मानव अधिकारवादी संगठनों का आरोप, उन्हें बस्तर से खदेड़ना चाहती है पुलिस

छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में मानव अधिकारों की वकालत करने वाले कार्यकर्ताओं ने उन्हें बस्तर से खदेड़े जाने का आरोप लगाया है. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा है कि पुलिस के इशारे पर कुछ स्थानीय कार्यकर्ता उन्हें जबरन इलाका छोड़ने के लिए दबाव बना रहे हैं.

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मुख्यमंत्री रमन सिंह ने दिया सुरक्षा का भरोसा मुख्यमंत्री रमन सिंह ने दिया सुरक्षा का भरोसा

सुनील नामदेव

  • रायपुर,
  • 28 जनवरी 2017,
  • अपडेटेड 8:31 AM IST

छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में मानव अधिकारों की वकालत करने वाले कार्यकर्ताओं ने उन्हें बस्तर से खदेड़े जाने का आरोप लगाया है. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा है कि पुलिस के इशारे पर कुछ स्थानीय कार्यकर्ता उन्हें जबरन इलाका छोड़ने के लिए दबाव बना रहे हैं.

मुख्यमंत्री ने दिया सुरक्षा का भरोसा
कार्यकर्ताओं के मुताबिक उन्होंने पुलिस और केंद्रीय सुरक्षाबलों की कई तरह की ज्यादतियों का खुलासा किया है. जिसके चलते उन्हें बस्तर छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है. इन आरोपों के बाद सरकार ने मानव अधिकार कार्यकर्ताओं को आश्वासन दिया है कि उन्हें सुरक्षा दी जाएगी. वे बेफिक्र होकर बस्तर में रह सकते हैं.

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बस्तर में लगभग आधा दर्जन मानव अधिकारवादी संगठन काम कर रहे हैं. इन संगठनों का दावा है कि वो पीड़ित आदिवासियों को ना केवल कानूनी सहायता दे रहे हैं बल्कि पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों की ज्यादतियों को लेकर पीड़ितों का साथ दे रहे हैं. मानव अधिकार कार्यकर्ता शालिनी गेरा और बेला भाटिया ने आरोप लगाया है कि उन्हें बस्तर से बाहर करने के लिए चौतरफा दबाव बनाया जा रहा है.

पुलिस ने आरोपों को किया खारिज
उधर बस्तर पुलिस ने मानव अधिकारवादी संगठनों के आरोपों को सिरे से ख़ारिज कर दिया है. बस्तर रेंज के आईजी एसआरपी कल्लूरी के मुताबिक कुछ कार्यकर्ताओं ने पुलिस अधीक्षक के पास इस बाबत शिकायत भेजी थी जिसकी जांच जारी है. बस्तर में बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा, कोंटा, नगरनार, भोपालपटनम, नारायणपुर, कोंडागांव और कांकेर जैसे धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में कई मानव अधिकारवादी संगठनों ने डेरा डाला हुआ है. इन संगठनों के पदाधिकारियों से लेकर आम कार्यकर्ता बस्तर में रह रहे हैं. कोई किराये के मकान लेकर रह रहा है तो किसी ने स्थानीय ग्रामीणों के यहां डेरा डाल रखा है.

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इन कार्यकर्ताओं के मुताबिक स्थानीय स्तर पर खासतौर पर जंगलों के भीतर रहने वाले ग्रामीणों पर पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान कई तरह की ज्यादतियां करते हैं. वे महिलाओं के साथ बदसलूकी से लेकर रेप की घटनाओं तक को अंजाम देते हैं. उनका कहना है कि वो पीड़ितों को क़ानूनी मदद दे रहे हैं, इसलिए उन्हें पुलिस इलाके से खदेड़ना चाहती है. राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने पुलिस को पीड़ित कार्यकर्ताओं को पर्याप्त सुरक्षा देने के निर्देश दिए हैं.

बस्तर में काम करने वाले ज्यादातर मानवाधिकार संगठन पुलिस और केन्दीय सुरक्षा बलों की ज्यादतियों के मामले सड़कों से लेकर अदालतों तक ले जाते हैं. लेकिन नक्सलिओं के द्वारा अंजाम दी गई घटनाओं की निंदा तक नहीं करते. यही नहीं नक्सलिओं के हाथों मारे गए आम ग्रामीणों पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवानों के मामलों को इन मानव अधिकारवादी संगठनों ने ना तो कभी सड़कों पर उठाया और ना ही नक्सलिओं को सजा दिलाने को लेकर मामले को अदालत तक ले गए. यही कारण है कि बस्तर में मानवाधिकारवादी संगठनों और पुलिस के बीच खाई खिंचती चली जा रही है.

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