हाउसफुल AIIMS की कहानी, जहां इलाज के बदले मिलती है तारीख

अक्सर सलमान, शाहरुख खान जैसे सितारों की फिल्में आपको हाउसफुल मिलती हैं. टिकट नहीं मिली तो हम अगले दिन फिल्म देखने का प्लान बना लेते हैं. लेकिन जरा सोचिए अगर आपके किसी अपने को ब्रेन ट्यूमर, कैंसर जैसी गंभीर बीमारी हो जाए और अस्पताल जाने पर आपको एक-दो दिन नहीं बल्कि महीनों की बुकिंग मिले. दवा के बजाय वेटिंग लिस्ट थमा दी जाए.

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एम्स एम्स

रोशनी ठोकने

  • नई दिल्ली,
  • 30 सितंबर 2016,
  • अपडेटेड 6:16 AM IST

अक्सर सलमान, शाहरुख खान जैसे सितारों की फिल्में आपको हाउसफुल मिलती हैं. टिकट नहीं मिली तो हम अगले दिन फिल्म देखने का प्लान बना लेते हैं. लेकिन जरा सोचिए अगर आपके किसी अपने को ब्रेन ट्यूमर, कैंसर जैसी गंभीर बीमारी हो जाए और अस्पताल जाने पर आपको एक-दो दिन नहीं बल्कि महीनों की बुकिंग मिले. दवा के बजाय वेटिंग लिस्ट थमा दी जाए. ऑपरेशन के लिए दो से तीन साल का वक्त दिया जाए तब आप क्या करेंगे. यही हो रहा देश के सबसे भरोसेमंद अस्पताल एम्स में. जहां मरीजों को इलाज के नाम पर मिलती है तारीख पर तारीख.

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17 साल का शुभम बार-बार चक्कर खाकर गिर जाता है. कभी सिर दर्द से चकराने लगता है. तो कभी बेहोशी इस कदर कि पिता का दिल बैठ सा जाता है. शुभम ब्रेन ट्यूमर का मरीज है. डॉक्टरों ने सलाह दी है कि जल्द से जल्द ऑपरेशन करा लें. बिहार के पटना से बड़ी उम्मीदों के साथ शुभम को उसके पिता दिल्ली के एम्स अस्पताल में लेकर आए. यहां भी डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी. लेकिन एम्स ने ऑपरेशन के लिए जो तारीख दी. उसे सुनकर आप भी चौंक जाएंगे.. शुभम को तारीख मिली 23 जनवरी 2019 यानी कि आज से करीब 2 साल 4 महीने बाद.

ऑपरेशन के लिए मिली तारीख ने शुभम और उसके पिता को हैरान कर दिया. शुभम की बीमारी को देखते हुए उसके पिता ने जद्दोजहद करके रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा से भी एम्स डायरेक्टर को चिट्ठी लिखवाई लेकिन चिट्ठी से भी कुछ खास नहीं बदला. नई चिट्ठी लेकर जब शुभम के पिता एम्स पहुंचे तो उन्हें एक और तारीख मिली. लेकिन इस बार पिछली तारीख से थोड़ी जल्दी. लेकिन ये तारीख भी पांच महीने बाद की थी. 6 फरवरी 2017 और उस पर भी प्राइवेट वॉर्ड का खर्चा उठाना शुभम के किसान पिता के लिए नामुमकिन था. हाउसफुल एम्स में ऐसे हजारों मरीज हैं जिनकी बीमारी तारीखों का इंतजार नहीं कर सकती. लेकिन उन्हें भी एम्स से सिर्फ तारीख नसीब हुई. दर्द बढ़ा तो मजबूरन दूसरे अस्पताल का सहारा लेना पड़ा.

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ऐसे होगा स्वस्थ भारत का सपना पूरा
स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में एम्स देश का सबसे बड़ा और अच्छा अस्पताल माना जाता है. फिर क्या वजह है कि केन्द्र सरकार का ये अस्पताल हमेशा हाउसफुल रहता है. क्यों आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के मरीजों को तारीखों का इंतजार नसीब होता है. अगर एम्स के हालात इतने बदतर हैं तो फिर स्वस्थ भारत का सपना कैसे पूरा होगा. दरअसल मर्ज चाहे जैसा भी हो लेकिन दवा और इलाज की दरकार मरीजों को एम्स तक खींच लाती है. दिल्ली के अलावा दूसरे राज्यों से आने वाले मरीज खासतौर पर आर्थिक रुप से कमजोर तबके के लोग तारीखों के इंतजार में एम्स परिसर में, मेट्रो स्टेशन के किनारे या फुटपाथ पर ही महीनों गुजार देते हैं.

छह राज्यों में खुल चुके हैं एम्स
एम्स में रोजाना करीब 8 से 10 हजार मरीज पहुंचते हैं. जिनमें से 60 फीसदी मरीज देश के दूसरे राज्यों से आते हैं. देश में अब तक ऋषिकेश, पटना, भोपाल, भुवनेश्वर, जोधपुर और रायपुर जैसे 6 राज्यों में एम्स खुल चुका है. लेकिन दिल्ली एम्स के अलावा बाकी एम्स अस्पतालों में रोजाना करीब एक हजार मरीज ही पहुंचते हैं. जबकि राजधानी के एम्स अस्पताल में करीब 30 से 40 फीसदी मरीज उन्हीं 6 राज्यों से आते हैं. जहां एम्स है. हालांकि पिछले कुछ सालों से एम्स में ऑनलाइन अपाइंटमेंट की सुविधा भी शुरू हो गई है.

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दिल्ली के एम्स में मरीजों का बोझ ज्यादा
एम्स के प्रवक्ता अमित गुप्ता के मुताबिक, 'ये दुखद है कि अस्पताल को ना चाहते हुए भी कई बार मरीज को वेंटिग लिस्ट में डालना पड़ता है. लेकिन इसके बावजूद अस्पताल कोशिश करता है कि किसी भी इमरजेंसी केस के मरीज को निराश ना होना पड़े. अभी दूसरे राज्यों में जो एम्स हैं उन पर लोगों को भरोसा नहीं है. राजधानी के एम्स में मरीजों का बोझ ज्यादा है 'ये सच है कि तेरह सौ से ज्यादा डॉक्टरों की टीम वाले एम्स में ना सिर्फ दिल्ली बल्कि दूसरे राज्यों से भी मरीज आते हैं. लिहाजा एम्स हमेशा ही हाउसफुल ही रहता है और मरीजों की वेटिंग लिस्ट बढ़ती रहती है.

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