ना साइंटिस्ट ना खेलों के उस्ताद, प्रदूषण नहीं बनने देगा बच्चों को स्मार्ट

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट कहती है. यूनिसेफ की हालिया रिपोर्ट में बच्चों पर प्रदूषण के असर को लेकर चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं. रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण बच्चों की शारीरिक सेहत को ही नहीं, बल्क‍ि मानसिक सेहत को भी प्रभावित करता है.

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वंदना भारती / रोशनी ठोकने / प्रियंका सिंह

  • नई दिल्ली,
  • 06 दिसंबर 2017,
  • अपडेटेड 6:06 PM IST

लक्ष्मी नगर में रहने वाले आलोक सिंह और ममता सिंह अपने 2 महीने के बच्चे को घर से बाहर निकालने में भी डरते हैं.

आलोक सिंह के मुताबिक दिल्ली का बढ़ते प्रदूषण ने उनके बच्चे की सेहत पर भी असर डाला है. यही वजह है कि आलोक अपने बच्चे की सेहत को लेकर हमेशा फिक्रमंद रहते हैं.  

यकीनन किसी भी मां-बाप के लिए अपनी बच्चों से बढ़कर कोई खुशी नहीं होती. ल‍ेकिन यह बच्चा अगर दिल्ली में जन्मा है तो उस पर पहले दिन से ही प्रदूषण का वार शुरू हो जाता है.   

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पर्यावरण के खतरनाक नतीजे

ये हम नहीं कह रहे, बल्कि यूनिसेफ की एक रिपोर्ट कहती है. यूनिसेफ की हालिया रिपोर्ट में बच्चों पर प्रदूषण के असर को लेकर चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं. रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण बच्चों की शारीरिक सेहत को ही नहीं, बल्क‍ि मानसिक सेहत को भी प्रभावित करता है.

प्रदूषण से बच्चों के दिमाग को होने वाला नुकसान इतना बड़ा और गहरा होता है कि इसका असर लंबे समय तक रहता है.  

प्रदूष‍ित हवा नहीं होने देती दिमाग को विकसित

दरअसल, प्रदूष‍ित हवा में मौजूद अल्ट्रा फाइन पार्टिकल्स इतने छोटे होते हैं कि यह खून में आसानी से समा जाते हैं और दिमाग में जहरीले कणों से रक्षा करने वाले ब्लड ब्रेन बैरियर पर हमला करने लगते हैं. यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार वहीं अल्ट्रा फाइन मैग्नेटाइट अगर शरीर में पहुंच जाएं तो ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस हो सकता है, जो आगे चलकर न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों का कारण बनता है.

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पॉलिसाइक्लिक ऐरॉमैटिक हाइड्रोकार्बन दिमाग के उन हिस्सों को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जो न्यूरॉन्स को कम्यूनिकेट करने में मदद करता है, साथ ही दिमाग के उस हिस्से को भी प्रभावित करता है, जिसके जरिए बच्चा सीखता है और विकसित होता है.

1 से 5 साल के बच्चों पर ज्यादा असर

दरअसल, बच्चे के पैदा होने से लेकर पांच साल तक की उम्र तक उसका इम्यून सिस्टम और फेफड़े विकसित होने की प्रक्रिया में होते हैं. लिहाजा इस उम्र में बच्चा जब सांस लेता है तो उस वक्त वो अपने शरीर के वजन के मुताबिक बड़ों की तुलना में ज्यादा सांस लेता है. अगर बच्चा ये सांस प्रदूषित हवा में ले रहा है, जो कि दिल्ली में ज्यादातर मौकों पर प्रदूषित ही होती है,  तो फिर हवा में मौजूद कैमिकल्स सीधे उसके दिमाग पर अटैक करते हैं.  

प्रदूष‍ित हवा में कौन से रसायन मौजूद

चलिए आपको ये भी बता देते हैं कि वायु प्रदूषण में कौन-कौन से जहरीले रसायन मौजूद होते हैं. इन रसायनों का बच्चों की सेहत पर कैसे असर होता है.  

