नोटबंदी की सबसे ज्यादा मार रियल स्टेट सेक्टर पर पड़ी है. डीडीए के मकान हालांकि घर खरीदने की चाहत रखने वालों के लिए हमेशा हॉट केक की तरह रहे हैं चाहे मकसद इन्वेस्टमेंट का हो या फिर रहने के लिए मकान लेने का, लेकिन अब हालात पहले जैसे नहीं हैं. नोटबंदी के बाद से उपजे हालात ने डीडीए की सांसे भी रोक दी है, नवंबर से तैयार रखी हाउसिंग की फाइल बस अनाउंसमेंट का इंतजार कर रही है.
26 जनवरी को हो सकती है घोषणा
अथॉरिटी से जुड़े सूत्रों की तो डीडीए 13000 मकानों की बहुप्रतीक्षित आवासीय योजना का ऐलान आगामी गणतंत्र दिवस को कर सकती है. स्कीम के फाइनल अप्रूवल से लेकर तमाम तैयारियां नवंबर में ही कर ली गयी थीं
लेकिन 8 नवंबर को प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का बम गिरा दिया. लिहाजा रियल स्टेट की बाकी एजेंसियों की तरह डीडीए भी सहम गयी क्योंकि अथॉरिटी भले सरकारी तंत्र का हिस्सा हो लेकिन आखिरकार उसे भी तो मकान
और प्लॉट ही बेचना है. बहरहाल, डिमॉनिटाइजेशन ड्राइव के मद्देनजर डीडीए ने कम से कम दो महीने तक तो स्कीम की घोषणा ना करने की ठानी है. लिहाजा 26 जनवरी के आसपास जब कैश को लेकर हालात थोड़े
सामान्य होने शुरू हो जाएंगे तो डीडीए इस हाउसिंग स्कीम की सौगात का पिटारा खोलेगी.
2017 के मध्य में होगा ड्रॉ
जनवरी अंत में घोषणा के बाद जैसी कि डीडीए को अपेक्षा है कि 13000 घरों के लिए लाखों की संख्या में लोग आवेदन करेंगे, उन आवेदन पत्रों को छांटने और सिस्टम में लगाने में करीब डेढ़ से दो महीने का वक्त और
लग जाएगा. इस बीच कई टेक्निकल ग्लिजेस भी होंगी जिसके लिए डीडीए कुख्यात है. तो इस तरह मई-जून के बीच ड्रॉ निकलेगा और अगर आप लकी हुई तो आपको डीडीए का फ्लैट 2017 के अंत तक मिल
जाएगा.
घोषणा से पहले ही आ रही है फ्लैट निर्माण से जुड़ी शिकायतें
जिन 13000 फ्लैटों की बिक्री डीडीए करने जा रही है उनमें बहुतायत तो वो फ्लैट हैं जिनको पिछले ड्रॉ में लकी साबित हुए ग्राहकों ने ये कहकर लौटा दिया था कि अगर लकी होने पर ऐसा फ्लैट मिलता है तो हम
अनलकी ही ठीक हैं. दूसरे जो नए फ्लैट बने हैं उनमें भी सिविल वर्क और संरचना से जुड़ी दिक्कतों की शिकायतें डीडीए को आंतरिक रुप से ही मिलने लगी हैं. सूत्र बताते हैं कि इन शिकायतों से निपटने के लिए
संबंधित चीफ इंजीनियरों की एक टीम का गठन में डीडीए ने गुपचुप तरीके से कर दिया है. इन तमाम खट्टी मीठी जानकारियों के बीच एक तथ्य ये भी है कि डीडीए के घर का मालिक होना कभी दिल्ली में शान-ओ-बान
की पहचान रहा है.
विवेक शुक्ला