सरकार मुझे बर्खास्त कर देती, तब भी जलने नहीं देता जाफराबाद: पूर्व पुलिस कमिश्नर

दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त अजय राज ने कहा, सच यह है कि उत्तर पूर्वी दिल्ली जिले में हिंसा 24-25 फरवरी को अचानक नहीं फैल गई. इसकी जड़ में शाहीन बाग है. अगर शाहीन बाग तैयार नहीं हुआ होता, तो दिल्ली में कहीं कोई फसाद ही नहीं होता.

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अजय राज शर्मा, पूर्व पुलिस कमिश्नर (फाइल फोटो) अजय राज शर्मा, पूर्व पुलिस कमिश्नर (फाइल फोटो)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 01 मार्च 2020,
  • अपडेटेड 9:06 PM IST

  • पूर्व कमिश्नर ने शाहीन बाग को बताया हिंसा की जड़
  • अजय राज ने कहा- चुनाव में बयानों से बिगड़ा माहौल
उत्तर पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद, सीलमपुर, ओल्ड मुस्तफाबाद, भजनपुरा, चांद बाग आदि इलाके बीते 24-25 फरवरी को अचानक जलने शुरू नहीं हुए. इनकी शुरुआत शाहीन बाग से हुई है. मैं अगर अभी दिल्ली का पुलिस कमिश्नर (आयुक्त) होता तो शाहीन बाग में सड़क पर जमने वालों को पहले ही दिन सड़क से उठाकर पार्क में ले जाकर बैठा आया होता. चाहे जो होता, किसी भी कीमत पर जाफराबाद आदि इलाके को मैं जलने नहीं देता. भले ही क्यों न सरकार मुझे निकाल कर बाहर कर देती.'

आईएएनएस से बातचीत में दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त अजय राज शर्मा ने कही. अजय राज शर्मा यूपी कैडर 1966 बैच के पूर्व आईपीएस और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट हैं. अजय राज दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के सेवा-निवृत्त महानिदेशक हैं.

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'अगर आप दिल्ली पुलिस के इस वक्त कमिश्नर होते तो भला क्या करते?' पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "जिस दिन 100-50 लोग शाहीन बाग में रास्ता घेरकर बैठे थे, मैं उसी दिन उन सौ-पचास को सड़क से उठवा कर कहीं किसी पार्क में ले जाकर बैठा आया होता. आमजन की सड़क को घेरने/घिरवाने का क्या मतलब?"

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दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त ने कहा, "सच यह है कि उत्तर पूर्वी दिल्ली जिले में हिंसा 24-25 फरवरी को अचानक नहीं फैल गई. इसकी जड़ में शाहीन बाग है. अगर शाहीन बाग तैयार नहीं हुआ होता, तो दिल्ली में कहीं कोई फसाद ही नहीं होता. पहले शाहीन बाग की जमीन तैयार हुई. उसके बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने के लिए जिस नेता के दिल में जो कुछ ऊट-पटांग आया, उसने वो बोला. बे-रोकटोक. किसी ने गोली मार देने तक की बात की."

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अजय राज शर्मा के ही अल्फाजों में, "मैंने जो कुछ मीडिया से देखा-सुना है उसके हिसाब से तो दिल्ली के इन दंगों में पुलिस मूक-दर्शक बनी रही. वजह क्या थी यह दिल्ली पुलिस और हुकूमत मुझसे ज्यादा जानती है. मुझे तो लगता है कि पुलिस किसी दबाव और भ्रम में थी. जैसे ही सांप्रदायिक भावनाओं का घड़ा भरा, असामाजिक तत्वों ने उस घड़े को दंगों के रूप में फोड़ डाला."

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