एक साल AK सरकार: AAP के दुश्मन, दोस्त और लक्ष्य, क्या-क्या बदला?

भ्रष्टाचार का मुद्दा लेकर राजनीति में कूदने वाले अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के कामकाज और रवैये में काफी बदलाव देखने को मिला है.

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अरविंद केजरीवाल अरविंद केजरीवाल

लव रघुवंशी

  • नई दिल्ली,
  • 14 फरवरी 2016,
  • अपडेटेड 11:16 AM IST

बीजेपी को चारों खाने चित करके और कांग्रेस का सूपड़ा साफ करके दिल्ली की बागडोर संभालने वाली आम आदमी पार्टी ने अपने कार्यकाल का एक साल पूरा कर लिया. एक साल में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ने काफी तरक्की की है. बदलाव की राजनीति करने का दावा कर सत्ता में आई AAP ने एक साल में बदलाव की जो सीढ़ियां चढ़ी हैं वह काफी अहम हैं. फिर चाहे वह दोस्ती का मामला हो या दुश्मनी का या फिर लक्ष्य का...

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साल बदला, 'दुश्मन' बदले:
भ्रष्टाचार का मुद्दा लेकर राजनीति में कूदने वाले अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के कामकाज और रवैये में काफी बदलाव देखने को मिला है. कांग्रेस के खिलाफ मुहिम शुरू करने वाली AAP की दुश्मनी अब सीधे बीजेपी से है. कभी दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित के बहाने पूरी कांग्रेस को घेरने वाली आम आदमी पार्टी का फोकस एक साल में बदला है. बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार से AAP की तकरार जगजाहिर है. केंद्र के बहाने दिल्ली पुलिस और उपराज्यपाल नजीब जंग भी आदमी पार्टी के गुस्से की बलि चढ़ते रहते हैं. दिल्ली पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से असंतुष्ट केजरीवाल सरकार ने पुलिस कमिश्नर बीएस बस्सी, और उपराज्यपाल नजीब जंग दोनों को बीजेपी का एजेंट करार दिया.

कभी केजरीवाल के करीबी और उनकी आवाज रहे योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण भी उनके खिलाफ खड़े हो गए. दोनों नेताओं ने केजरीवाल की नीतियों का विरोध किया और पार्टी ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया.

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कभी जिस आम आदमी पार्टी को कांग्रेस ने बीजेपी की बी-टीम कहा था वही AAP अब बीजेपी के लिए सबसे बड़ी राजनीतिक चुनौती बन चुकी है. दिल्ली में प्रशासन को लेकर जहां बीजेपी और AAP की तकरार चल रही है तो वहीं आने वाले साल में पंजाब के चुनावों में भी बीजेपी को AAP से कांटे की टक्कर मिलने की उम्मीद है. पंजाब में AAP अपने पैर मजबूत कर रही है और उसके निशाने पर बीजेपी-अकाली दल गठबंधन है. इन दोनों की लड़ाई के बीच कांग्रेस कहीं आस-पास भी नजर नहीं आ रही.

केजरीवाल के दोस्त:
अन्ना हजारे के आंदोलन से अलग होकर अरविंद केजरीवाल ने जब 'राजनीति की सफाई' के लिए झाड़ू उठाई तो उनका दोस्त कोई नहीं था. सिर्फ चंद लोग थे जो पार्टी की कार्यकारिणी में शामिल थे या फिर पार्टी के वालंटियर. लेकिन दिल्ली में AAP की ऐतिहासिक जीत के साथ बाजी पलटी और दोस्तों का कारवां बढ़ता गया. केजरीवाल के दोस्तों की लिस्ट अब लंबी हो चली है. कभी जिस लालू प्रसाद पर केजरीवाल आग उगलते थे अब उनके साथ वो मंच साझा करते और गले मिलते नजर आते हैं. केजरीवाल के खास दोस्तों में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बिहार के सीएम नीतीश कुमार का नाम सबसे ऊपर है. केंद्र के खिलाफ कई मुद्दों पर इन तीनों की गहरी दोस्ती देखने को मिली है.

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बदला लक्ष्य:
बदलाव की राजनीति और भ्रष्टाचार दूर करने की मुहिम लेकर आम आदमी पार्टी ने राजनीति की शुरुआत तो की लेकिन जल्द ही सियासत के उसी ढर्रे पर चल पड़ी जिसमें सब चलते आ रहे हैं. क्रांति करने आई AAP का लक्ष्य अब राजनीतिक रूप से मजबूत होना और सरकार चलाना है. फिलहाल केजरीवाल और पार्टी का लक्ष्य 2017 में होने वाले पंजाब चुनाव हैं. पंजाब में उनकी कोशिश दिल्ली जैसे चमत्कार को दोहराने की होगी. इसके लिए पार्टी ने फील्डिंग अभी से शुरू कर दी है.

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