झारखंड के खूंटी में आदिवासी लगातार सरकार के विरुद्ध लामबंद हो रहे हैं. पहले पत्थलगड़ी, फिर स्कूलों की शुरुआत और अब बैंक ऑफ ग्राम सभा की शुरुआत.
दरअसल, इन इलाकों में सक्रिय आदिवासी ग्रामसभा के मुताबिक, स्वतंत्रता के समय जिस तरह असहयोग आंदोलन चलाया था, उसी तर्ज पर अब अनुसूचित क्षेत्रों में सरकार की सभी योजनाओं का बहिष्कार कर असहयोग आंदोलन चलाया जाएगा. इतना ही नहीं इनकी मानें तो संविधान ने उन्हें यह अधिकार दिया है कि वो सरकार से इतर अपनी रूढ़िवादी सामानांतर व्यवस्था चला सकते हैं. इसके लिए वो 1935 में बने कानून का हवाला देते हैं. वहीं, सरकार का कहना है कि कुछ संगठन संविधान की गलत व्याख्या कर भोले- भाले आदिवासियों को बरगलाने में लगे हैं.
पत्थलगड़ी के बाद आदिवासी बैंक की शुरुआत
खूंटी के उद्बुरु इलाके में आदिवासियों के लिए अपने बैंक ऑफ ग्राम सभा के भवन का शिलान्यास किया गया है. यहां आदिवासी महासभा के बैनर तले इस भवन का शिलान्यास किया जा रहा है. इस प्रस्तावित बैंक के मैनेजर ग्रामप्रधान होंगे. बैंक सेल्फ- हेल्प की तर्ज पर चलेगा. ग्रामसभा के स्वयंभू नेता जोसफ पूर्ति ने कहा कि सरकारी बैंकों में रुपये की चोरी होती है, इसलिए अब आदिवासी ग्रामसभा का अपना बैंक होगा. यह बैंक सभी गांवों में ग्रामसभा द्वारा संचालित होंगे. साथ ही अनुसूचित क्षेत्रों के आदिवासी बच्चे सरकारी स्कूल नहीं जाएंगे.
नक्सलवाद के बाद पत्थलगड़ी बना सरकार का सरदर्द
नक्सलवाद के बाद पत्थलगड़ी सरकार के लिए नया सरदर्द बन चुका है. आदिवासी बहुल जिन गावों में पत्थलगड़ी हो चुकी है वहां के लोग सरकारी योजनाओं का बहिष्कार करने में लगे हैं. इतना ही नहीं गावों में चल रहे सरकारी स्कूलों को बंद करने की घटनाएं भी घट रही हैं.
बीते दिनों में पुलिस और सरकारी अधिकारियों को बंधक बनाने की घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं. वहीं राज्य सरकार ने इन कार्यक्रमों को गैरकानूनी घोषित करते हुए इनके पीछे सक्रिय नेताओं के विरुद्ध देशद्रोह का मुकदमा दायर किया है. बावजूद इसके इन संगठनों से जुड़े लोग एक के बाद एक गावों को निशाना बनाते हुए सरकार को सीधी चुनौती पेश कर रहे हैं. राज्य के मुख्यमंत्री इसके पीछे नक्सली संगठनों की मिलीभगत बताते हुए कहते हैं कि पत्थलगड़ी की आड़ में दूरस्थ गावों में अफीम की खेती की जा रही है. लेकिन सरकार इनसे सख्ती से निपटेगी.
जनप्रतिनिधियों के मुताबिक इसके पीछे ईसाई संगठन
खूंटी के विधायक और इलाके के सांसद का मानना है कि इसके पीछे ईसाई संगठनों का हाथ है. जो लंबे अरसे से इन इलाकों में धर्मांतरण का कार्यक्रम बिना किसी रोक टोक के चला रहे थे. लेकिन पूर्ण बहुमत की बीजेपी सरकार आने के बाद इनके कार्यक्रम बंद होने लगे हैं. ऐसे में ये एक बहुत प्राचीन परंपरा को पुनर्जीवित कर लोगों की भावनाओं को उभारने के साथ साथ उन्हें सरकार का विरोध करने के लिए भी उकसा रहे हैं.
धरमबीर सिन्हा / मोनिका गुप्ता