दिल्ली में 233 लोग अब भी मल ढोने को मजबूर, HC ने लगाई फटकार

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि यह एक शर्म की बात है कि कानून होने के बावजूद भी दिल्ली में मल-ढोने वाले मौजूद हैं. कानूनी तौर पर मल ढोने पर पूरी तरह प्रतिबंध है.

Advertisement
पढ़े-लिखे लोग मल ढोने के काम में पढ़े-लिखे लोग मल ढोने के काम में

अमित कुमार दुबे / पूनम शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 04 अगस्त 2016,
  • अपडेटेड 11:02 AM IST

p>देश की राजधानी मे अभी भी 233 लोग मल ढोने को मजबूर हैं. दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि ये देश गरीबों का है लेकिन गरीबों के लिए नहीं है. 2007 मे मल ढोने वाले लोगों के पुनर्वास को लेकर एक जनहित याचिका लगाई गई थी जिसपर हाई कोर्ट बुधवार को सुनवाई कर रहा था.

 बैन के बावजूद मल-ढोने का मामला
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि यह एक शर्म की बात है कि कानून होने के बावजूद भी दिल्ली में मल-ढोने वाले मौजूद हैं. कानूनी तौर पर मल ढोने पर पूरी तरह प्रतिबंध है. कोर्ट को ये कहने पर मजबूर होना पड़ा कि ये गरीबों का देश है, लेकिन ये देश गरीबों के लिए नहीं है. हाई कोर्ट ने ये टिप्पणी उस समय की, जब दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण(डीएलएसए) ने अपनी एक रिपोर्ट दायर करते हुए बताया कि दिल्ली में अलग-अलग सिविक एजेंसियों के लिए लगभग 233 लोग मल-ढोने का काम कर रहे हैं. जबकि संबंधित अधिकारियों ने इससे पहले कोर्ट को बताया था कि दिल्ली में कोई मल-ढोने वाला मौजूद नहीं है.

कोर्ट ने जताई नाराजगी
नाराज कोर्ट ने कहा कि ये रिपोर्ट दिल्ली जलबोर्ड, निगम व अन्य अधिकारियों के बयान को पूरी तरह झुठला रही है. न्यायालय ने कहा कि प्रोहिबेशन ऑफ इंप्लायमेंट एस मैनुअल स्कैवन्जर के तहत मैनुअल स्कैवन्जर(मल ढोने वाले) पर पूरी तरह रोक लगी हुई है. उसके बाद भी इनकी दिल्ली में मौजूदगी शर्म की बात ही है. इस मामले में साल 2007 में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें मैनुअल स्कैवन्जर(मल ढोने वाले) के पुर्नवास की मांग की गई थी.

पढ़े-लिखे लोग मल ढोने के काम में
कोर्ट को ये सुनकर और ज्यादा हैरानी और दुख हुआ दुख जब उनको डीएलएसए ने बताया कि एक मल ढोने वाला तो ग्रेजुएट है. डीएलएसए को इस मामले में कोर्ट ने ही रिपोर्ट दायर करने के लिए कहा था. जिसमें कहा गया था कि डीएलएसए सभी एजेंसियों की तरफ से दिए उस बयान की जांच करें, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली में मल ढोने वाले नहीं हैं. कोर्ट ने ये निर्देश इसलिए दिया था ताकि इस तरह का काम करने वाले को कानूनी सहायता दी जा सकें.

Advertisement

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement