कहते हैं मौसम पर किसी का जोर नहीं चलता. लेकिन सियासत चाहें तो मौसम को भी अपने हिसाब से ढाल लेती है. ऐसा ही कुछ देखा गया दिल्ली विधानसभा के मंगलवार से शुरू हुए दो दिवसीय सत्र के दौरान. दिल्ली के बाशिंदे इन दिनों बेशक जनवरी की कड़ाके की ठंड का सामना कर रहे हों लेकिन दिल्ली विधानसभा में बीते साल का मानसून सत्र जारी ही है.
मंगलवार को जब दिल्ली विधानसभा का दो दिनों का सत्र बुलाया गया तो कम ही लोगों को मालूम होगा कि नए साल यानी 2017 में भी पिछले साल के मानसून सत्र के तहत ही सदन की कार्यवाही चल रही है. अमूमन ऐसा होता है कि दिल्ली विधानसभा का शीतकालीन सत्र नवंबर या दिसंबर महीने में बुला ही लिया जाता है, लेकिन दिल्ली सरकार ने किसी न किसी वजह से मानसून सत्र का सत्रावसान करना ही जरुरी नहीं समझा है. यानी 9 जून 2016 को जो दिल्ली विधानसभा का मानसून सत्र शुरू हुआ उसे सरकार ने खत्म ही नहीं किया. 17 और 18 जनवरी का विधानसभा सत्र मानसून सत्र 2016 का छठा हिस्सा है.
सरकार ने ऐसा क्यों किया इसके पीछे तमाम सियासी कयास लगाए जा रहे हैं. दरअसल दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के विधायकों की तादाद सिर्फ 3 है, जिनमें से एक बीजेपी विधायक ओम प्रकास शर्मा को मानसून सत्र के बीच में यानी 11 जून 2016 को सदन की कार्यवाही से दो सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया था. अगर दिल्ली में शीतकालीन सत्र बुला लिया जाता तो उसके बाद ओपी शर्मा की सदस्यता बहाल हो जाती, जो आम आदमी पार्टी सदन के भीतर उनके आक्रामक तेवर को देखते हुए नहीं चाहती है.
इसके अलावा जब भी किसी नए साल में विधानसभा के सत्र का आगाज किया जाता है, तो उसकी शुरुआत उपराज्यपाल के अभिभाषण से होती है, जो कि राष्ट्रपति के नुमाइंदे हैं. लेकिन पिछले साल के सत्र को जारी रखकर आम आदमी पार्टी सरकार ने ये तरीका भी ढूंढ़ निकाला जिससे दिल्ली के नए उपराज्यपाल अनिल बैजल का विधानसभा में अभिभाषण ही नहीं कराना पड़े. इसपर जब मंगलवार को विधानसभा की बैठक हुई तो विपक्ष की तरफ से आपत्ति भी दर्ज कराई गई. अगर उपराज्यपाल का अभिभाषण होता तो ऐसी हालत में सामान्य तौर पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी सदन के नेता की हैसियत से विधानसभा में मौजूद होना जरुरी होता, लेकिन मुख्यमंत्री इस वक्त पंजाब चुनाव में पार्टी के लिए प्रचार में लगे हैं, इसलिए उनकी मौजूदगी भी मुश्किल थी.
ऐसी स्थिति में दिल्ली विधानसभा में 2017 का पहला सत्र बजट सत्र ही होगा जो कि संभवत: मार्च में होगा. तबतक पंजाब और गोवा में चुनाव भी निबट जाएंगे और एमसीडी चुनाव भी करीब होगा. ऐसे में उपराज्यपाल के अभिभाषण के जरिए आम आदमी पार्टी की सरकार अपनी उपलब्धियों का खूब बखान भी कर पाएगी. साथ ही बजट सत्र से ओपी शर्मा भी बाहर होंगे यानी विधानसभा में बीजेपी के विधायकों की संख्या भी दो ही रहेगी. ज़्यादा हंगामे का भी सत्ता पक्ष को सामना नहीं करना पड़ेगा.
कब और कैसे रहे जून से जनवरी तक के सत्र के 6 हिस्से
1- पहला भाग- 9 जून से 13 जून- आम मुद्दों पर चर्चा और प्रश्नकाल
2- दूसरा भाग- 22 अगस्त से 26 अगस्त- हाईकोर्ट के सरकार और उपराज्यपाल के अधिकारों को लेकर आए फैसले के बाद बुलाया गया. दिल्ली में डेंगू और चिकनगुनिया पर चर्चा हुई. पुलिस के जरिए विधायकों के खिलाफ कार्रवाई पर भी हुई चर्चा. दो बिलों को भी पास कराया गया. जिनमें दिल्ली लग्जरी टैक्स बिल और भारत रत्न बीआर अंबेडकर यूनिवर्सिटी बिल भी पास हुआ.
3- तीसरा भाग- 9 सितंबर (सिर्फ एक दिन का सत्र)- सरकार ने अधिकारियों के तबादले को लेकर बैठक बुलाई. जिसमें विधानसभा के सचिव की नियुक्ति भी सवालों में आई. बीजेपी ने सरकार के मंत्री संदीप कुमार के सीडी कांड का मुद्दा उठाया.
4- चौथा भाग- 30 सितंबर- सत्र बुलाया तो गया केंद्र सरकार के बारे में खुलासा करने के लिए, लेकिन सेना के शहीद जवानों को श्रद्धांजलि देकर खत्म हुआ, क्योंकि तभी सर्जिकल स्ट्राइक हुआ था.
5- पांचवा भाग- 15 नवंबर- अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और विधानसभा में दस्तावेज रखे.
6- छठा भाग- 17 और 18 जनवरी 2017- फिलहाल जारी
कुमार कुणाल / खुशदीप सहगल