छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में धर्मांतरण का मुद्दा अब केवल वैचारिक बहस तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह डराने-धमकाने और हिंसा के गंभीर मोड़ पर पहुंच गया है. कांकेर की हालिया घटनाएं, सर्व समाज का विरोध और एक पूर्व पादरी के खुलासों ने इस सामाजिक दरार को और गहरा कर दिया है.
कांकेर के घने जंगलों और कच्ची सड़कों के बीच बसा एक दूरदराज़ गांव, जहां न प्रशासन की नियमित मौजूदगी है, न मीडिया की निगाह. 24 दिसंबर को इसी गांव में एक परिवर्तित परिवार ने दावा किया कि उस पर हमला हुआ. परिवार के अनुसार, अलग-अलग समूहों से जुड़े करीब 30 लोग गांव पहुंचे और उन पर पुराने धर्म में लौटने का दबाव बनाया. इनकार करने पर कथित तौर पर धमकी और डराने-धमकाने की घटनाएं हुईं.
कांकेर जिले के एक बेहद सुदूर गांव से हिंसा की ताजा खबर आई है. यह इलाका शहरों और प्रशासन की सीधी नजर से काफी दूर घने जंगलों के बीच बसा है. परिवार की एक महिला ने आजतक के कैमरे पर अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा, "मुझे सुरक्षा की जरूरत है. मैंने अपने पुराने धर्म में लौटने से इनकार कर दिया था, बस इसी वजह से हम पर हमला किया गया."
परिवार के अनुसार, करीब 30 लोग गांव पहुंचे और उन पर धर्म वापसी का दबाव बनाया. जब वे नहीं माने, तो बात धमकी और मारपीट तक पहुँच गई.
आस्था या मजबूरी?
ग्राउंड रिपोर्ट के दौरान हमारी टीम ने एक अन्य परिवार से भी बात की, जिसने करीब 25 साल पहले धर्म परिवर्तन किया था. उनका कहना है, "हमें किसी ने मजबूर नहीं किया. यह हमारा अपना फैसला था और हम पिछले 25 वर्षों से यहां शांति से रह रहे हैं."
वहीं दूसरी ओर, सर्व समाज और स्थानीय संगठनों का तर्क बिल्कुल अलग है. उनका आरोप है कि आदिवासियों का जबरन धर्मांतरण कराया जा रहा है, जिससे उनकी मूल संस्कृति नष्ट हो रही है. इसके विरोध में छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों में 'बंद' का आह्वान किया गया और धर्मांतरण विरोधी कानूनों को सख्ती से लागू करने की मांग की गई.
पूर्व पादरी का बड़ा खुलासा
इस पूरे विवाद में एक नया मोड़ तब आया जब पूर्व पादरी महेंद्र बघेल ने अपनी घर वापसी के बाद चौंकाने वाले दावे किए. उन्होंने बताया कि धर्मांतरण की गतिविधियों में शामिल लोगों को अक्सर अकेले छोड़ दिया जाता है. महेंद्र ने कहा, "जब मुझ पर मुसीबत आई, तो किसी ने मेरा साथ नहीं दिया. मैं बिल्कुल अकेला पड़ गया था, जिसने मुझे सब कुछ दोबारा सोचने पर मजबूर कर दिया."
उनके इंटरव्यू से स्पष्ट हुआ कि इन संस्थाओं के भीतर भी गहरे मतभेद और समर्थन की कमी है.
भीम आर्मी और राजनीतिक एंगल
स्थानीय समूहों का आरोप है कि इस सामाजिक तनाव के पीछे भीम आर्मी जैसे संगठनों की सक्रियता भी बढ़ी है, जो विमर्श को प्रभावित कर रहे हैं. हालांकि, जब हमारी टीम ने भीम आर्मी के प्रतिनिधियों से संपर्क करने की कोशिश की, तो उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
सुमी राजाप्पन