तेंदूपत्ता घोटालाः हाईकोर्ट का आदेश-नीलामी में सभी पक्ष 3 दिन में दें जवाब

बिलासपुर हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में सामाजिक कार्यकर्ता संत कुमार नेताम ने वन विभाग पर आरोप लगाया था कि विभागीय मंत्री और अफसरों ने मिलकर प्रदेश में तेंदूपत्ता की बेहद कम दरों पर नीलामी की. इससे सरकार को 300 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ.

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सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर

सुनील नामदेव

  • रायपुर,
  • 11 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 8:54 PM IST

छत्तीसगढ़ में 300 करोड़ रुपये के तेंदूपत्ता घोटाले को लेकर हाईकोर्ट ने वन विभाग को तगड़ा झटका दिया है. हाईकोर्ट ने वन विभाग समेत तेंदूपत्ता नीलामी में हिस्सा लेने वाले सभी व्यापारियों और कारोबारियों को तीन दिन के भीतर अपना जवाब देने का निर्देश दिया है.

मामले की अगली सुनवाई 17 अप्रैल को होगी. बिलासपुर हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में सामाजिक कार्यकर्ता संत कुमार नेताम ने वन विभाग पर आरोप लगाया था कि विभागीय मंत्री और अफसरों ने मिलकर प्रदेश में तेंदूपत्ता की बेहद कम दरों पर नीलामी की. इससे सरकार को 300 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ.

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कम दर पर नीलामी

उन्होंने कहा कि यही नहीं आदिवासी समुदाय जंगल से जो तेंदूपत्ता इकट्ठा करता है और उसे वन समितियों तक पहुंचाता है. उसे भी नुकसान झेलना पड़ा. चूंकि नीलामी कम दर पर हुई इसलिए तेंदूपत्ता इकट्ठा करने वाले आदिवासियों को भी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा.

याचिकाकर्ता ने नियमों को ताक में रखकर तेंदूपत्ता की नीलामी का आरोप लगाया था. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस टीबी राधकृष्णन और जस्टिस शरद गुप्ता की सयुंक्त बेंच में हुई.  प्राथमिक सुनवाई में ही कोर्ट ने वन विभाग को तगड़ा झटका दे दिया और नीलामी में शामिल व्यापारियों को अपना जवाब देने के लिए तीन दिन का समय दिया.

कोर्ट ने यह भी कहा कि ऊंची बोली लगाने वाले व्यापारियों के साथ सरकार नीलामी प्रक्रिया को आगे ले जा सकती है. इसके बाद नीलामी में शामिल और कम दर पर तेंदूपत्ता खरीदने वाले व्यापारी पशोपेश में आ गए हैं. प्रकरण में शामिल वे अफसर भी सकते में है जिन्होंने बेहद कम लागत पर नीलामी के जरिए भारी मात्रा में तेंदूपत्ता अपने लोगों को उपलब्ध करा दिया था.

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छत्तीसगढ़ में सालाना करोड़ों का तेंदूपत्ता इकट्ठा होता है. देशभर के कारोबारी तेंदूपत्ता खरीदने के लिए यहां आते है. राज्य के जंगलों के एक बड़े हिस्से में 15 लाख से ज्यादा आदिवासी परिवार तेंदूपत्ता संग्रहण कर उसे वन समितियों को सौंपता है. इसके एवज में वन समितियां तेंदूपत्ता संग्राहकों को प्रति बंडल रकम का भुगतान करती है.

इस तरह से इकट्ठा होने वाली तेंदूपत्ता की खेप को, फिर वन समितियां लघुवनोपज संघ के जरिए इसे राष्ट्रीय नीलामी में बेचती है. तेंदूपत्ता से बनने वाले उत्पादों के निर्माताओं के अलावा बीड़ी कारोबार से जुड़े व्यापारी और बिजनेसमैन तेंदूपत्ता की खरीदी करते हैं. पिछले वर्ष वन विभाग के अफसरों ने तेंदूपत्ता के कारोबारियों से सांठगांठ की. उन्होंने अच्छे किस्म के तेंदूपत्तों को भी रिकॉर्ड में खराब बता दिया.

वन समितियों को घाटा

इसके बाद पचास फीसदी से भी नीची बोली बोलकर व्यापारियों ने अच्छे किस्म का तेंदूपत्ता खरीद लिया. इससे वन समितियों को सीधे 34.06 फीसदी का नुकसान हुआ. जबकि सरकारी तिजोरी में पूर्व वर्षों की तुलना में 300 करोड़ से ज्यादा की रकम की चपत लगी. याचिकाकर्ता ने अदालत से मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग करते हुए तेंदूपत्ता नीलामी को रद्द करने की मांग की है.

दरअसल, छत्तीसगढ़ वन विभाग में तेंदूपत्ता हथियाने के लिए एक सिंडिकेट काम कर रहा है. इस सिंडिकेट में वन विभाग के अफसरों से लेकर तेंदूपत्ता के बड़े कारोबारी शामिल है. यह सिंडिकेट वन विभाग से अच्छे पत्तों को खराब दर्शाकर औनी-पौनी कीमत में तेंदूपत्ता का लॉट खरीद लेते है. फिर उसे खुले बाजार में ऊंची कीमत पर बेच देता है. इससे होने वाले मुनाफे को आपस में बांट लिया जाता है.

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RTI कार्यकर्ता मामले की सीबीआई जांच की मांगकर रहे हैं, लेकिन सरकार ने उनकी मांग खारिज कर दी है. लिहाजा हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इस गोरखधंधे की जांच सीबीआई से कराने की पहल की गई है.

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