक और वर्तमान में शहरी विकास मंत्री सी पी सिंह जो पूर्व में विधानसभा अध्यक्ष रह चुके हैं, का मानना है कि नियुक्तियों के संदर्भ में कुछ विसंगतियां पाई गई है, जिसकी जांच आयोग कर रहा है. वैसे राज्यपाल को अंतरिम रिपोर्ट मिलने के बाद जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आयोग का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा दिया गया है.

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