राजधानी दिल्ली में खतरनाक वायु प्रदूषण की स्थिति बने हुए 11 दिन हो चुके हैं लेकिन इस स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं देखा गया है. 11 दिन तक जिस तरह का वायु प्रदूषण दिल्ली वाले देख रहे हैं इतनी लंबी अवधि तक वैसा वायु प्रदूषण राजधानी के अब तक के इतिहास में कभी भी नहीं देखा गया है. इस अभूतपूर्व वायु प्रदूषण को इतना खतरनाक लेवल पर ले जाने में मौसम का एक बड़ा हाथ है. उत्तर पश्चिम भारत में मॉनसून के बाद अक्तूबर के दूसरे पखवाड़े से कोई भी ताकतवर वेस्टर्न डिस्टर्बेंस नहीं देखा गया है. इससे उत्तर-पश्चिम भारत में मौसमी परिस्थितियां स्थिर बनी हुई हैं और इसी के साथ पंजाब के खेतों से उठता धुंआ दिल्ली समेत उत्तर भारत के एक बड़े इलाके पर पसर गया और छंटा नहीं.
दरअसल दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण खतरनाक लेवल पर 28 अक्तूबर को पहुंच गया था. इस समय पंजाब में जलाए गए धान के खेतों का धुंआ राजधानी तक पहुंचने लगा था. जहां एक तरफ खेतों से धुंआ उठकर भारी मात्रा में राजधानी के आसमान पर पहुंच रहा था तो वहीं दूसरी तरफ उत्तर-पश्चिम भारत में हवाओं की रफ्तार थम चुकी थी और इसी के साथ तापमान में गिरावट का दौर शुरु हो चुका था. तापमान नीचे आने से जमीन पर हवा का घनत्व बढ़ने लगा था और साथ ही वायु प्रदूषण की मिक्सिंग हाइट भी गिरकर 500 मीटर के पास आ गई. मिक्सिंग हाइट वो ऊंचाई होती है जिसपर जाकर धुंआ और दूसरी प्रदूषक गैसें वायुमंडल की गैसों के साथ मिक्स होकर बिखर जाता है.
गर्मियों में मिक्सिंग हाइट 1.5 किलोमीटर से लेकर 2 किलोमीटर तक पहुंच जाती है. लेकिन मॉनसून के बाद दीवाली के आसपास आकर ये मिक्सिंग हाइट 500 मीटर के नीचे आ जाती है. थमी हुई हवा और घटी हुई मिक्सिंग हाइट के चलते पंजाब के खेतों का धुंआ वातावरण में तैर रहा था और ऐसे में दीवाली में हुई आतिशबाजी ने स्थिति को और गंभीर बना दिया. इसी के साथ राजधानी दिल्ली में चले रहे लाखों लाख वाहन और जेनसेट से निकलता धुंआ भी राजधानी के वातावरण में एकत्र होता रहा. इन स्थितियों के चलते दीपावली की रात तक दिल्ली गैस चैंबर में तब्दील हो चुकी थी.
मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक दीपावली के बाद वैसे तो हर साल धुंए का गुबार राजधानी के ऊपर मंडराता है लेकिन ये दो तीन दिनों में घटकर काफी कम रह जाता था. लेकिन इस बार जो हुआ उसमें मौसम को ही विलेन कहा जा सकता है. दरअसल दीपावली के समय से राजधानी के ऊपर हवाओं में हलचल न के बराबर रही. उसके बाद दिल्ली और आसपास के इलाकों में हवाएं ऊपर से नीचे की ओर बैठने लगी. इस स्थिति को मौसम विज्ञान की भाषा में एंटी साइक्लोनिक कंडीशन कहते हैं. ऐसी स्थिति में हवाएं स्थिर हो गईं और दिल्ली और आसपास के इलाकों में आतिशबाजी और वाहनों का धुंआ यहीं पर तैरने लगा. इसी के साथ उत्तर-पश्चिम भारत में दो कमजोर वेस्टर्न डिस्टर्बेंस भी आए लेकिन ये लद्दाख होते हुए निकल गए. इनसे दिल्ली की हवाओं में नमी तो बढ़ गई लेकिन हवाओं ने रफ्तार नहीं पकड़ी. उधर कमजोर वेस्टर्न डिस्टर्बेंस के जाते ही तापमान में गिरावट शुरू हो गई और पारा 14 डिग्री सेल्सियस के आसपास आ गया. इससे वातावरण में कोहरा बनने लगा जो पहले से ही मौजूद धुंए और प्रदूषण के साथ मिलकर और घना होकर स्मॉग बन गया.
मौसम विभाग के मुताबिक राजधानी दिल्ली के ऊपर बना एंटी साइक्लोनिक सिस्टम अभी कमजोर तो हुआ है लेकिन अभी ये पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है. अगले 24 से 48 घंटों तक उत्तर पश्चिम भारत में एक किलोमीटर की ऊंचाई पर तेज हवाओं का दबदबा रहेगा और इससे थोड़ी राहत मिलने की संभावना तो बनती है लेकिन इससे स्मॉग पूरी तरह अभी फिलहाल खत्म होने नहीं जा रहा है.
सबा नाज़ / सिद्धार्थ तिवारी