नर्सरी एडमिशन मामले में दिल्ली सरकार को झटका, हाईकोर्ट ने खारिज की अपील

नर्सरी एडमिशन को लेकर दिल्ली सरकार को बड़ा झटका लगा है. हाईकोर्ट ने इस मामले में दिल्ली सरकार की अपील खारिज कर दी है. दिल्ली हाईकोर्ट की डबल बेंच ने इस मामले में सिंगल बेंच के आदेश को बरकरार रखा है.

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दिल्ली हाईकोर्ट दिल्ली हाईकोर्ट

पूनम शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 27 फरवरी 2017,
  • अपडेटेड 1:14 PM IST

नर्सरी एडमिशन को लेकर दिल्ली सरकार को बड़ा झटका लगा है. हाईकोर्ट ने इस मामले में दिल्ली सरकार की अपील खारिज कर दी है. दिल्ली हाईकोर्ट की डबल बेंच ने इस मामले में सिंगल बेंच के आदेश को बरकरार रखा है. दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का निर्णय लिया है.

दिल्ली सरकार के नर्सरी एडमिशन से जुड़े 7 जनवरी के नोटिफिकेशन पर स्टे भी बरक़रार रहेगा. इसका मतलब यह है कि इस साल नेवरहुड क्राइटेरिया के आधार पर नर्सरी में एडमिशन नहीं होगा. हाइकोर्ट का यह आदेश डीडीए लैंड पर बने प्राइवेट स्कूलों के लिए बड़ी राहत है.

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इसके पहले गत 16 फरवरी को दिल्ली हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने नर्सरी पर बड़ा फैसला सुनाते हुए दिल्ली सरकार के 7 जनवरी के नोटिफिकेशन पर स्टे लगा दिया था. इसके अलावा कोर्ट ने सरकार के नेवरहुड क्राइटेरिया को भी रद्द कर दिया था.

हाइकोर्ट ने कहा था कि सरकार का नोटिफिकेशन पेरेंट्स से उनके अपनी पसंद के स्कूल में दाखिला का अधिकारों छीन रहा था, लिहाजा इसे रद्द किया जाता है.

हाईकोर्ट ने कहा था कि क्वालिटी एजुकेशन के नाम पर सरकार प्राइवेट स्कूलों के साथ मनमानी नहीं कर सकती है. हाई कोर्ट के इस फैसले से इस साल नर्सरी एडमिशन को लेकर रास्ता साफ हो गया है. सरकार के नोटिफिकेशन के बाद पैदा हुआ संशय खत्म हो गया है.

प्राइवेट स्कूलों ने दिल्ली सरकार की नर्सरी में दाखिले के लिए एलजी के नोटिफिकेशन को हाइकोर्ट मे चुनौती दी थी. नोटिफिकेशन में सरकार ने प्राइवेट स्कूलों को कहा था कि डीडीए की जमीन पर बने स्कूल नर्सरी में दाखिला लेने के लिए नेबरहुड क्रेटरिया को लागू करेंगे.

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इस नोटिफिकेशन से दिल्ली के 298 निजी स्कूल प्रभावित हो रहे थे. स्कूलों की एक्शन कमेटी का कहना था कि उनके हितों को नुकसान नहीं होना चाहिए और सरकार को छात्रों के बीच कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए. बच्चे के माता पिता के पास ये अधिकार होना चाहिए कि वो अपने बच्चे को किस स्कूल में पढ़ाएं.

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