पहलगाम में हुए बर्बर आतंकी हमले को एक महीना हो चुका है, लेकिन लश्कर के मूसा फौजी ग्रुप के चार आतंकियों, जिनमें तीन विदेशी और एक स्थानीय शामिल हैं का अब तक कोई सुराग नहीं मिला है. जांच एजेंसियों ने हमले के 24 घंटे के भीतर इन आरोपियों के स्केच जारी कर दिए थे, लेकिन 30 दिन बीत जाने के बाद भी यह सवाल बना हुआ है कि ऑपरेशन कहां तक पहुंचा और ये आतंकी अब तक पकड़े क्यों नहीं गए?
सूत्रों के मुताबिक, सुरक्षाबलों के सर्च और डिस्ट्रॉय ऑपरेशन में कोई कमी नहीं आई है. लेकिन अब यह ऑपरेशन पहलगाम से निकलकर दक्षिण और मध्य कश्मीर के घने जंगलों तक फैल गया है. यह तलाश अब "भूसे के ढेर में सूई खोजने" जैसी चुनौती बन चुकी है.
घने जंगल और उबड़-खाबड़ इलाके बने चुनौती
खुफिया सूत्रों का कहना है कि इस आतंकी हमले को सुनियोजित साजिश के तहत अंजाम दिया गया था और आशंका है कि आतंकी पहले से सुरक्षित किसी मजबूत ठिकाने में छिप गए हैं. संभवतः उन्होंने अपने हथियार छोड़ दिए हों, राशन और जरूरी सामान पहले से जमा कर रखा हो और अब पूरी तरह रेडियो साइलेंस में हों. घने जंगल और उबड़-खाबड़ इलाके अभियान को और जटिल बना रहे हैं.
इंटेलिजेंस ग्रिड को अब तक कोई भी इंटरसेप्ट, हैंडलरों से बातचीत, हीट सिग्नेचर या मानव खुफिया इनपुट नहीं मिला है, जो कि आमतौर पर किसी सफल ऑपरेशन की रीढ़ होते हैं. मौजूदा ऑपरेशन अब केवल ज़मीनी स्तर पर घने जंगल क्षेत्रों की फिजिकल स्कैनिंग पर निर्भर है, जिसमें अनंतनाग से कोकरनाग, त्राल से लेकर श्रीनगर के डाचीगाम फॉरेस्ट तक की तलाशी शामिल है. इसका मतलब है कि आतंकियों तक पहुंचने और उन्हें निष्क्रिय करने में अभी और वक्त लग सकता है.
सुरक्षाबलों की रणनीति
अधिकारियों का कहना है कि अभियान की तीव्रता में कोई कमी नहीं आई है और सुरक्षाबल हर संभव प्रयास कर रहे हैं. स्थानीय लोगों से भी सहयोग मांगा जा रहा है, लेकिन आतंकियों की चुप्पी और सुनियोजित रणनीति ने इस ऑपरेशन को और जटिल बना दिया है. आतंकवाद के खिलाफ चल रहे अभियानों को और तेज करने की रणनीति बनाई जा रही है ताकि इस आतंकी समूह को जल्द से जल्द निष्प्रभावी किया जा सके.
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मीर फरीद