दिल्ली बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं में से एक जगदीश मुखी भी अब दिल्ली से बाहर निकल गए हैं. नए राज्यपाल और उपराज्यपाल की नियुक्ति सूची में दिल्ली के पूर्व वित्त मंत्री को अंडमान और निकोबार का उपराज्यपाल बना दिया गया है.
दिल्ली के पुराने माने जाने वाले तमाम बीजेपी नेताओं को अब दिल्ली की सक्रिय राजनीति से बाहर कर दिया गया है. इससे पहले पिछले विधानसभा चुनावों में पार्टी का चेहरा रह चुकीं किरण बेदी को पुडुचेरी का उपराज्यपाल बनाया गया था. हर्षवर्धन और विजय गोयल को केंद्रीय मंत्री पहले ही बनाया जा चुका है. यानी वो भी फिलहाल दिल्ली की राज्य सियासत से बाहर ही हैं.
पुराने दिग्गजों में विजय कुमार मल्होत्रा भी दिल्ली की सियासत से दूर हैं, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना की तबीयत पहले ही ठीक नहीं है. लिहाजा, वो सक्रिय राजनीति से पिछले कई साल से बाहर हैं. ऐसे में फिलहाल जगदीश मुखी ही एकमात्र ऐसे बड़े नेता हैं, जो अब तक दिल्ली की राजनीति में सक्रिय थे. हालांकि मुखी भी पिछला विधानसभा चुनाव जनकपुरी से हार गए थे.
अंतिम टीम पर अभी तक फैसला नहीं
दिल्ली बीजेपी की कमान फिलहाल सतीश उपाध्याय के हाथों में है, जो पार्टी नेताओं की लंबी चौड़ी फेहरिस्त में वरिष्ठता के पैमाने पर तो कम से कम नहीं टिकते. इसके अलावा पिछले साल विधानसभा चुनावों में जब बीजेपी महज 3 सीटों पर सिमट गई थी, तब भी पार्टी के अध्यक्ष उपाध्याय ही थे. तभी से इस बात पर कयास लग रहे हैं कि पार्टी की कमान सतीश उपाध्याय के हाथों से लेकर किसी ऐसा नेता को दी जा सकती है, जो पार्टी के साथ नए वोट बैंक को जोड़ सके.
मनोज तिवरी साधेंगे पूर्वांचल के वोटरों को
ऐसे में उत्तर पूर्वी दिल्ली से सांसद और फिल्म अभिनेता और गायक मनोज तिवारी का नाम भी पार्टी के नेतृत्व के लिए विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है. उन्हें पार्टी की जिम्मेदारी देने पर विचार इसलिए भी किया जा रहा है कि वह दिल्ली में एक बड़ा तबका पूर्वांचली वोटरों को साध सकते हैं. इनके अलावा पूर्वी दिल्ली से सांसद महेश गिरि और पश्चिमी दिल्ली से सांसद परवेश वर्मा को भी युवा होने के नाते पार्टी अध्यक्ष पद के दावेदार के तैर पर देखा जा रहा है.
अगले साल एमसीडी चुनाव होगी बड़ी चुनौती
दिल्ली में जो भी बीजेपी की कमान संभालेगा, उसके लिए चुनौती काफी बड़ी होगी. अगले 8 महीने में दिल्ली में नगर निगम चुनाव होने हैं. तीनों एमसीडी पर फिलहाल बीजेपी ही काबिज है. ऐसे में चुनौती न सिर्फ सत्ता बचाने की है, बल्कि आम आदमी पार्टी के बढ़ते प्रभाव को रोकने की भी है. कांग्रेस भी एमसीडी चुनावों में वापसी की कोशिश करेगी, यानी बीजेपी में युवा नेतृत्व क्या बीजेपी को जीत का मंत्र दिला सकेगा, यही अग्नि परीक्षा होगी.
कुमार कुणाल