प्रदूषण में तीन तरह के पार्टिकल्स यानी कण होते हैं. पहला अल्ट्रा फाइन पॉल्यूशन पार्टिकल्स, दूसरा अल्ट्रा फाइन मैगनेटाइट और तीसरा पॉलीसाइक्लिक ऐरोमैटिक हाइड्रो कार्बन्स.  

बीते दिनों जब पॉल्यूशन का लेवल बढ़ा हुआ था, तब इन्हीं तीनों पार्टिकल्स ने आपके बच्चों पर अटैक किया और जब प्रदूषण में मौजूद ये जहरीले कण अटैक करते हैं तो उसका परिणाम बेहद खराब होता है.

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PM 2.5 कैसे करता है अपना काम

बाल रोग विशेषज्ञ डॉ रवि मलिक के मुताबिक PM 2.5 जैसे प्रूदषण के कण इतने छोटे और बारीक होते हैं कि वो हवा के जरिए बच्चों के शरीर के अंदर पहुंचते हैं. शरीर में पहुंचने के बाद ये खून से होते हुए ब्रेन तक पहुंच जाते हैं, जहां से ये ब्लड ब्रेन बैरियर पर अटैक करते हैं.

बच्चे के दिमाग में एक पतली सी झिल्ली होती है, जो दिमाग को जहरीले पदार्थों से बचाती है. दिल्ली की हवा बीते कई वर्षों से खासतौर पर सर्दियों के वक्त सबसे ज्यादा प्रदूषित होती है.  लिहाजा दिल्ली में पैदा होने वाले और यहां रहने वाले बच्चों के दिमाग पर प्रदूषण का सबसे ज्यादा अटैक होता है.

प्रदूषण के कारण बच्चों को होती है ये परेशानी

चाइल्ड न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर प्रवीण कुमार ने आजतक को बताया की लगातार प्रदूषण के संपर्क में रहने की वजह से बच्चों के बढ़ते ब्रेन पर सीधा असर हो रहा है. इसकी वजह से बच्चे की सीखने समझने की क्षमता, एकाग्रता और याददाश्त पर असर पड़ रहा है. प्रदूषण के कण जैसे लेड, सल्फर, नाइट्रस ऑक्साइड, ओजोन ये सभी ब्रेन को प्रोटेक्ट करने वाले ब्लड बैरियर मेम्ब्रेन को नुकसान पहुचाते हैं.

बच्चों के दिमाग का 90 प्रतिशत विकास 2 साल की उम्र तक हो जाता हैं. लेकिन बाकी 10 प्रतिशत दिमाग 10 से 12 की उम्र तक विकसित होता रहता है, जो कि प्रदूषण के संपर्क की वजह से बच्चों में आगे मेमोरी प्रॉब्लम, लेस आईक्यू जैसी कमियों का कारण बन सकता है. यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण के कण ब्रेन के वाइट मैटर, जो कि बच्चों को सीखने समझने में मददगार होता हैं, उसे भी लगातार डैमेज कर रहे हैं.

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इसके अलावा ये समस्या अर्बन या मेट्रो एरियाज में सभी जगह से ज्यादा है. इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि हमारा पर्यावरण ही इसके लिए जिम्मेदार है.

बीते नवंबर दिल्ली में पूरे सात दिन यानी 7 नवंबर से लेकर 13 नवंबर के बीच पीएम 2.5 और पीएम 10 दोनों सीवियर कैटेगरी में थे और मौजूदा वक्त यानी दिसंबर के पूरे शुरुआती हफ्ते में भी वायु प्रदूषण लगातार Very Poor कैटेगरी में बना हुआ है. सीधे लफ्जों में कहें तो इस दौरान जहरीली हवा ने बच्चों के दिमाग पर सबसे ज्यादा अटैक किया.

कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि अगर वक्त रहते प्रदूषित हवाओं का कोई इलाज नहीं किया गया, तो फिर इन जहरीली हवाओं में सांस लेने वाले बच्चे ना तो कभी वैज्ञानिक बन पाएंगे और ना ही खेलों की दुनिया में हिन्दुस्तान का नाम रौशन कर सकेंगे.

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